मेरे
उत्तर प्रदेश में आज 30 माँ की गोद सूनी हो गई। तीस नौनिहाल इस नश्वर
संसार का पूर्ण रूप देखे बिना, जननी और जनक के आँखो में कभी न सूखने वाले
अश्क देकर विदा हो गये। इस हादसे के बाद सभी ये जानने, पूछने और समझने में
लगे है कि आखिर दोषी कौन है?
आरोप-प्रत्यारोप, सजा-इस्तीफा सब की बात हो रही है।
दोषी को खोजने की बात हो रही है, मगर दोषी का नाम सबके सामने, सबकी जुबान पर है, मगर कोई उससे पहचान नहीं पा रहा है। मैं बताता हूँ दोषी कौन है? कौन है इन मासूमों का हत्यारा?
कोई नेता, अधिकारी, व्यापारी या आम जन नही, ''मैं हूँ दोषी मैं हूँ हत्यारा इन मासूमों का,'' जिसे आप '' सरकारी अस्पताल'' कहते हैं। मेरी दिवारे है उन मासूमों की हत्यारिन।
आज मैं सेवा के मंदिर से लक्ष्मी का दरबार बन चुकी हूँ। विलासिता और भ्रष्टाचार का मंदिर बन चुकी हूँ। मेरे अंदर समाये पुजारी रूपी डाक्टर लक्ष्मी के दास बन चुके हैं।
मेरे पालक मेरे जो देश के सफेदपोश है वो मेरे पुजारीयों के साथ बैठ कर,मेरे नाम पर न केवल अपने वोटो की राजनीति कर रहे हैं बल्कि अपनी तिजोरियों को भर रहे हैं। मैं इस लिये दोषी हूँ कि मैं वर्षो से सब देख कर भी चुप हूँ। दिन के उजाले से रात के अँधेरे तक मेरे अन्दर मोटे कमीशन पर लाई गई मुफ्त बाँटने की मँहगीं दवाईयो को आँधे पौने दामो में मेरे ही बहन जिसे आप सब मेडिकल स्टोर कहते हैं , उसकी चारदिवारी में पहुँचा दी जाती हैं। और फिर वो दवाईयाँ मजबूरो को जितनी बड़ी मजबूरी उतनी बड़ी कीमत पर बेची जाती हैं। कमीशन मेरे पुजारियों के पास। मेरे पुजारी मेरे अन्दर रखी हुई जाँच की मशीनों से बहुत प्रेम करते है, उनको कष्ट देना नहीं चाहते,इस लिए उनको बिमार कर देते हैं और पड़ोसी को कष्ट देते हुए बिमारो को जाँच के लिए उनके पास भेज देते हैं और बदले में केवल माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त करते है। गलती उनकी नहीं हैं, वो तो जिस्म पर लगें मोटे कमीशनो के टायल्स की चिकनाई पर फिसल जाते हैं।
फिसले भी क्यों नही जब मुझ में यानि सरकारी अस्पतालों में सही इलाज और समुचित व्यवस्था होगी तो मेरी सौतन और मेरे पुजारीयो की प्रेमिका जिसे आप नीजी अस्पताल के नाम से जानते हैं उनकी दाल रोटी कैसे चलेगी, क्योकि इस महगाई में दाल भी आसमान का सफर तय कर रही हैं। मेरे संरक्षको की तो बात ही निराली हैं। मैं तो उनकी बूढी बिमार पत्नी की तरह हूँ जिसे वह कभी कभार गाजे बाजे के साथ मिलने आते है, मेरे तन के अच्छे कपड़े,सजावट देख कर खुश हो जाते है, मुझसे प्रेम की, मेरे देख रेख की लम्बी-लम्बी बातें कर लम्बी गाड़ी से चले जाते हैं। वो मेरे कपड़ो के पीछे के धावो को नहीं देखते, और मेरे कटे हाथ नहीं देखते वह नहीं देखते मेरे जख़्मों को। देखे भी क्यो? अगर वह ये सब देखेगें तो मेरे पुजारीयों से लक्ष्मी का वरदान कैसे प्राप्त करेगें।
मैं सब देख कर, अपने में समाहित कर कुढती रहती हूँ, मासूमो के कत्ल करती रहती हूँ ।
कभी कभी तो सोचती हूँ गिरा दूँ अपनी दिवारे, अपने पुजारियों और संरक्षको के जिस्म पर, बना दूँ यही उनकी कब्र, पर दूसरे पल मुझे ख्याल आ जाता कि मेरी दिवारो से लगे पाइपो से कितनो की जिन्दगी चल रही है, मेरे अन्दर बहुत से लाचार और गरीब जिन्दगी की जंग लड रहे है। उनको कैसे मार दूँ। यही सोच कर चुप रहती हूँ कुछ नहीं कर पाती। बस सुनती रहती हूँ एक दूसरे का आरोप प्रत्यारोप, मैं कुछ कर नहीं हिमालय की तरह जो अत्याचार का बदला पत्थरो को गिरा कर लेते, नदियो की तरह जो बहा कर लेती, धरती कई तरह जो भूकंप की शक्ल में दोषीयों को सजा देती हैं। एक नही सैकड़ो उदाहरण है बेजुबानों द्वारा भक्षकों को सजा देने की, मगर मैं ऐसी बेबस और लाचार सिवा सुनने सहने के कुछ नहीं कर सकती। इस लिए इन मासूमो की हत्या की दोषी मैं हूँ। मैं हई हूँ हत्यारन।
एक हत्यारन अखंड गहमरी एक हत्यारन।
अखंड गहमरी
आरोप-प्रत्यारोप, सजा-इस्तीफा सब की बात हो रही है।
दोषी को खोजने की बात हो रही है, मगर दोषी का नाम सबके सामने, सबकी जुबान पर है, मगर कोई उससे पहचान नहीं पा रहा है। मैं बताता हूँ दोषी कौन है? कौन है इन मासूमों का हत्यारा?
कोई नेता, अधिकारी, व्यापारी या आम जन नही, ''मैं हूँ दोषी मैं हूँ हत्यारा इन मासूमों का,'' जिसे आप '' सरकारी अस्पताल'' कहते हैं। मेरी दिवारे है उन मासूमों की हत्यारिन।
आज मैं सेवा के मंदिर से लक्ष्मी का दरबार बन चुकी हूँ। विलासिता और भ्रष्टाचार का मंदिर बन चुकी हूँ। मेरे अंदर समाये पुजारी रूपी डाक्टर लक्ष्मी के दास बन चुके हैं।
मेरे पालक मेरे जो देश के सफेदपोश है वो मेरे पुजारीयों के साथ बैठ कर,मेरे नाम पर न केवल अपने वोटो की राजनीति कर रहे हैं बल्कि अपनी तिजोरियों को भर रहे हैं। मैं इस लिये दोषी हूँ कि मैं वर्षो से सब देख कर भी चुप हूँ। दिन के उजाले से रात के अँधेरे तक मेरे अन्दर मोटे कमीशन पर लाई गई मुफ्त बाँटने की मँहगीं दवाईयो को आँधे पौने दामो में मेरे ही बहन जिसे आप सब मेडिकल स्टोर कहते हैं , उसकी चारदिवारी में पहुँचा दी जाती हैं। और फिर वो दवाईयाँ मजबूरो को जितनी बड़ी मजबूरी उतनी बड़ी कीमत पर बेची जाती हैं। कमीशन मेरे पुजारियों के पास। मेरे पुजारी मेरे अन्दर रखी हुई जाँच की मशीनों से बहुत प्रेम करते है, उनको कष्ट देना नहीं चाहते,इस लिए उनको बिमार कर देते हैं और पड़ोसी को कष्ट देते हुए बिमारो को जाँच के लिए उनके पास भेज देते हैं और बदले में केवल माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त करते है। गलती उनकी नहीं हैं, वो तो जिस्म पर लगें मोटे कमीशनो के टायल्स की चिकनाई पर फिसल जाते हैं।
फिसले भी क्यों नही जब मुझ में यानि सरकारी अस्पतालों में सही इलाज और समुचित व्यवस्था होगी तो मेरी सौतन और मेरे पुजारीयो की प्रेमिका जिसे आप नीजी अस्पताल के नाम से जानते हैं उनकी दाल रोटी कैसे चलेगी, क्योकि इस महगाई में दाल भी आसमान का सफर तय कर रही हैं। मेरे संरक्षको की तो बात ही निराली हैं। मैं तो उनकी बूढी बिमार पत्नी की तरह हूँ जिसे वह कभी कभार गाजे बाजे के साथ मिलने आते है, मेरे तन के अच्छे कपड़े,सजावट देख कर खुश हो जाते है, मुझसे प्रेम की, मेरे देख रेख की लम्बी-लम्बी बातें कर लम्बी गाड़ी से चले जाते हैं। वो मेरे कपड़ो के पीछे के धावो को नहीं देखते, और मेरे कटे हाथ नहीं देखते वह नहीं देखते मेरे जख़्मों को। देखे भी क्यो? अगर वह ये सब देखेगें तो मेरे पुजारीयों से लक्ष्मी का वरदान कैसे प्राप्त करेगें।
मैं सब देख कर, अपने में समाहित कर कुढती रहती हूँ, मासूमो के कत्ल करती रहती हूँ ।
कभी कभी तो सोचती हूँ गिरा दूँ अपनी दिवारे, अपने पुजारियों और संरक्षको के जिस्म पर, बना दूँ यही उनकी कब्र, पर दूसरे पल मुझे ख्याल आ जाता कि मेरी दिवारो से लगे पाइपो से कितनो की जिन्दगी चल रही है, मेरे अन्दर बहुत से लाचार और गरीब जिन्दगी की जंग लड रहे है। उनको कैसे मार दूँ। यही सोच कर चुप रहती हूँ कुछ नहीं कर पाती। बस सुनती रहती हूँ एक दूसरे का आरोप प्रत्यारोप, मैं कुछ कर नहीं हिमालय की तरह जो अत्याचार का बदला पत्थरो को गिरा कर लेते, नदियो की तरह जो बहा कर लेती, धरती कई तरह जो भूकंप की शक्ल में दोषीयों को सजा देती हैं। एक नही सैकड़ो उदाहरण है बेजुबानों द्वारा भक्षकों को सजा देने की, मगर मैं ऐसी बेबस और लाचार सिवा सुनने सहने के कुछ नहीं कर सकती। इस लिए इन मासूमो की हत्या की दोषी मैं हूँ। मैं हई हूँ हत्यारन।
एक हत्यारन अखंड गहमरी एक हत्यारन।
अखंड गहमरी
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