वाराणसी यात्रा का द्वितीय भाग
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गहमर वासी यदि बनारस के विषय में यात्रा स्मरण लिखे तो ...............तो 1 घंटे में पहुँच गये नहीं तो जाने कितना समय लगता।
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हम लोग सामने घाट पहुँच चुके थे, मगर सबकी जिद थी दशाश्वमेघ घाट पर स्नान करने की। धूप अब तेज हो चुकी थी। हम लोगो ने आटो लिया, वह भी जाम के झाम को जानता पहचनाता था, हमारी सारी हेकडी को जमीन पर रख अपने पैरो तले कुचलते हुए अस्सी से गदौलियाा चौराहे का 25 रूपये प्रति व्यक्ति चार्ज किया। कभी विजया सिनेमा, कभी सोनारपुरा तो कभी भेलूपुर से घूमाते घुमाते वह हम लोगो को गदौलिया चौराहे आखिर ले ही आया। वहॉं से आगे साधन से केवल हमारे राजनेता और अधिकारी ही जा सकते थे, गोद में 2 साल के बच्चें को लिये रिक्से से भी जाने की इजाजत नहीं थी। मरता क्या न करता अपने एक लौते साले के एकलौते पुत्र को अपनी प्राणो से प्यारी साली की गोद में उठवाये, चल पडा घाट की तरफ।
हम लोग घाट पर पहुॅच चुके थे, हालत रेश्म की डोर की तरह पतली हो चुकी थी। घाट पर पहुँचते हुए प्यास अपनी चरम सीमा पर थी। आम जनता के लिए पीने का पानी खरीदने के सिवा कोई चारा भी नहीं था। होता भी क्यों प्रधानमंत्री का पसंदीयता घाट वी वी आई पी होता है वहॉं चुल्लू चुल्लू पानी पीने की आवश्यकता ही नहीं, बस बीस खर्च कीजिए, विस्लरी पीजिए।हम लोगो ने गंगा में डूबकी लगाई, अब यहॉं गंगा जी के उस घाट के हालत वर्णन नहीं करूँगा।
हम लोग स्नान घ्यान करके विश्वनाथ मंदिर जाने को हुए तभी भाड़ी भीड का पता चला। मेरे बच्चों ने पहले भोजन करने की इच्छा व्यक्त की। मैने भी सोचा भूखे भजन न होई गोपाला पहले पेट पूजा की जाये। अब मैं अकेले होता तो वही कही भोजन हो जाता, मगर मेरे साढू जी एसी रेस्ट्रोरेन्ट में लेकर पहुँच गये। मैने भी दान की बछिया का दॉंत गिनना छोड दे दना दन , ले दना दन शुरू किया , बिल आया पूरे 2333 रूपये। भगवान स्वरूप साढू ने मेरे जेब में हाथ डालने से पहले ही सच्चे मोदी भक्त की तरह कैसलेस इंडिया का नारा बुलंद किया और एटीएम बढा दिया। मगर ये तेा रजा बनारस है , नेटवर्क भी वैसे धोखा दिया जैसे नेता जनता को। वह कैलसेस छोड नोटबंदी के बाद बदले गये नोट को बडे प्यार से बढायाा। गनीमत थी कि नोट थे , नहीं तो होटल में बर्तन मॉंजने को छोड कुछ नहीं होता।
खैर खाना पीना खाकर हम लोग नये विश्वनाथ जी के दर्शन पूजन को निकले। प्रोग्राम बना की शाम तक वहॉं रहेगें घूप भी कम हो जायेगीऔर शाम को सीधा सारनाथ और फिर गहमर। गदौलिया तॉंगा स्टैन्ड जो, रिक्सा स्टैन्ड होते हुए अब आटो स्टैन्ड बन चुका है वहॉं से 250 प्रति आटो लेकर सुन्दर पुर की तरफ चल पडे। सोनारपुरा पहुँचते पहुँचते आटो वाले ने तीन गलियों ने निकालने की कोशिश किया मगर हम वापस गदौलिया ही पहुँच जाते। हार कर हम लोगो ने स्टेशन हाने आने का फैसला कर लिया। गिरजाघर चौराहे से कैंट का आटो लिया, लहुराबीर चौराहे तक आटो मन की गति से उड रहा था। चैाराहे से हम न तो जगतगंज की तरफ और न जो मलदहिया चौराहे की तरफ जा सकते थे। किसी तरह आटो वाले ने अनाथ आश्रम तक पहुँचा वहॉं से कवाडी गली होते हुए निकलना चाहा, वहॉं भी जाम, किसी तरह हम 1 घंटे में हम लोग पिचास मोचन होते हुए की तरु तरफ निकले वहॉं भी जाम।
कसम साली की गदौलिया से कैंट आने में पूरे 2 घंटें लगे, घूमने का इरादा , भाजपा , पत्नी की डॉंट के डर से घरवालीबाहर वाली रहने के तरह बदल चुका था। हम लोग रेलवे स्टेशन आ गये। गत केैन्ट स्टेशन आने पर पता चला कि सारी ट्रेन लेट है, प्लेटफार्म पर यात्रीयों मधुमक्खी की तरह एक से एक लगे हुए थे।
हम लोगो ने गहमर नीजी संसाधन से आने का मन बनाये, लेकिन 5000 हजार से कम कोई आने को तैयार नहीं था। अन्त में 375 रूपये हमने एक पुन: मैजिक बुक किया और मुगलसराय के लिए चल पडे। कैंन्ट रेलवे स्टेशन से पीली कोठी आते आते अब कोई कसर बाकी नहीं रह गई थी। मैजिक वाला भी आग्रह करने लगा कि उसे हम छोड दे। मगर हम भी कसाई के बाप ठहरे। किसी तरह 16 किमी की यात्रा 2 घंटे में बुलेट की रफ्तार से पूरी हुई और हम लोग मुगलसरााय से पैसेजर पकड कर गहमर आये।
गहमर आकर मेरी साली ने बोला लौट कर बूद्वू घर को आये।
इस तरह खाया पीया कुछ नहीं गिलास तोड़ा बारह आने की कहावत को चरितार्थ करता बनारस यात्रा समाप्त हुई।
बुधवार, 4 अगस्त 2021
वाराणसी यात्रा का द्वितीय भाग
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