वैचारिक पत्रकारिता के पर्याय थे ललित सुरजन
हिंदी पत्रकारिता के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर ललित सुरजन जी नहीं रहे । उनके जाने के साथ वैचारिक पत्रकारिता की एक कड़ी भी लुप्त हो गई । पत्रकारिता के क्षेत्र में देशबंधु अखबार को वैचारिक प्रतिबद्धता का अखबार माना जाता रहा। और ललित जी ने इस परंपरा को अंतिम सांस तक बाधित होने नहीं दिया। वह वैचारिक पत्रकारिता के पर्याय थे। तमाम संकटों के बीच भी उनका अखबार अपनी वैचारिक धार के साथ प्रकाशित होता रहा। ललित जी एक ऐसे प्रकाशक के रूप में उभरे, जिसने अखबार के प्रबंधन का काम कम, अखबार को वैचारिक प्रकल्प के रूप में अधिक स्थापित किया। निधन के दो दिन पहले तक वे अपने अखबार में धारावाहिक लेखन कर रहे थे, जिसका नाम ही उन्होंने दिया था, ' चौथा स्तंभ होने से इंकार'। उसका छब्बीसवां एपिसोड उनके निधन के दो दिन पहले ही प्रकाशित हुआ था। वे इन दिनों फेसबुक के माध्यम से भी अपनी अभिव्यक्ति दे रहे थे। कुछ चर्चित अंग्रेजी कविताओं का वे अनुवाद पोस्ट कर रहे थे और कविताओं का पाठ भी। काव्य पाठ करने वाले उनके वीडियो को फेसबुक में देखा जा सकता है।
ललित जी पत्रकारिता की उस परंपरा के अनुगामी थे, जिस परंपरा में एक पत्रकार साहित्यकार भी हुआ करता था ।ललित जी समय-समय पर कविताएं भी लिखा करते थे। उनके दो काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके थे । कुटुमसर की अंधी मछलियों पर लिखा लिखी गई उनकी कविता मेरे जेहन में अब तक बरकरार है । यात्रा-संस्मरण की भी उनकी कुछ पुस्तकें प्रकाशित हुई। देशबंधु के साहित्य-परिशिष्ट में उनकी वैचारिक प्रतिबद्धता स्प्ष्ट दिखाई देती थी । उस में छपने वाली रचनाएं देशबंधु के सोच को दर्शाती थी। ललित जी ने वर्षों तक 'अक्षर पर्व' नामक साहित्य पत्रिका का प्रकाशन भी किया, जिसकी देश भर में अपनी विशेष पहचान बनी। ललित जी ने छत्तीसगढ़ हिंदी साहित्य सम्मेलन नामक संस्था के माध्यम से समय-समय पर अनेक महत्वपूर्ण आयोजन भी किए, जिसमें छत्तीसगढ़ के महत्वपूर्ण लेखक शामिल होते थे । उसके वार्षिक उत्सव में बाहर से भी वरिष्ठ लेखकों को बुलाकर उनके व्याख्यान कराए जाते थे। ललित जी ने अनेक रचना शिविरों का भी सफल आयोजन किया, जिस में शामिल होकर नये लेखकों को बहुत कुछ सीखने का अवसर मिला । ललित जी सुरजन तो थे ही, सृजन कर्ता भी थे।
देशबंधु यानी एक स्कूल..
उनका अखबार देशबंधु नये पत्रकारों के लिए एक विद्यालय से कम नहीं था। देशबंधु से निकलने वाले अनेक पत्रकार बाद में विभिन्न अखबारों में सम्पादक भी बने । एक दौर था जब देशबंधु में अनेक महत्वपूर्ण पत्रकार अपनी सेवाएं दे रहे थे। देशबंधु ने ग्रामीण रिपोर्टिंग का भी एक सिलसिला शुरू किया था, जिसके तहत उनका एक रिपोर्टर किसी गांव में जाता और विस्तार के साथ उस गांव की स्थिति पर रिपोर्ट तैयार करता। स्टेट्समैन जैसे अंग्रेजी के नामचीन अखबार की ओर से देशबंधु की अनेक ग्रामीण रिपोर्टिंग को स्टेट्समैन अवार्ड से भी नवाजा गया। ललित सुरजन जीके पिता मायाराम सुरजन जी भी अपने समय के बड़े पत्रकार थे । उनका लिखा हम लोग पढ़ा करते थे और अपनी समझ को विकसित किया करते थे। उनके जाने के बाद ललित जी ने अपने पिता की वैचारिक परंपरा को आगे बढ़ाया । वे नियमित रूप से अखबार में समसामयिक विषयों पर लिखते रहे। उनका बेबाक लेखन समकालीन राजनीति और समाज को मार्गदर्शक देने वाला होता था। जीवन के अंतिम दौर में वे नियमित रूप से जो कुछ लिख रहे थे, वह तो दरअसल एक तरह से राजनीतिक इतिहास ही था। हालांकि पिछले कुछ महीनों से वे अस्वस्थ रहने लगे थे फिर भी उन्होंने अपना लेखन बंद नहीं किया। फेसबुक के माध्यम से भी वे अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे। कभी कविता पाठ करते थे, तभी किसी महत्वपूर्ण अंग्रेजी कविता का अनुवाद भी पोस्ट करते।
74 वर्ष की आयु में उनका यकायक चला जाना छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता का एक बड़ा नुकसान है। न केवल छत्तीसगढ़ का वरन हिंदी पत्रकारिता की क्षति है । हिंदी पत्रकारिता में जो वैचारिक शून्यता दिखाई देता है, उसकी क्षतिपूर्ति ललित जी अपनी लेखनी के माध्यम से कर रहे थे। इस समय पत्रकारिता बाजारवाद की चपेट में है। तरह-तरह के समझौते करने वाले अखबार हमारे सामने विद्यमान हैं। पैसे कमाने के चक्कर में अनेक अखबारों में फूहड़ किस्म के विज्ञापन भी दिखाई देते हैं। लेकिन देशबंधु ही एक ऐसा रहा है, जिसने कभी इस तरह का कोई काम नहीं किया। यह सिर्फ ललित जी की वैचारिक प्रतिबद्धता के कारण संभव हो सका। पत्रकारिता के मानदंडों को स्थापित करने में देशबंधु का बड़ा योगदान है । यह छत्तीसगढ़ का एकलौता अखबार रहा है, उसकी अपनी एक समृद्धि लाइब्रेरी है। ऐसी लाइब्रेरी जो विद्यार्थियों के लिए शोध का काम करती है। समय-समय पर अनेक विद्यार्थी देशबंधु जाते लाइब्रेरी में बैठकर अध्ययन किया करते हैं। देशबंधु इकलौता अखबार है जो सामाजिक सरोकारों से प्रतिबद्ध है। देशबंधु के माध्यम से अनेक छात्रों को वजीफा दिया जाता है। इस अखबार ने साहित्य के लिए भरपूर स्पेस हुआ करता है। इसमें साहित्यिक आयोजनों को प्राथमिकता मिलती है
एक दौर था, जब देशबंधु में अनेक साहित्यिक गोष्ठियां भी हुआ करती थीं । बाद में रजबंधा मैदान में लोकायन नामक सभा भवन बनने के बाद वहां भी निरंतर आयोजन होते रहे। कहने का मतलब यह है कि ललित जी निरंतर सृजनशील रहे और दूसरों के सृजन को गतिशील बनाने की दिशा में भी प्रतिबद्ध रहे। छत्तीसगढ़ भर में उनके अपने को चिन्हित लेखक थे जो उनके अखबार में निरंतर प्रकाशित होते रहे। जब कभी कोई साहित्य का आयोजन हुआ, तो ये लेखक उनके आग्रह पर दौड़े चले आते थे । उस आयोजन में शहर के अनेक साहित्य रसिक भी उपस्थित होते थे। ललित जी वर्षों तक रोटरी क्लब के गवर्नर भी रहे। कुछ सामाजिक प्रकल्पों से भी उनका गहरा नाता रहा। इस तरह वे ऐसे पत्रकार थे, जो सिर्फ लिखते नहीं थे वरन समाज के उनके लिए कुछ योगदान भी किया करते थे। पिछले कुछ वर्षों में बाहर से आ कर कुछ तथाकथित बड़े अखबारों ने अपनी जगह बना ली मगर, देशबंधु की अपनी लोकप्रियता कम न हुई। प्रखर वैचारिकता के कारण देशबन्धु के अपने पाठक यथावत बने रहे क्योंकि ललित जी ने इसे देखने वाला नहीं, पढ़ने वाला अखबार बनाया। पढ़कर समझ विकसित करने वाला बनाया। मुझे विश्वास है ललितजी के जाने के बाद भी देशबन्धु उनकी परंपरा का निर्वाह करेगा और जो वैचारिक धार ललित जी के समय कायम थी, वह भविष्य में भी कायम रहेगी। उनको मेरा शत शत नमन।
मंगलवार, 3 अगस्त 2021
वैचारिक पत्रकारिता के पर्याय थे ललित सुरजन
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