मंगलवार, 3 अगस्त 2021

गजगमिनियां और बड़ा साहित्‍यकार

 हा हा चम्मच चूर्ण घहा हा आप कितने बड़े रचनाकार हैं मुझे मालूम हैe सर जी। लेउघिचकिन आप उससे बड़े साहित्यकारि तो हो नहीं सकते।
मेरी बात सुन कर खटमल जी तो खटमल जी, उनके साथ मंच पर बैठैा मच्छर जी, गिरगिट जी और नाग नाथ जी सबके चेहरे वैसे थी सफेद पड़ गये जैसे किसी ने उनकी जेब से उनका ही बम निकाल कर उनके ही सर पर फोड़ दिया हो।
 हिम्उ घफुगफुबछढममणत जुटा कर 2s जी बोले ग3s see awहम CxeaCtxtzfsee ಸ್rswsरी फेशबुक डी।
 इतना, ಎ sw सुनते ही खटमल जी फैल गये, मेरी तरफ आँखे लाल करते हुए बोले कहाँ षहै आयोजक उसको बुलाओ, उसने हमें बेईज्जत कराने के लिए बुलाया है?
मैं धीरे से बोला बिल्कुल नहीं वह तो आपको आपसे  आपके घिसे-पीटे लतीफे सुनने के लिए बुलाया है।
इतना सुनते es3zही वह तीनो ऐसे जल भुन गये जैसे आग में भुट्टा। तभी मंच पर संचालक महोदय  अवतार लिये और तारीफो के पुल बाँधते हुए  न जाने क्या क्या बोल गये लेकिन उनकी बातों से मुझे यह यकीन हो गया कि बारी अब मेरी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियाँ की है। मैं तेजी से मंच से उठ कर अपने अंगुलियों को बालो में पिरो कर ठीक किया, पंजो से चेहरे को साफ किया और गजगमिनियाँ के पास पहुँचा। उसकी डेन्टिंग-पेंटिंग किट से निकाल कर स्क्रू ड्राइवर, ब्रस, रिंच देकर हाथों में आइना पकड़ कर खड़ा हो गया। इधर डेन्टिंग-पेंटिंग चालू उधर संचालक महोदय चालू। फेशबुक के आखों के इसारे पर संचालक महोदय ने तुरूप का इक्का खोलते हुए गजगमिनियाँ का नाम एनांउस किया। फिर क्या था, 590 wकिलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से चलती हुई हवा के आवाज भी तालीयों के शोर के पीछे दब गये।
गजगमिनियाँ चली, मैं भी चला, उसके हाथो में कागज, मेरे हाथों में पानी, आइना,  पर्स। वह माइक पर खड़ी मैं उसके चरणों में पड़ा। वो शुरू मैं वाह वाह।
वो पढ़ते जा रही थी, दर्शक तालीयों में मग्न। मंच पर बैठे खटमल जी, मक्खी जी, नागनाथ जी परेशान। वो एक एक करके इनके तरकश के सारे तीर अपने नाम से धड़ा-धड़ चलाये जा रही थी। जिसकी  कविता  के सामने वो भी धड़ल्ले से, समझ ही सकते हैं बेचारे की हालत क्या होगी , परन्तु फिर भी बेचारे हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे। गजगमिनियाँ ने न जाने कितने और कहाँ कहाँ के रचनाकारों की पढ़ डाली और श्रोतागण तो गजगमिनियाँ को राफेल पर चढ़ाये थे।
तभी गजगमिनियाँ चुप हुई। एक चुप पिन ड्राप साइलेंट हो गये दर्शक।  वह रोआंसी सी सूरत बनाई, और बोल पड़ी। कुल लोग कहते हैं मैं चोरी के कलाम पढ़ती हूँ, बताईये भाव ऐसे भाव और शब्द नहीं आ सकते?
बिल्कुल आ सकते हैं। पब्लिक जोर से चिल्लाई।
पब्लिक की जोर की आवाज़ मंच पर बैठे कवियों के कानो में शीशे की तरह उतर रही थी। बेचारे अब माइक पर मेरी गजगमिनियाँ के बारे में कुछ बोल ही नहीं सकते थे।
कुछ देर इधर उधर की बाते कर गजगमिनियाँ ने अपना काव्य पाठ समाप्त किया और अपनी जगह पर आ बैठी। मैं तुरंत पानी की बोतल और रूमाल उसकी सेवा में हाजिर किया। आँखो ही आँखो में इशारे मैं बता दिया कि शानदार रही। तभी खटमल जी मेरे पास आये और कहा शर्म नहीं आती है दूसरो की रचना पढ़ते उस पर भी बेशर्मी देखो मेरी ही रचना मेरे ही सामने वो भी अपने नाम से।
किसी रचना ? कौन क्या पढ़ दिया? क्या बोल रहे हैं आप?मैं जोर से चिल्लाया। तभी वहाँ नागनाथ जी पहुँच गये, मेरे मुहँ को दबा कर बोले चुप रहो-चुप रहो।
मैं भी एक कमीना, इशारे से बोला चुप रहने के दो हजार लगेगें। मरते क्या नही करते, आयोजक से मिले लिफाफे को कहराते हुए खोले और बड़ी मुश्किल से दो हजार का एक नोट निकाल कर दिये हुए बोले माफ करना गहमरी गलती हो गई। दो हजार की सजा मिली। मुझे पैसे वास्तव में लेते देख गजगमिनियाँ धीरे मुस्कुरा पड़ी और अपने सेंडल के तरफ ईसारा की।
अब अब सोच में पड़ गया कि वह इस ठगे पैसो से नई  सेंडल खरीदने को कह रही है या अपने सेंंडल से हमारे सर को ड्रम की तरह बजाने को कह रही है।  मैं वक्त पर अंजाम छोड़ कर  खटमल की तरफ मुखातिब हो कर बड़े ही प्यार
से बोला,  मान गये  जी न?
बिल्कुल, खटमल जी किसी तरह आवाज निकाल बोले।
मैनें उनके जले पर थोड़ा नमक छिड़का और कहा आप बेवकूफ हो, नम्बरी बेवकूफ जो इतनी मेहनत करके पहले पी.एच.डी करते हो फिर हाई स्कूल पास करते हो, तथ्यों को खोजते हो, शब्दो में गढ़ते हो, रात दिन जाग कर लिखते हो तब उसे पढ़ते हो।  देखे मेरी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियाँ और लकडू जी पकडू जी कि तरह दूसरो की रचना पढ़ा करो, कापी पर लिखा करो और मंच पल लतीफों का तड़का लगा कर दर्शक में उछाल दो। फिर देखो तालीयाँ और नोट की बरसात।
बिल्कुल सही कह रहे हो गहमरी। आज जब लाखों की संख्या में दिन रात लेखक-रचनाकार अवतार ले रहे हैं तो कहाँ तक बचा पाओगें अपनी कविता को , आज नहीं तो कल उसे चुरा ले ही जायेगें। तुम्हारी इज्ज़त तार तार हो ही जायेगी। तुम्हारी प्रतिमा का खून चूस ही लिया जायेगा।
मच्छर जी भिनभिनाते बोल पड़े।
तभी गिरगिट जी कूदते आये और रंग दिखाते हुए बोले गहमरी जी अच्छा ज्ञान दिया है आज चलीये पान खाने चलते हैं।
मैं भी गजगमिनियाँ के बाहों में बाह डाले उनके साथ चल पड़ा, वह कभी मुझे देखते तो कभी नज़रे बचा कर गजगमिनियाँ को, और कभी अपने लिफाफे को तौलते जिसका वजन मैं हल्का कर चुका था।

अखंड गहमरी

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