मंगलवार, 3 अगस्त 2021

गजगमिनियाँ का हिमालय से देश के नाम संदेश।

 गजगमिनियाँ का हिमालय से देश के नाम संदेश।
आज सुबह सुबह मेरी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियाँ ने मेरे चल भाष यंत्र पर अपनी कौवे सी आव़ाज प्रसारित की।
क्यों मेरे साँवरे बलम अभी तक सो रहे हो?
हाँ बड़ी ठंड है लेटा हूँ।
अरे जाहिल उठ जा, देख देश कहाँ से कहाँ गया, तुम अभी सो रहे हो।
हा हा हा बस उठ रहा हूँ, तुम क्या कर रही हो?
मैं? मैं तो तैयारी कर रही हूँ , आज जाना है पनपनियापुर रेडियो स्टेशन।
वहाँ क्या है? बंदूक चलाना छोड़ अब गाना गाओगी क्या?
सही में तुमको सब पागल कहते हैं। तुम पागल नहीं पागलों के शहँशाह हो।
मैं पागल न होता तो तुम से ही चोच लड़ता, एक सैनिक से जो फूल नहीं बंदूक लेकर आती है?
हा हा हा सावधान रहना मैं नज़र से ही नहीं हाथो से भी गोली मारती हूँ।
हा हा हा मरे को और कितना मारोगी?
जितना बचे हो पूरा, अब अपनी झकझकी छोड़ो और तुरंत ट्रेन पकड़ लठियानपुर बार्डर आओ पनपनियापुर चलना है।
वहाँ क्या होगा?
वहाँ कल सैनिक का देश के नाम संदेश प्रकाशित होगा और वह संदेश मुझे देना है।
क्यों? तुम्हारी युनिट ने किसी रेडियो वाली कंम्पनी से एग्रीमेंट  किया है क्या?
हुआ सुबह सुबह तुम्हारा दिमाग खराब? क्यों हमेशा पिटने वाली बात करते हो.मेरे आवाज का व्यंग्य पहचान वह बोली।
ओके सर आता हूँ।
अच्छा बताओ कौन सी साड़ी पहनूँ?
मैं इस सवाल के लिए तैयार था, मोटा जाकिट ऊनी साल।
नहीं तो बर्फ में खूबसूरती की कुल्फी जम जायेगी।
आहा मेरे साँवरे बलम तुम आ जाओ, तुम्हारी बाँहो में तो मरना भी गँवारा है।
चुप रहो, रखो फोन ट्रेन का समय हो रहा है।
बाय कल मिलते है।। इलूइलू।
मैं भी उठा, धकधकिया एक्सप्रेस आने का समय हो रहा था। रमेश तिवारी जी को टिकट की व्यवस्था करने को कह मैं तैयार होने लगा।
नियत समय पर ट्रेन चल पड़ी, मगर भारतीय रेल ही क्या जो समय पर पहुँच जाये।
पहुँचते पहुँचते देर हो चुकी थी। गजगमिनियाँ रेडियो स्टेशन के अंदर जाने को तैयार थी। शायद उसे मेरी मजबूरी का एहसास था इस लिए लातजूते की जगह मुस्कान के स्वागत की..चलो तुम आ गये, अब मैं बोल पाऊँगी।
मैं उसे ऐसे देखने लगा जैसे कोई माली अपने फूल को।
वह लज्जा से भर गई , मेरी आँखे नीचे करते रेडियो स्टेशन के अंदर दौड़ गई। मैं वही बैठ गया। अंदर की बात सुनने की वहाँ व्यवस्था थी । गजगमिनियाँ इस ठंड में भी अजीब फूर्ति.. बदन पर देश की शान की वर्दी  लगाये वह अजीब सुंदर लग रही थी।
मैं अपनी सोच में था तभी एक मधुर आवाज,''मेरे चमन के फूलों'' हाल में गूँजी वह आवाज अरबो में एक थी मेरे दिल में बसती थी।
आज 71वें गणतंत्र दिवस पर भारतीय सेना की तरफ से मैं गजगमिनियाँ आप सभी  को गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं देते हुए उन सभी ज्ञात और अज्ञात वीर सपूतो को नमन करती हूँ जो भारत माँ की आजादी के लिए खुद को कुर्बान कर दिये।  उनकी कुर्बानीयों का ही प्रतिफल है कि  आज हम गंणतंत्र दिवस समारोह मना रहे हैं।हम अपने संविधान के प्रति नतमस्तक हैं जिसने हमें अपने सपनों के साथ जीने की स्वतंत्रता दी।

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