रविवार, 15 अक्टूबर 2017

तिरंगा

बदन लिपटा तिरंगें में, कही दिखता न उनका सिर।
गरज बेशर्म खादी तब, गिराती दुश्‍मनो के घर।

हुआ हज पर अगर हमला, कभी कश्मीर की माटी में।
तिलक मारा न जाये फिर, कभी कश्मीर की घाटी में।।

उठाना लाज का पहरा ,बहुत आसान है लेकिन।
बचा कर लाज रिश्तों का ,निभाना है नहीं आसां।।
गरीबो के बस्ती में, लगा लो लाख मेले तुम।
मगर इक प्यार की रोटी, खिलाना है नहीं आसां।।
अखंड गहमरी


अखंड गहमरी

गाजीपुर जनपद की विरांगनाओं की तरफ से कुछ लिखने का प्रयास.....
सिपाही बालमा मेरे, अभी सरहद पे मत जाना।
छुपे जो देश में दुश्मन, उन्हें भी तुमको निपटाना।।
तुम्हारी आँखो में सूरत, बसी मेरी निकालो तुम।
छुपे जोे ख्वाब नैनो में, कसम मेरी करो सब गुम।
नही गद्दार इक भी अब, बचे इस देश में बालम।
बहाये खून की नदियाँ, बना दहशत का जो आलम।।
मिटा पाये न उनको तुम, तो मेरे पास मत आना।
सिपाही बालमा मेरे, अभी सरहद पे मत जाना।
छुपे जो देश में दुश्मन, उन्हें भी तुमको निपटाना।।
सिखाती प्यार थी सबको,कभी कश्मीर की घाटी।
मगर अब लाल क्यों रहती,लहू से आज ये माटी।।
लगा कर जो तिलक माथे, चले वो खाते हैं गोली।
सभी चुप हैं सजन इसपर निकलती क्यों नही बोली।
न नेता कर सकेगें कुछ, मुझे तुमको ये बतलाना।
सिपाही बालमा मेरे अभी सरहद पे मत जाना।
छुपे जो देश में दुश्मन, तुम्हें उनको भी निपटाना।।
अखंड गहमरी

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