मंगलवार, 3 अगस्त 2021

घर का आटा

 

शह़र तो शह़र गाँव में भी आटा दुकान से खरीद कर खाने की आदत पड़ चुकी है। तेल खरीद कर खाने की आदत पड़ गई है। शह़र में तो अपनी मजबूरियां हैं। एक कमरा खुद को धूप नहीं मिलती खुद नहाने को पानी नहीं मिलता तो गेहूँ कहाँ से धुलेगा पीसेगा और मिलें भी दूर , मगर गाँव में तो 90%लोगो के यहाँ न धूप की कमी न पानी की कमी न मिलों की कमी, गहमर की बात करे तो मेन रोड से लेकर हर मुहल्लें में मिलें मिल जायेगीं।

लेकिन यहाँ जो सबसे बड़ी समस्या आ रही है

मेरी माँ-: ये बीटू तनि गेहूँया दे आऊँ पीसे के, आटा नईखे।

बीटू-: रूक जा तानी, हई क ली त जात बानी, देखत नईखी बीजी मानी।

दो दिन बाद-: ये बीटू अटवा पीस देहले होई ले आऊ।

आटा नइखे।

बीटू-: जात बानी, अभइन पिसले नईखे, का कच-कच कई ले बाड़ी रे , ले आइब न। अभहिन जरूरी काम से जात बानी.. बीटू चल दिहलन ..52 पत्ती इंटर कालेज में, डुबुकिया बाग में, गाँव क गलियन में

मेरी माँ-: मजबूरी में दुकान से पीसा केमिकल का आटा ।

बीटू

दूसरा दृश्य

मेरी पत्नी-: सुनत बानी जी, तनि गेहूँया पिसवा दिही फ़जीहत भईया के घरवा के लगे मिलिया में।

अखंड -: जा तानी । आवत बानी। शाम के ले जाइब।

सुबह ले जाईव।  हमरा जिम्मे अऊरी काम बा कि ना।

पत्नी-:  ऐ जी, अटवा पिस दे ले होई तनि ले आ दी।

अखंड -: जात बानी, अभइन पिसले नईखे, का कच-कच कई ले हऊरी, तोहरा बाप क नोकर हई जब कहबू क दे, हमरा बहुत काम बा। छनक के घर के बहरे।

चाय क पान क दुकान प रजनीत बतियावे, ये हर वो हर कूँदे फाँदे, हवा में तीर चलावे।

पत्नी मोबाइलिया से -: अच्छेलाल , हम बोलत अई, फलना क घर से तनि 5 किलो आटा पेठा दीही।

भऊजी..-: ये बबुआ जी तनि गेहूँया दे आईं पीसे के, आटा नईखे।

बीटू-: रूक जा तानी, हई क ली त जात बानी, भतीजवख के भेज द, हम काम करत बानी

 

तो बताईये कैसे शह़रो से कहेगें आप कि हमारी प्रतिरोधक क्षमता अधिक है। कैसे र्ररतं

 (बीटू भी मेरा ही नाम है)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें