न दुनिया बदली, न दुनिया के लोग, हजारो लोग साथ, आपकी बधाईयॉं, शुभकामनाएं, सब कुछ तो है। आधात्म का ज्ञान, संसारिकता का ज्ञान, मगर ये सब मिल कर भी आत्मा को शांति देने में असर्मथ है आखिर क्यों
आज 37 सालो में पहली बार हुआ, जब किसी ने अपने सीने से नहीं लगाया, मुस्कुरा कर कपड़े या रूमाल देते हुए, लाखो बलाये नहीं लिया।
सुबह से शाम तक मिष्ठान लाने और चढाने की जिद और फोन नहीं किया, आज को मुझे कुछ देने के लिए लड़ा नहीं।
न कोई नई पहल करने का मन, बहुत कुछ सोचा था, करना चाहा था, मगर आज ऐसा कि मंदिर की सीढ़ीयॉं भी न चढ़ सका। न चाहते हुए भी अश्क आते चले गये।
आज 37 सालो में पहली बार हुआ, जब किसी ने अपने सीने से नहीं लगाया, मुस्कुरा कर कपड़े या रूमाल देते हुए, लाखो बलाये नहीं लिया।
सुबह से शाम तक मिष्ठान लाने और चढाने की जिद और फोन नहीं किया, आज को मुझे कुछ देने के लिए लड़ा नहीं।
न कोई नई पहल करने का मन, बहुत कुछ सोचा था, करना चाहा था, मगर आज ऐसा कि मंदिर की सीढ़ीयॉं भी न चढ़ सका। न चाहते हुए भी अश्क आते चले गये।
आखिर क्या था, ऐसा उस इंसान में जिसके अकेले न होने रहने मात्र से, यह
पूरा संसार खाली दिखाई पड़ रहा है। जिंन्दादिली, मुस्कुराहट, साहस,
ज्ञान, आधात्म सब गायब, कुछ काम नही आया, कोई नहीं उस खाली स्थान को भर
पाया।
शायद यही सब कारण है कि उस इन्सांन को, उस रिश्ते जिसकी कमी पूरा ब्रहम्माण मिल कर पूरा नहीं करता सकता, संसार तो ससांर देवताओं ने भी दिया है उसको सबसे ऊँचा स्थान, सबसे बड़ा नाम, उसको कहा है सबसे बड़ा रिश्ता, जो बिना किसी स्वार्थ सब कुछ गवॉं कर, भूखा रह कर अपने कर्तवय को हस कर निभाता है, बिना किसी शिकवा शिकायत के।
आप सभी को धन्यवाद, प्रणाम
शायद यही सब कारण है कि उस इन्सांन को, उस रिश्ते जिसकी कमी पूरा ब्रहम्माण मिल कर पूरा नहीं करता सकता, संसार तो ससांर देवताओं ने भी दिया है उसको सबसे ऊँचा स्थान, सबसे बड़ा नाम, उसको कहा है सबसे बड़ा रिश्ता, जो बिना किसी स्वार्थ सब कुछ गवॉं कर, भूखा रह कर अपने कर्तवय को हस कर निभाता है, बिना किसी शिकवा शिकायत के।
आप सभी को धन्यवाद, प्रणाम
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