आँखो पर रेनबो का चश्मा, स्पार्कि का जींस और शर्ट , हाथ में आई फोन लिये
मैं अपनी शानदार मर्सिडीज गाड़ी की तरफ चल दिया। आज मेरे उल्लू से चेहरे पर
सूरज सा तेज था। खुशी से दिल बाग बाग हो रहा था। हो भी क्यों नही मैं
वृक्षारोपण कार्यक्रम की शुरूआत करने जो करने जा रहा था। रास्ते भर मैं
अपने इस वृक्षारोपण कार्यक्रम की सूचना बड़े बड़े बैनरो पर देख कर गदगद हो
रहा था। आखिर आ गई मेरी मंजिल, मैं कार्यक्रम स्थल पर पहुँच ही गया। जोरदार
स्वागत हुआ, लोग धूप में थे , मैं एसी गाडी से एसी मंच पर। मैने भी आव
देखा न ताव लपक लिया माइक, कभी चीनी की चासनी में लपेटकर तो कभी मिर्च
मसाला लगा कर खूब ताली बजवाई, जय जय कार कराया। सीना 56 से बढ़कर 112 हो
गया। अब मैं लाल कार्पेट पे चल कर वृक्षारोपण स्थल तक आ गया, घुटनो के बल
बैठ गया, सिर के ऊपर लगा छाता हटवा दिया क्योकि मुझे परिश्रमी दिखना था, ये
अलग बात थी कि मेरे गुर्गे ऐसे खड़े थे कि मेरे आस पास भी धूप नज़र नहीं आ
रही थी। मैं पहले से खुदी नर्म मिट्टी को फाँवडे से ऐसे खोद रहा जिसे देख
कर ज्येष्ठ माह की दोपहर में प्यासी सूखी धरती पर फटी पुरानी धोती में
पसीने से तर बतर ,हल चलाता किसान भी शरमा जाये। मीडिया और अपने चमचो के
चमकते फ्लैशो के बीच मेरा वृक्षारोपण का कार्यक्रम पूरा हुआ। मैं मीडिया के
सवालो का जबाब देकर अपनी गाड़ी की तरफ ऐसे चला जैसे पाकिस्तान की गोलीयों
का जबाब देकर गर्व से बैरक लौट रहा हूँ। ''अरे नेता जरा मेरी भी सुनता जा'
की आवाज सुन कर मैं रूका। जिधर से आवाज आई थी उधर देखने लगा, मगर मानव तो
कोई दिखा ही नहीं । ''इधर देखो नीचे'' तभी फिर वो आवाज सुनाई दी। मैने नीचे
देखा तो मेरे पैरो के पास एक 1फीट का मरियल सा गंदा पौधा हसता हुआ दिखाई
दिया। मुझे उसकी भाषा रास नही आई थी मैने भी उसके दुखती नश पर हाथ रखते
हुए बोला'' कहो मरियल क्या बात है?" उसने जबाब नही दिया उलटे पलट कर पूछा"
पहचाना मुझे? नहीं न ? मैने कहा नहीं मेरे पास इतनी फुर्सत और दिमाग नहीं
जो तुम जैसे जमीन के लोगो को पहचानता फिरू। वो शायद मुझसे भी अधिक मुहँ का
जला था , बोल पड़ा मैं वही पौधा 6 इंच का पौधा हूँ जिससे तुमने आज जैसे
लाखो खर्च और झाम लगा कर लगाया था। उसके बाद तुम तो आये नहीं न मेरी देख
भाल किया। मैं तो न बढ़ पाया न मोटा हूँ मगर तुम्हारी तो कमर 34 से 42 हो
गई।
मैंने हस कर जबाब दिया, तुम बड़े अवोध हो, लेते कुछ नहीं देते सब कुछ हो, अपना जीवन मानव जाति की भलाई के लिए लगा देते हो, तुम्हारे बिन मेरे जीवन की कल्पना भी नहीं, लेकिन तुम इस भ्रम में हो कि हम तुम्हारे नाम पर लूटना, छोड़ देगे तो यह नहीं होगा । हम तो वह नाँग हैं जो डसेगें ही।
अब पौधा थोड़ा उग्र होकर बोला "इसी लिए आज कल अपनी राजनीति का हिस्सा मुझे बना लिया।"
मैंने अपने पान से काले हुए दाँत निपोरते हुए कहा'' बिल्कुल ठीक बोला तुमने, तुम्हारा भय दिखा कर हम अपनी राजनीतिक रोटी सेकेगें ही। एक पौधा लगा कर करोड़ो कमायेगें ही, बताओ क्या करोगे?
वह पौधा कुछ सोचने लगा तभी मैं फिर बोल पड़ा
अभी तो कल से देखना बेटा जब बड़े-बड़े सेलीब्रिटी, नेता, फेसबुक वाटस्प यूजर और न जाने कौन कौन तुम्हें लगाते हुए बड़े बड़े फोटो सोशलमीडिया पर लगायेगें और अगले दिन तुम्हें आवारे जानवर खायेगें।
मेरी बात सुन कर पौधा उदास स्वर में बोला '' मैं तो सोचा कि तुम्हें मेरी हालत देख कर कुछ तो शर्म आयेगी, वह शरम जो वृक्षारोपण के नाम पर मज़ाक करने वालो को नहीं आ रही है। चले जाओ यहाँ से फिर अगले साल से पहले न पलट कर आना न हमारी दशा पर सोचना, मरने दो हमें, करोड़ो कमाओ, मगर मुझसे मज़ाक करने वाले सुनता जा खून के आँसू रोयेगा तू और तुम्हारा समाज, जा भाग यहाँ से।
उसकी इस बातो पर मैं खूब हसाँ हसते लोटपोट हो गया '' तू तो मेरे पैदा होने के बाद जीवन बचाता है, मैं तो जिसने मुझे पैदा किया उस माँ पर राजनीति करता हूँ, जिस देश में रहता हूँ उसका सौदा करता हूँ, मैं एक नेता हूँ आज का नेता , मुझे बस पैसे से प्यार है। मैं तुम्हारी तरह निष्काम सेवा नहीं करता। यह कहते हुए चल पड़ा अपनी लम्बी सी गाडी की तरफ।
मेरा जबाब सुन कर वह मौन होगया।
मेरे कानो में आवाज आने लगी
''विकास पुरूष अखंड गहमरी जिन्दाबाद जिन्दाबाद''
"दुख का साथी अखंड गहमरी जिन्दाबाद जिन्दाबाद''
मैं भी खुश, आप भी खुश , मगर पागल पौधा रो रहा।
जय हिन्द , जय भारत अखंड गहमरी।।
मैंने हस कर जबाब दिया, तुम बड़े अवोध हो, लेते कुछ नहीं देते सब कुछ हो, अपना जीवन मानव जाति की भलाई के लिए लगा देते हो, तुम्हारे बिन मेरे जीवन की कल्पना भी नहीं, लेकिन तुम इस भ्रम में हो कि हम तुम्हारे नाम पर लूटना, छोड़ देगे तो यह नहीं होगा । हम तो वह नाँग हैं जो डसेगें ही।
अब पौधा थोड़ा उग्र होकर बोला "इसी लिए आज कल अपनी राजनीति का हिस्सा मुझे बना लिया।"
मैंने अपने पान से काले हुए दाँत निपोरते हुए कहा'' बिल्कुल ठीक बोला तुमने, तुम्हारा भय दिखा कर हम अपनी राजनीतिक रोटी सेकेगें ही। एक पौधा लगा कर करोड़ो कमायेगें ही, बताओ क्या करोगे?
वह पौधा कुछ सोचने लगा तभी मैं फिर बोल पड़ा
अभी तो कल से देखना बेटा जब बड़े-बड़े सेलीब्रिटी, नेता, फेसबुक वाटस्प यूजर और न जाने कौन कौन तुम्हें लगाते हुए बड़े बड़े फोटो सोशलमीडिया पर लगायेगें और अगले दिन तुम्हें आवारे जानवर खायेगें।
मेरी बात सुन कर पौधा उदास स्वर में बोला '' मैं तो सोचा कि तुम्हें मेरी हालत देख कर कुछ तो शर्म आयेगी, वह शरम जो वृक्षारोपण के नाम पर मज़ाक करने वालो को नहीं आ रही है। चले जाओ यहाँ से फिर अगले साल से पहले न पलट कर आना न हमारी दशा पर सोचना, मरने दो हमें, करोड़ो कमाओ, मगर मुझसे मज़ाक करने वाले सुनता जा खून के आँसू रोयेगा तू और तुम्हारा समाज, जा भाग यहाँ से।
उसकी इस बातो पर मैं खूब हसाँ हसते लोटपोट हो गया '' तू तो मेरे पैदा होने के बाद जीवन बचाता है, मैं तो जिसने मुझे पैदा किया उस माँ पर राजनीति करता हूँ, जिस देश में रहता हूँ उसका सौदा करता हूँ, मैं एक नेता हूँ आज का नेता , मुझे बस पैसे से प्यार है। मैं तुम्हारी तरह निष्काम सेवा नहीं करता। यह कहते हुए चल पड़ा अपनी लम्बी सी गाडी की तरफ।
मेरा जबाब सुन कर वह मौन होगया।
मेरे कानो में आवाज आने लगी
''विकास पुरूष अखंड गहमरी जिन्दाबाद जिन्दाबाद''
"दुख का साथी अखंड गहमरी जिन्दाबाद जिन्दाबाद''
मैं भी खुश, आप भी खुश , मगर पागल पौधा रो रहा।
जय हिन्द , जय भारत अखंड गहमरी।।
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