रविवार, 15 अक्टूबर 2017

कुछ दिनो से

कुछ दिनो से मैं काफी उदास चल रहा था। मेरी उदासी ठीक बैसे ही थी जैसे कोई नई पूर्व प्रेमिका छोड़ कर चली गई हो। हाथो की खुजलाहट मिटाने को कुछ मिल ही नहीं रहा। रोज रोज पुरानी प्रेमिकाओं से समझौते की तरह , घिसे पिटे विषयों पर काव्य और गद्य लेखन प्रेम को मैं ढोते-ढोते ऊब चुका था। आपके इस अखंड गहमरी का साहित्यिक बाजार भाव हर्षद मेहता के शेयरो की तरह गिर रहा था। ऐसे में मेरी मनोदशा का अन्दाजा आप स्वंय भी लगा सकते हैं, क्योंकि आप में से भी कोई महान पत्रकार है, तो कोई महान कार्टूनिस्ट तो कोई पैरोडी मेकर। मेरे अनुयायी भी बासी बिरयानी खाते-खाते थक चुक थे। इन्ही सब ख्यालो में डूबा मैं हिमाँयू रोड से बाबर रोड़ आकर, अकबर रोड़, होते हुए शाहजहां रोड और फिर मस्‍ताना हाउस के पास से यू टर्न लेकर, बहादुरशाह जफ़र रोड तिराहे से लेफ्ट लेकर मैं हजरत निजामुद्दीन पहुँचने वाला ही था कि सड़क के किनारे एक 52 बीधे के दुकान पर नज़र गई, जहाँ दर्जनो लोग टी0वी0 स्क्रीन के समक्ष ऐसे उपस्थिति दर्ज कराये थे, जैसे सहवाग चिन्नास्वामी स्टेडियम में शोयेब अख्तर की धुलाई कर रहा हो। मैं भी रूक कर भीड़ में शामिल हो गया। जैसे-जैसे पल बीतता गया , मेरे चेहरे से थकान गायब होने लगी, दिल प्रसन्न होने लगा। आज बनारस के आटो चालको से सीखा हुनर काम आया, मैं भीड़ को चीरता टीवी स्क्रीन के एकदम पास पहुँच गया। काफी देर तक वहाँ ऐसे खड़ा रहा जैसे कोई भक्त हिमालय पर खड़ा होकर, परमेश्वर को प्राप्त करने की कोशिश कर रहा हो। मेरी मुराद इस टीवी देवता ने पूरी कर दी थी। मैं सीधे अपने ताजमहल पहुँचने की कोशिश वैसे ही करने लगा जैसे ताजमहल बनवाने के प्रयास में लगा हूँ, मगर ताजमहल बनवाने की जरूर आर्हता पूरी नहीं कर पा रहा हूँ। तेज घूप में गिरते पडते घर आया और स्नो पाउडर लगा कर, सेन्ट वेन्ट मारकर ऐसे तैयार होने लगा जैसे किसी पूर्व प्रेमिका ने मिलने के लिये बुलाया हो। मेरे अन्दर रक्त संचार इतना तेज हो चुका था कि मैं दे दनादन दे दना कई दिनो की काव्य लेखन प्यास मिटाते हुए 10-12 रचनाये, फेसबुक, वाट्सअप और टियूटर पर पोस्ट कर दिया। पोस्ट करके मैं दो साँसे नहीं लिया कि धड़ाधड़ लाइक और कमेंन्ट आने शुरू हो गये। मैनें अपनी पीठ खुद ठोंकी। मैं इस खुशी के आलम में अपनी चन्द्रमुखी जो मुझे हरदम अमावस की चाँद लगती थी, उसकी बाहों में झूल गया। उसे अपने पास बैठा लिया और उसे सोशलमीडिया पर आये प्रेम दिखाने लगा। तब तक मेरी तरह न जाने कितने साहित्य के पुजारी, पत्रकार, कार्टूनिस्ट, चित्रकार भी अपनी अपनी भूख मिटा चुके। क्या हिन्दू, क्या मुसलमान सभी जम कर प्रहार कर रहे थे। हर तरफ बस वही पोस्ट दिख रही थी, जो मैने टीवी पर देखा मैं भी सबके पोस्टो पर अपनी बहादुरी दिखा रहा। चारो तरफ बाबा राम रहीम की जय जय कार हो रही थी, जय जय कार किसी रूप में हो सकती है, शायद आप नहीं जानते तो आज अाप मुझ ज्ञानी से जान लें।
इन्हीं पोस्टो के बीच मेरे एक परम मित्र मुझसे टकरा गये।, कहा शर्म नहीं आती ऐसा लिखते, अपने धर्म का मज़ाक उड़ाते, राम रहीम बाबा पर लिखते, आशा राम बाबू पर लिखते, मज़ाक बना दिया है तुम सबने सनातन धर्म का। मैने भी छूटते जबाब दिया, बाबाओं को जब शर्म नहीं आती तो मुझे क्यों आयेगी, आस्था पर प्रहार करने वालों को शर्म नहीं आती तो मुझे क्यों आयेगी? हम तो उसकी करतूतें लिखेगें ही। हमारा काम ही है लिखना।
मेरी बाते सुन कर वह मंद मंद मुस्‍काया , मैंने पूछा आपकी इस कालित मुस्‍कान का राज क्‍या है ? कहा बेटा देख रहा हूँ कि भारतीय राजनीत का रंग किस तरह तुम पर हावी हो गया, घरवाली ने 10 रूपये क्‍या मॉंग लिये पूरे मुहल्‍ले में उसकी फिजूलखर्ची की चर्चा दिया, और बाहर वाली ने हजारो पर कुंडली मार दिया तो बॉंये हा‍थ को पता नहीं चला।
कभी मुसलमानो की तरह हसुऍं को अपनी तरफ खींच कर देखो अखंड गहमरी, जैसे वो काश्‍मीरी पत्‍थरबाजो का, मरदसे के अत्‍याचारों का, अपने बाबाओं के कृत्‍याें का, अातंकवादीयों के जनाजे में जाने का, अपनी बिरादरी द्वारा भारत के झन्‍डे जलाये जाने ,भारत माता को डायन कहने और पाकिस्‍तान की जीत पर खुशियॉं मानने के साथ साथ अपने कौम द्वारा किये गये किसी गलत का कार्य का, खास तौर से अपने धर्म से और भारत विरोधी मामले में विरोध नहीं करते, मगर तुम लोग अपने धर्म का, अपने नेताओं का, अपने अपनो को धोने का एक भ्‍ाी मौका नहीं छोड़ते हो, पेजे, भर देते हो, अपने दामन को बिना देखें लम्‍ब्‍ाी लम्‍बी आधात्‍म की बाते लिखन बैठते हो, वाह रे वाह, हा हा हा ।
उसकी हँसी मुझे बाबा 420840 अखंन्‍डा पाखंडी नन्‍द जैसी लगी, तो मैने उसे बाबा जी कह दिया, वो ऐसे भड़क गया जैसे मैने किसी प्रेमिका को 5 स्‍टार होटल का सपना दिखाकर चौराहे पर चाय पिलाने ले आया। उसकी दुखती नस पर फिर हाथ रख कर कहा , ''चूरचंदर की मम्‍मी के प्‍यारे पति देव जी'' मैं तो चरित्रों को लिखूँगा ही । जरा बताओगें कि इन बाबाओं को बाबा बनाता कौन हैं। कल के उच्चके, ड्रामेबाज, समाज से निस्कासित या अपने पैसों के दम पर आडंबरों का प्रदर्शन कर समागम करते हैं तो तुम उनका समर्थन करते हो। समय बेसमय परिजनो समेत उनकी सेवा में पड़े रहते हो। उसके मुँख से निकली बातों को भगवान की वाणी मानते हो।
महान ग्रन्‍थ रामायाण,महाभारत और गीता को छोड़ कर तुम बाबाओं की बाते सुन्‍ाने जाते हो, राम, सीता, शंकर, पार्वत, सहित 33 कोटि देवताओं को छोड़ कर तुम बाबाओं की सेवा में लगे रहते हो, खुद भी जाते हो और अपनी स्‍त्री और बच्‍चों को ले जाते हो। रात्रि रात्रि पर समागम के नाम पर वहॉं पड़े रहते हो, बाबा की सेवाओं में अपने परिजनो को भेजते हो। आखिर क्‍यों? मेरी बाते सुन कर वह ऐसे हिला जैसे भूकंप आ गया हो, मैने भी जो अंग्रेजी बोल कर अंग्रेजो को भारत से भगाया उसे फिर अजमाया, मैने कहा why , tell tell बोलो बोलो , उसके द्वारा कोई जबाब न आता देख कर मैने फिर कहा hello मिस्‍टर रमधनिया के father मगर वह तो कुछ बोला ही नहीं।
मैने एक चूडी और कसी,भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, हम कौमी एकता की गंन्‍दगी मेंं ''स्‍वारी'' अच्‍छा में इस कदर गिर गये है कि हम खुद अपना घर जला कर, हँसी उड़ाते है। देखो मैं महान साहित्‍यकार का तगमा गले में लटकाये घूमता हूँ, दाम भी पाता हूँ, नाम भी पाता हूँ , मैं उन्‍हें आदार्वज है, जरूर कहता हूँ वो जय राम जी की बोले या न बोले । इस लिए मैं तो बाबाओं का विरोध करूँगा चाहे वो बाबा सच्‍चा हो या झूठा। बातो ही बातो में मैने भी अपने ज्ञान का इतना प्रकाश फैला दिया कि वह उसमें जलने लगा जैसे अाप अब मुझे गालियॉं दे रहे है, वैसे वह भी देने लगा।
अब मेरी वर्तमान से लेकर पूर्व प्रेमिकाएं धीरे धीरे आनी शुरू हो गई है, अब मुझे भी इजाजत दीजिए, और एक बात और घोड़े को देखकर मेढ़की को जोश आने वाला काम मत करीयेगा, क्‍योकि मैं तो पूर्व प्रेमिकाओं की बाते कर अपनी प्राणो की प्‍यारी मतलब प्राणो से प्‍यारी पत्‍नी के चरण पखार कर सुखी हो जाऊँगा, मगर आप तो पिट ही जायेगें। वैसे एक राज की बात बता दूँ , जो मेरे दादा के चाचा के नानी के मौसा की बेटी के बूआ के दामाद ने बताया था कि पत्‍नी के हाथो पिटने का अपना ही मजा है, सीख भी मिलती है शिक्षा भी मिलती है, नाम भी होता है।
अब तो आप समझ ही गये होगें कि अखंड गहमरी का नाम, इतना बलवान और प्रसिद्व कैसे हो रहा है।
अखंड गहमरी, गहमर, गाजीपुर।।

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