वैसे तो आदमी के जीवन में हर दिन कुछ न कुछ रंग दिखाता है, मगर कुछ ऐसे दिन
होते हैं जो खास रंग दिखाते हैं। वैसा ही दिन मेरे जीवन में है 01 अक्टूबर
2009 की रात 11:15 जब मेरी कार तीन ट्रको के बीच फुटवाल बन गई। जिसे मैं
अकेला चला रहा था। जब होश आया तो उस विराने में कार के इंजन की तेज आवाज जो
एक्सलेटर टूटने के कारण रेस हो चुका था। चारो गेट टूट कर लाक हो चुके थे
और बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं था। दाहिना पैर हिल नहीं रहा था। कमर
सीधी न नहीं हो रही थी। जाने कहाँ से हिम्मत आई, बाये पैर
को हाथो के सहारे पकड़ कर ऊपर निकाला , ड्राइविंग गेट तोडा, बाहर निकला,
बैटरी का तार तोड़ कर कार का इजंन बंद किया जो अब कार को जलाने के कागार पर
था।
फोन कर सबको सूचना दिया, पत्नी से मज़ाक किया। सभी लोगो के आने तक बोनट के सहारे खड़ा रहा और उनके आने पर मैं नींद की दुनिया में , परिजनो का अस्पतालो की दौड़, हर जगह से रिस्क- रिस्क।
अन्त में बड़े भाई आन्नद कुमार उपाध्याय, राम बिलास हास्पिटल वाराणसी के कुशल नेतृत्व में 04 अक्टूबर को 14 घंटे दाहिने पैर, कमर, और चेहरे के चले सफल आपरेशन के बाद 09 अक्टूबर को बड़े भाई डा. साहब श्री आन्नद उपाध्याय की व्यवस्थाओं पर अपना अस्पताल के बेड पर जन्मदिवस मनाने का शानदार ,जानदार अनुभव लिया,गिफ्ट भी लिया।
महीनो बिस्तर पर रहने के बाद फिर बंदर की तरह उछल कूद चालू।
हड्डियों और घुटने में दम नहीं है तो क्या हुआ।
हौसले की उड़ान से तो पहाड़ों को भी गिरा दूँ।।
अखंड गहमरी...यादो के झरोखों से।।
फोन कर सबको सूचना दिया, पत्नी से मज़ाक किया। सभी लोगो के आने तक बोनट के सहारे खड़ा रहा और उनके आने पर मैं नींद की दुनिया में , परिजनो का अस्पतालो की दौड़, हर जगह से रिस्क- रिस्क।
अन्त में बड़े भाई आन्नद कुमार उपाध्याय, राम बिलास हास्पिटल वाराणसी के कुशल नेतृत्व में 04 अक्टूबर को 14 घंटे दाहिने पैर, कमर, और चेहरे के चले सफल आपरेशन के बाद 09 अक्टूबर को बड़े भाई डा. साहब श्री आन्नद उपाध्याय की व्यवस्थाओं पर अपना अस्पताल के बेड पर जन्मदिवस मनाने का शानदार ,जानदार अनुभव लिया,गिफ्ट भी लिया।
महीनो बिस्तर पर रहने के बाद फिर बंदर की तरह उछल कूद चालू।
हड्डियों और घुटने में दम नहीं है तो क्या हुआ।
हौसले की उड़ान से तो पहाड़ों को भी गिरा दूँ।।
अखंड गहमरी...यादो के झरोखों से।।
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