मंगलवार, 3 अगस्त 2021

चले आयो तुझे

 चले आयो तुझे अपने, सभी मिलकर बुलाते है
गुजारे तुम जहॉं बचपन, वो टूटा घर दिखाते हैं

निकल कर गॉंव के घर से, गये ऐसे न फिर आये
न जाने दूर रह मुझसे, भला सुख कौन सा पाये।।
तुम्‍हारी राह तकती है, अभी भी गॉंव की गलियॉं
तुम्‍हारे याद में पागल ,न खिलती बाग में कलियॉं
महकता था कभी जो घर, वहाँ मकड़े बुने जाले ।।
न दीपक अब वहाँ जलता, लगे हर ओर हैं ताले।
तुम्हें बीते दिनो की याद, चाचा हम दिलाते है
चले आयो तुझे अपने, सभी मिलकर बुलाते है
गुजारे तुम जहॉं बचपन, वो टूटा घर दिखाते हैं।

बहन की जब उठी डोली, तुम्हें रो रो बुलाती थी।
तुम्ही हो तात सम भ्राता, सभी को वो बताती थी
जला पाती न अब चुल्‍हा, तुम्‍हारी माँ रहे भूखी
पड़ोसी की दया पर ही , मिले रोटी उसे सूखी
हजारो दर्द से तड़पे नहीं वो रात भर सोती
बदन पीला पडा उसका गिरे आँखो से बस मोती
पडे सुनसान घर के अब उसे कोने रूलाते है
चले आयो तुझे अपने सभी मिल कर बुलाते है
गुजारे तुम जहॉं बचपन, वो टूटा घर दिखाते है।।

अभी भी है खड़ा पीपल जहाँ तुम रोज थे खेले
मगर लाचार दिखता है, न लगते अब वहाँ मेले
किनारा भी नदी का तो, बहाता अश्क है अपने।
जिसे करते परेशा तुम, वो बाबा देखे ये सपने।।
चुरा कर आम अमरूद और लीची बाग से खाये।।
लगे क्यों गहमरी को ये, तुम्हें वो दिन न अब भाये।।
यही त्यौहार का मौसम, जुदाई में जलाते हैं।
चले आयो तुझे अपने सभी मिल कर बुलाते है
गुजारे तुम जहॉं बचपन, वो टूटा घर दिखाते है।।
अखंड गहमरी।।।

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