मंगलवार, 3 अगस्त 2021

आदरणीय योगी जी

 आदरणीय योगी जी
चरण स्‍पर्श
पंचायती चुनाव के पूर्व न्‍यायालय द्वारा लाकडाउन लगाने के आदेश पर आप ने कहा था कि हम लोगों को भूखे मरते नहीं देख सकते, हमारे पास संसाधन है हम हालात पर कन्‍ट्रोल कर लेगें। आप और आपके एसी कमरों में बैठे अधिकारी बार बार लाकडाउन नहीं लाकडाउन नहीं का संदेश प्रसारित कर रहे थे।
पंचायती चुनाव बीतते ही फिर ऐसा क्‍या हो गया कि आप लाकडाउन पर लाकडाउन बढ़ाते चले जा रहे है? आपके संसाधन खत्‍म हो गये? आप और आपके अधिकारीयों की क्षमता खत्‍म हो गई? या पंचायत चुनाव बीतने के साथ साथ आपकी सोच बदल गई?
महोदय बड़ी विनम्रता के साथ यह अखंड गहमरी आपसे कहना चाहता है कि अमीर तो अपनी बचत खा रहा है। मंत्री, सांसद विधायक एवं आपके उच्‍चधिकारीयों की तो बात ही निराली है उनके लिए तो यह आपदा नहीं अवसर है। गरीब लाइन में लग कर खा ले रहा है। वेतन भोगी, पेंशन भोगी अपने वेतन और पेंशन से खा ले रहा है मगर जरा सोचीये समाज की रीड़ कहे जाने वाला मध्‍यवर्गी परिवार क्‍या करे, उसके पास तो न बचत है और न वह अपने मान-सम्‍मान के कारण लाइन मे ही लग पा रहा है। वह तो न अमीरो की श्रेणी में है न गरीबों की श्रेणी में, वह जाये तो कहॉं जाये? करे तो क्‍या करे?
नीजी स्‍कलो के अध्‍यापक व कर्मचारी।
चाय-पान, दवा-दारू, फल-सब्‍जी, किराना-दूध के धंन्‍धे को छोड कर अन्‍य व्‍यापारी।
प्रशिक्षण केन्‍द्र व कोचिंग सेंन्‍टर संचालक, वाहन संचालक  
अपना घर द्वार छोड़ कर अन्‍य शहरो में जाकर छोटी मोटी कम्‍पनीयों में काम कर के परिवार चलाने वाले लोग
गैर वेतन भोगी मीडियाकर्मी, जैसे अन्‍य कईयों के पास तो न रोजगार बचा है न बचत ऐसे में वह अपना परिवार कैसे चलाये?

परीक्षा के नाम पर बच्‍चों की फीस हेतु स्‍कूलों से प्रताड़ना, कमरा खाली कराने की घमकी देकर किराये की प्रताड़ना, सब कुछ बंद हो जायेगा मगर इस पेट की ज्‍वाला नहीं शांत होगी, इसकी ज्‍वाला को शांत करने के लिए रोटी की व्‍यवस्‍था, बैंकों से कर्ज लेकर व्‍यवसाय करने वाले व्‍यापारीयों  व वाहन स्‍वामीयों को बैंक द्वारा किस्‍त व मूल जमा करने की प्रताड़ना, न जमा कर पाने की दशा मे सीबी खराब कर देना जैसी समस्‍याओं से परेशान मध्‍यवर्गी करे तो क्‍या करें? या तो वह सामूहिक आत्‍महत्‍या कर लें या फिर अस्‍त्र-शस्‍त्र उठा लें? बाकी कौन सा रास्‍ता बचा?
 दो राेटी के जुगाड़ में अपने प्रतिष्‍ठानों को खोलने पर जुर्माना, समाज से निंदा। पुलिस द्वारा दिये गये चोट के दर्द को परिवार के सदस्‍यों की ऑंखो से बचा कर ऑंसू गिराने की पराकाष्‍ठा भी वह पार कर चुका है।

मध्‍यवर्गीय परिवार में एक हाथ लेना दूसरे हाथ से देने का सिद्वान्‍त चलता है हम किराया लेते है तो राशन वाले को देते है, हम फीस लेते है तो राशन दवा को देते है, मास्‍टरों को देते हैं, ऐसे में किसको बंद करायेगेें आप?
महोदय इस महामारी से मरने वालो की संख्‍या के साथ-साथ यदि आप अन्‍य मौतों पर नज़र डालेगे तो आपको दिखाई देगा कि आज मध्‍यवर्गीय समाज पिता वीहिन है, उसकी सुनने वाला कोई नहीं है, वह व्‍यथित है। जिसके घर में यह महामारी प्रवेश कर गई उसका इलाज में या तो सब कुछ बिक जा रहा है या उसके कलेजे का टुकडा इलाज के बिना दम तोड दे रहा है, क्‍योकि आज उसके पैसा ही नहीं इस महँगे इलाज को करा पाने का

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