मेरे घर मतलब जहॉं मैं रहता हूँ, वहॉं टी0वी0 भी नहीं है, और न तो मैं
कोई समाचार पत्र ही खरीदता हूँ। मानता हूँ कि टी0वी न रहना तो कमी नहीं हैं
मगर समाचार पत्र न खरीदा कमी है। ये बातें बताने का कारण मैं नीचे
बताऊगॉं।
हॉं तो जहॉं तक मैं देख पा रहा हूँ उत्तर प्रदेश विधान सभा में विगत 12 जुलाई को विस्फोटक पदार्थ पाया गया। उस कांन्ड के बाद जितना हल्ला मचा है वह जायज है। भारत के लोकतन्त्र पर माननीय अटल बिहारी बाजपेई जी के शासन में केन्द्र पर हमले के बाद, अब केन्द्र में मोदी और प्रदेश में योगी के शासन काल में एक नाजायज करतूत हुई है। पूरा प्रशासनिक तन्त्र, सरकार और नेता परेशान हैं कि ये कैसे आया और ये कैसे हुए, अगर किसी की जान चली जाती तो क्या होता ? लोकतन्त्र पर हमला हो गया होता तो क्या होता ? किसी नेता की जान चली गई होती तो क्या होता ? न जाने कितनी जॉंच कमेटीयों का गठन और न जाने कितने निर्णय लिये गये। आखिर लिये भी क्यों न जाये ? जनता के चुने प्रतिनिधियों की सुरक्षा का सवाल है। हॉंड-मॉंस के बने जीव का सवाल है। दुबारा न मिलने वाले जीवन का सवाल है।
हॉं तो जहॉं तक मैं देख पा रहा हूँ उत्तर प्रदेश विधान सभा में विगत 12 जुलाई को विस्फोटक पदार्थ पाया गया। उस कांन्ड के बाद जितना हल्ला मचा है वह जायज है। भारत के लोकतन्त्र पर माननीय अटल बिहारी बाजपेई जी के शासन में केन्द्र पर हमले के बाद, अब केन्द्र में मोदी और प्रदेश में योगी के शासन काल में एक नाजायज करतूत हुई है। पूरा प्रशासनिक तन्त्र, सरकार और नेता परेशान हैं कि ये कैसे आया और ये कैसे हुए, अगर किसी की जान चली जाती तो क्या होता ? लोकतन्त्र पर हमला हो गया होता तो क्या होता ? किसी नेता की जान चली गई होती तो क्या होता ? न जाने कितनी जॉंच कमेटीयों का गठन और न जाने कितने निर्णय लिये गये। आखिर लिये भी क्यों न जाये ? जनता के चुने प्रतिनिधियों की सुरक्षा का सवाल है। हॉंड-मॉंस के बने जीव का सवाल है। दुबारा न मिलने वाले जीवन का सवाल है।
यह सब देख कर मेरे मन में एक सवाल आया कि क्या इस घटना से महज कुछ दिन
पहले अमरनाथ यात्रीयों के ऊपर हुए हमले के बाद इन राजनेताओं ने ऐसी
हाय-तौबा मचाई, जो अपने ऊपर हमले की कल्पना मात्र से मचा रहे हैं ? क्या
इस प्रकार उनकी सुरक्षा के लिए तबा-तोड़ निर्णय लिये गये? क्या इस प्रकार
पूरे नेताओं ने बयान-बाजी किया? शायद ऊपर कहे बातो का यही जबाब है कि
टी0वी0 और समाचार पत्रो का मेरे पास नहीं रहने के बाद भी, यह महसूस किया कि
अमरनाथ यात्रीयों पर हमले के बाद न राजनैतिक बिरादरी में कोई हल्ला नहीं
मचा और न तो मशीनरीयॉं उस तेजी से हरकत में आई। इसका कारण भी साफ है कि
मरने वाले न ऊँचे धराने के थे, न नेता थे, और ना ही मुसलमान, आम आदमीयों की
जाने कौड़ीयों से भी सस्ती होती है,उनके जाने से उनकी बीबी विधवा नहीं
होती, उनके बच्च्ो अनाथ नहीं होते और न तो किसी मॉं कि गोद ही उखड़ती है।
ये सब चीजे तो केवल राजनेताओं के जाने से होती है। मैं यह नहीं कहता कि
विधान सभा और ससंद पर हमला होने चाहिए अथवा नेताओं को मारा जाना चाहिए, मगर
इतना तो जरूर कहूँगा कि जिस प्रकार विधान सभा लोकतंन्त्र का मंदिर था उस
पर हमला होना लोकतन्त्र पर हमला होना है और उस पर हाय-तौबा होनी चाहिए उसी
प्रकार अमरनाथ यात्रा या अन्य यात्रा हिन्दू धर्म का मंदिर है, उस पर
हमला हिन्दू धर्म पर हमला है। उसमें मरने वाले भी मानव थे, उनके परिवार पर
भी उसका वही असर होता है जो इन नेताओं के परिवार पर होता है, मगर ऐसा भारत
में नहीं होता, अगर एक नेता को खरोंच भी आ जाये तो पूरी मशीनरी हरकत में आ
जाती है, जनता चिल्लाने लगती है मगर यदि आम आदमी की जान भी चली जाये तो न
मशीनरी हरकत में आती है और न ये नेता चिल्लाते है, ये अगल बात है कि यदि
मरने वाला मुसलमान होता है तो वह सारा कुछ हो जाता है जो एक नेता के खरोंच
आने की कल्पना मात्र से होता है, जिसका जीता जागता प्रमाण उत्तर प्रदेश
में ही मिल चुका है एक अखलाक नामक महापुरूष के मारे जाने के बाद इस प्रदेश
में ही नहीं इस देश में कैसा बंवडर मचा था, कितनी और क्या क्या बाते हुई?
किसी से छुपा नहीं है।
जय हिन्दूराष्ट्र भारत। अखंड गहमरी, गहमर गाजीपुर
जय हिन्दूराष्ट्र भारत। अखंड गहमरी, गहमर गाजीपुर
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