शुक्रवार, 28 अगस्त 2020

आप में नहीं हैं ये गुण इस लिए नहीं बनते आप बड़ा साहित्‍यकार, जाने अपनी कमीयॉं अखंड गहमरी से।

 आप में नहीं हैं ये गुण इस लिए नहीं बनते आप बड़ा साहित्‍यकार, अखंड गहमरी दावे के साथ कहता है कि यह बात पूर्ण रूप से सही है। प्राचीन काल में लिखना तो आसान था लेकिन उसका प्रकाशन आज के जमाने के तरह आसान  नहीं था। आज के जमाने में जितना प्रकाशन आसान है उसे कई गुना कठिन था प्रकाशन कराना और उसे जन-जन तक पहुँचाना।

आज सोशलमीडिया का प्‍लेटफार्म है, लाखो प्रकाशन है। आप अपनी बात सभी तक पहुँचा सकते हैं, इसके बाद भी आप प्रसिद्वि नहीं पाते। आईये हमारे साथ जुड़ीये हम आपको बतायेगें कि कैसे आप अपना नाम साहित्‍य जगत में एक सितारे की भॉंति की चमका सकते है।  आज हम आपको 11 बिंदु बतायेगें, और हर बिन्‍दु पर विस्‍तृत चर्चा करेगें हर शनिवार को इसी ब्‍लाग पर । 

आईये जानते हैं वह 11 बिंदू।

(01)*आपके पास एक लैपटाप होना अनिवार्य है, मोबाइल से भी काम चल सकता है। साथ ही फेसबुक, टिविटर, वाटस्एप, इस्ट्राग्राम के एकाउन्ट भी होने चाहिए। नहीं आता है चलाने तो साीखें मुझसे उसी कार्यक्रम में।

(02)* आपको कुछ अपने कुछ दूसरो की रचनाओं का ज्ञान होना चाहिए, कुछ रचना लिखने के तरीके की भी जानकारी होनी चाहिए, अगर नहीं है तो नेट से निकाल कर लिख लें

(03)* एक फेसबुक समूह बनाकर लोगो को जोड़े, उनकी कमी निकालें, उसे ठीक करावें समूह की संख्या बढावें।

(04)* समय समय पर अपने समूह पर कुछ विवाद करावें और विवाद कुछ दिन हो जाये तो खुद मंहत बन कर शांत करावें।

(05)* अपने किसी दोस्त जो समूह चलाता हो उस पर अपने समूह में दोषा रोपण कराये, खुद पीछे रहे, अंदर से उससे मिले रहे, बाहर गाली दें.. कुछ दिन बीत जाये तो खुद समझौता कर लें।

(06)* विशेष लोगो के पोस्ट पर ही जायें, लोगो को एडमिन, संयोजक, संचालक जैसे पदौ का लालच दे, हर चार पास महीनो में एडमिन को, अध्यक्ष संचालक को बाहर करते रहे।

(07)*अपना गुणगान खुद पहले करें। गीत, गज़ल, मुक्तक जैसै विधाओ से थोड़ थोड़ा विषय लेकर एक नई विधा बनावे और जबरदस्ती सब पर लागू करे।    

(08)* अपने समूह के रचनाकारों का हर वर्ष साझा संकलन सहयोग राशि लेकर । संपादन दूसरे से कराएं नाम अपना दें। रोज अपनी 8-10 रचनाएं डाल कर वाहवाही लूटें। दूसरे की पोस्ट पर न जाएं पर अपनी 8-10 रोज डालें

(09)* पोस्ट डालने से लेकर कमेंट्स , शुभकामना संदेश आदि संचालकों एडमिन से कराएं और आप कभी कभी कुछेक पोस्टों पर एहसान सा जताते हुए प्रकट हों कि पोस्ट डालने वाला भी आपके आशीर्वचन से अपने आप को धन्य समझने लगे । 

(10)* केवल एक लक्ष्य एक ध्येय ही सर्वोपरि हो कि मात्र स्वंय के हित के लिए ही सारी गतिविधियों का संचालन करना है जिससे खुद की ही अधिक से अधिक मार्केटिंग हो और वह हमेशा हाई लाइट में बना रहे। उसे सदा अपनी उपलब्धियों का गौरव गान यत्र तत्र सर्वत्र समय समय पर करने में महारत हासिल होनी चाहिए। 

(11)* पत्रपत्रिकाओं में खास तौर जो आनलाइन हो उसमें रचनाएं भेजें और लिंक अधिक अधिक शेयर करें। 

 

आप को इस विषय में हम विस्‍तार से बतायेगें पढ़ते रहीये अखंड गहमरी का ब्‍लाक पोस्‍ट। मेरा दावा है आप सफल होगें।  

 



 

सोमवार, 17 अगस्त 2020

गजगमिनियॉं ने मुहँ खोला, फेशबुक हुआ पागल - अखंड गहमरी

कई दिनों से मुझे नींद नहीं आ रही थी। ऑंखो ही आँखो में पूरी रात बीत जाती थी। सारी रात वाटस्‍एप और फेशबुक पर इधर-उधर करता। अब तो लोग दबी जुबान में कहने लगे थे कि अखंड गहमरी आदमी नहीं उल्‍लू है, जो रात भर जागता है। 

आज शाम से ही मुझे अपने गुजरे इश्‍क़ की बहुत याद आ रही थी। इश्‍क़ में उदासी का आलम यह था कि मुझे रात 11 बज कर गप्‍तालिस मिनट पर ही नींद आ गई। नींद में भी चैन नहीं मिल रहा था। स्‍वपन पर स्‍वपन देखा रहा था। हसीन सपनो को भी शायद अखंड गहमरी से जलन थी। मोबाइल की घंटी पर घंटी बजी जा रही थी। पर घंटी पर नींद हावी थी। मगर कमबख्‍़त ये मोबाइल मानने का नाम नहीं ले रहा था। थकहार कर मोबाइल की तरफ नज़र डाली। नम्‍बर देखते ही मेरे होश उड़ गये। दिल मैतालिस फीट बड़तालिस इंच उछल गया। सोचने लगा कि क्‍यों इतनी देर हुई ? तभी पंलग के ऊपर सोई मेरी वाइफ होम पर नज़र पड़ी। सारी खुशी हवा हो गई। मोबाइल चीखे जा रहा था, और मेरी नज़र वाइफ होम पर थी जो अभी तक वह कुम्‍भकरण की बहन बनी सो रही थी। मैनें धीरे से मोबाइल को साइलेंन्‍ट मोड पर डाला और कमरे से निकला। अब तक तो आप समझ ही गये होगें कि यह सुबह सुबह फोन किसका था ? बिल्‍कुल यह फोन मेरी परमप्रिय, परमजलनशील, मटकनियॉं निवासी मेरी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियॉं का ही था।

कमरे से निकलते ही फोन उठाया। कुछ बोलता इसके पहले उधर आवाज आई ''कहॉं मर गये थे''? रोज तो मड़तालिस बजे तक जगे रहते थे ? आज क्‍या कर रहे थे ? मेरे तो अल्‍फाज ही नहीं निकल रहे थे। किसी तरह बस इतना कह पाया कि गुस्‍से में तुम्‍हारी आवाज देख कर ऐसे लग रहा है जैसे संसार की सारी खूबसूरती को टेंडर लोडी जी से तुमको ही दे दिया जाये। उधर से बिना मेरे बातो पर लाल हुई वह लाल होते बोली फेशबुक देखा ? मैने कहा अभी तो तुमको सपनो में देखा रहा था। मुझे देखना बंद करों और फेशबुक देखो वह जोर से गर्जी।

मैं बस डरते हुए कहा बहुत दिनो के बाद तो तुमको देख रहा हूँ, देख लेने दो। इस पर तो उसका गुस्‍सा ऐसा चढ़ा जैसे कपिल देव को चढ़ता था। इसके पहले की जैसे 175 रन की पारी में कपिल देव ने गेंदबाजो को धुना था, वह मुझे धुने मैं बोल पड़ा परमप्रिय अपने गुस्‍से पर काबू रखों मैं तुरन्‍त बजरंगबली की तरह फेशबुक के पहाड़ पर जाता हूँ और वहॉं देखता हूँ कि क्‍या हो गया ?  हॉं जाओ वह अपनी ही शै में बोले जा रही थी, न दुआ कर रही थी, न सलाम, न आशिकी की बाते, वह तो बस आज चढ़ी जा रही थी। क्‍या ऐसी होती है पूर्व प्रेमिका ? मगर जो भी है गजग‍िमिनियॉं इस द ग्रेट।  मैं काफी देर फेसबुक के जंगलो में विचरण करता रहा। मुझे मेरी प्राणो की प्‍यारी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियॉं को समस्‍या ग्रस्‍त कर दें , ऐसी कोई चीज नहीं दिखाई दी। 

हॉं  कुछ नये कुछ पुराने, कुछ प्रसिद्व कुछ गुमनाम सुन्‍दर-सुन्‍दर चेहरो के साथ पोस्‍ट कुछ अलबेली कविताओं पर नज़र जरूर पड़ी जो अखंड गहमरी जैसे पागलपन के शिकार व्‍यक्ति को भी ठीक कर दें । उन कविताओं पर हजारो कमेंट और शेयर थे। मेरी समझ न तो उन कविताओं के विषय और और शब्‍द आ रहे थे और ना तो यह समझ में आ रहा था कि वाह-वाह, बहुत खूब-बहुत खूब, सुन्‍दर, अतिसुन्‍दर के खिताब कविताओं को दिये गये थे या विभिन्‍न मुद्राओं में प्रर्दशित चेहरों को। परन्‍तु यह सब देख कर मैं समझ चुका था अपनी गजगमिनियॉं  के रात की नींद उड़ने का कारण। 

मैं तुरन्‍त राफेल पर चढ़ कर वापस लौटा, और कक्षा के बैंक बेंचर बच्‍चे की तरह बिना पूछे ही बोल पड़ा, अरे मेरी ढिल्‍लों जाने दो तारीफ करने दो कविता की, तुम कहॉं इसके चक्‍कर में पड़ी हो। इतना सुनते ही वह सूर्य के समान लाल हो गई। अगर समाने रहता तो दो चार हाथ लगा ही देती। एक दम पागल हो क्‍या ? उसने पूरा जोर लगा कर बोला। मैं भी मुहँ खोला। मेरी धन्‍नों तुम पूरी बात बताओं , मैं फेशबुक के पटल को अंगार बना दूँगा, जोकर का श्रंगार बना दूँगा, पलटन का हार बना दूँगा, तुम बताओं तो, मैं अब पूरे जोश में आ गया था। यह बात अलग थी कि रह रह कर बगल के कमरे में झाक लेता कि कुम्‍भकरण की बहन, हिटलर मेरी वाइफ होम अभी निद्रा में है कि नहीं। कही ऐसा न हो कि मैं विचारो में रहूँ वह जाग कर मेरी चटनी बना दें।

आखिर मेरी गजगमिनियॉं ने मुहँ खोला, अपनी समस्‍या बताई। उसकी समस्‍या सुन कर मेरे होश ऐसे उड़े जैसे पोखरन परीक्षण के बाद अमेरिका के, रेखा संग रोमांश करते अमिताभ के जया को देख कर उड़े थे। मैं तो अपने शरीर को नोंच कर देखने लगा कि मैं जगा हूँ या सोया। समस्‍या थी भी ऐसी कि धरती अपनी धुरी पर धुमना छोड़ सकती थी, सूर्य देव बगावत कर सकते थे। मुशी प्रेम चंन्‍द्र जी, गोपाल राम गहमरी जी धरती पर वापस लौट सकते थे। बहुत बड़ा अर्नथ होने जा रहा था। परमाणु बम फटने जा रहा था।

मेरा दावा है कि यह समस्‍या सुन कर आपके भी पैरो तले जमीन निकल जायेगीं। टूटती सॉंसो से गजनिमिनियॉं रोते हुए बोल बड़ी फेसबुक की पोस्‍टों पर अब बधाई, वाह वाह, शुभकामनाएं, बहुत अच्‍छे, अतिसुन्‍दर, स्‍वागत है, जैसे शब्‍द लिखना और इंमोजी प्रतिबंधित हो गया, अब आपको किसी पोस्‍ट पर कम से कम दस शब्‍द उस पोस्‍ट से संबधित लिखने होगें। और तो और बिना दस शब्‍द लिखें आप पोस्‍ट को लाइक, डिसलाइक भी नहीं कर सकते। हम एक ही कमेंट को एक दिन में दो बार रिपीट भी नहीं कर सकते हैं। अब तुम ही बताओं इन शब्‍दो के न रहने से हमारी दुकान कैसे चलेगी?  कौन पूरी पोस्‍ट पढ़े ? पागल हो गये हैं फेसबुक वाले।

उसकी बातें सुन कर मेरा भी दिमाग पूरा का पूरा घूम गया। मैनें कहा परम प्रिय सही कह रही हो फेशबुक वाले तो अखंड गहमरी से भी बड़े पागल हो गये हैं। किसी के पास पूरी पोस्‍ट पढ़ने का समय नहीं है इस लिए तो बिमार होने और मौत होने की पोस्‍टों पर भी  सैकड़ो लाइक आते हैं, कभी कभी तो बधाई व शुभकामनाएं भी आ जाती हैं। खैर जाने दो परेशान न हो, आज शाम को मिलटिंग मिलटिंग गार्डन में मिलते हैं, वही बाते होगी। समस्‍या बहुत गंम्‍भीर है। इस पर पोस्‍ट डालाना होगा, जनमत इक्‍कठा करना होगा, हम धरना करेगें, फेसबुक के खिलाफ प्रदर्शन करेगें। तुम्‍हारी समस्‍या को लेकर अमेरिका के राष्‍ट्रपति तक जायेगें। मैं बोले जा रहा था। उधर से हसते हुए आवाज आई ठीक है लेकिन समय पर आ जाना। मैं उसकी हँसी सुनकर खुशी से पागल हो गया, मगर यह खुशी देर तक नहीं रही उसने अबकी  धमकी भरे स्‍वर में कहा भूलना नहीं अखंड गहमरी तुम हो बहुत भुल्‍कड़। मैने ने हसते हुए कहा बिल्‍कुल नहीं भूलूँगा प्रिय बिल्‍कुल सही समय पर मिलटिंग मिलटिंग गार्डन पहुँच जाऊँगा, यह कहते हुए मैंने एक सलांइंग किस उछाला, वह मुस्‍कुरा दी । मैने फोन काट कर फोन को भी एक सलाइं‍ग किस उछाला।

किससे मिलना है मिलटिंग मिलटिंग गार्डन में ? नौ बजे तक सोने वाले श्रीमान सुबह सुबह छुप कर किससे बात हो रही है ? तभी पीछे से करारी आवाज गूँजी। जब तक मैं कुछ समझ पाता, कुछ बोल पाता जब तक हर बार की तहर मेरे वाइफ होम की चरण पादुका मेरे गंजे सिर से मुलाकात कर चुकी थी। मैं बचाओं बचाओं चिल्‍लाने लगा। 
अचानक चेहरे पर पानी से उठ कर बैठ गया, समाने मेरी परम प्रिय वाइफ होम थी, जो मुझे झकझोर रही थी क्‍या हुआ ? आपको क्‍यों बचाओं बचाओं चिल्‍ला रहे हैं ? मैने उसकी तरफ देखा, फिर खुद को देखा, अपने सर पर हाथ फेरा, जान में जान आई। मैनें प्रेम से बोला कुछ नहीं एक डरावना सपना देख कर तुमको बुला रहा था बचाने के लिए, तुम ही तो मेरी अलटिंग-मलटिंग साथी हो, चलो चाय बनाओं और अपने नाजुक नाजुक हाथो से पिलाओं।  वह मुझे देख कर मुस्‍कुराते हुए चाय बनाने चली गई। मैं ऊपर हाथ कर भगवान को सुक्रिया कह कर दुबारा सो गया।

अखंड गहमरी 

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गुरुवार, 13 अगस्त 2020

पर भूख से तड़पते बच्चे देख कर हाथ नहीं कॉंपे -अखंड गहमरी

पापा आज भी खाने में सब्जी नहीं है।
बेटा आज खा लो, कल जरूर सब्जी  बनेगी और साथ में दाल भी।
आप तो रोज कहते हैं पापा, सब्जी बनेगी मगर आज कितने दिन हो गये, दूध भी नहीं मिला।
बेटा आप जाओं पढ़ाई करों कल सब कुछ मिलेगा।
लपलू चुपचाप मुहँ बनाते हुए चला गया, तभी अंदर से मटकनिया अपने हाथ पोछते हुए आई।
कहॉं से कल सब्जी  लाओंगें सोमारू, अब तो चावल और आटा भी नहीं है, दो दिन से आधा पेट खिला कर बच्चों  को पानी पिला रही हूँ तो आज तक चला है, वह रूऑंसी स्व र में बोल पड़ी।
कही न कही से व्यवस्था  तो होगी ही, लाओं मेरा फोन दो, सोमारू ने कहा।
टक टक टक टक हैलों
मैं लाजिक पुरी क्‍वाटर नम्बर 403 से बोल रहा हूँ साहब घर में खाने को राशन नहीं है मदद चाहिए।
ठीक है अपना नाम पता लिखवा दें सुबह ही आपको सहायता दी जायेगी, उधर से आवाज आई।
ये क्या किया आपने ? सहायता के लिए फोन कर दिया लोग जानेगें तो क्या कहेगें ? मटकनियॉं ने सोमारू की तरफ क्रोध से देखते पूछा।
जिसको जो कहना है कहता रहें अब बच्चों  की लाचारी हमसे देखी नहीं जाती। पैसे के आभाव में उनकी आनलाइन क्लास पहले ही बंद हो चुकी है अब भूख से मरने नहीं दूँगा।
मटकनियॉं के ऑंख में आसूँ आ गये, वह सोमारू का हाथ पकड़ कर बोली परेशान न हो ये दिन भी कट जायेगा।
रूको मैं खाना लाती हूँ खालो वह खाना लाने चली गई।
एक थाली में तीन रोटी और थोडी चटनी के साथ नमक मिला पानी था, लो खा लो ।
तुमने खाया ?
नहीं मैं खा लूँगी तुम खा लो ।
मैं जानता हूँ  अब रोटी नहीं है आओ आधा आधा खाते है।
सुबह तड़के ही दरवाजे की घंटी से नींद खुलती ।सामने देखा तो चार लोग, जिसमें एक पुलिस का अधिकारी लग रहा था, बाकी तीन अन्ये थे। सबके हाथो में राशन था और जो अधिकारी था उसके हाथो में हाथ पते की पुर्जी।
अधिकारी ने रोब दिखाते हुए पूछा ये पता आपका ही है ।
सोमारू जी यह पता मेरा ही है ।
आपने ही मदद के लिए काल किया था ?
जी मैने ही किया था ।
अधिकारी ने अंदर झाकते हुए कहा फोन करने से पहले आपके हाथ नहीं कॉंपे, यह मदद तो गरीबों के लिए है। भगवान की दया से आपका इतना बड़ा मकान है।
जी सर मेरे हाथ नहीं कॉंपे इन मदद के लिए फोन करते समय, आप यह राशन मुझे दें और देते हुए दो फोटो लेकर सोशलमीडिया पर डाल दें, और लिख दें अमीरो ने डाला गरीबो के राशन पर डाका, बड़े घर में रहने वाले मॉंग रहे है सरकारी मदद।
अजी सुनती हो बाहर आओ यह राशन लो सोमारू ने अपनी पत्नी को आवाज देते हुए कहा।
वह बाहर आई और अपनी पति के बगल में खड़ी हो गई।
दीजिए साहब राशन दीजिए हम दोनो पति-पत्नीो सामने है फोटो ले लीजिए।
सामने खड़े लोगो को समझ नहीं आ रहा था कि ये क्याग हो रहा है, पुलिस का वह अधिकारी भी इस वाक्ये  को समझ नहीं पा रहा था।
उसने राशन देने के लिए अपने लोगो को ईशारा किया, सबने अपने हाथ मे पकड़ा राशन तो दे दिया परन्तु किसी ने अपने जेब से मोबाइल नहीं निकाला।
पुलिस का वह अधिकारी ने एक गिलासा पानी मॉंगा, सभी अंदर आ गये।
सोमारू ने पानी दिया और बोल पड़ा साहब ये दिवारे ये सजावट भोजन नहीं देते, मेरी होजरी की दुकान है। होल सेल का काम है, शहर के मुख्यस चौराहे पर।
सबकी ऑंखे फटी की फटी रह गई।
तो फिर आपने यह मदद क्यों  मॉंगी ?आपको शर्म नहीं आई ? उन चारो में एक बोल पड़ा।
बिल्कुल नहीं आई मुझे मेरे हाथ भी नहीं कॉंपे क्यों कि मेरे ऑंखो के आगे बच्चों  का भूख से पीला चेहरा था।
आप तो इनते बड़े आदमी है फिर भी आपके पास पैसे नहीं है सुलगता हुआ एक सवाल उनमे से एक ने फिर उछाला।
साहब पॉंच महीने हो गये दुकान की हालत खराब हुए, पहले तो खुलती नहीं थी, अब खुलती है तो समय निर्धारित है, और ग्राहक भी तब आते है जब बहुत जरूरी हो, आज भूख से मरती जनता 2 कपड़े पर गाड़ी खीच रही है।
पुलिस अधिकारी सही बात है।
और जो आमदनी हो रही है उसमें दुकान का किराया, बैंक का लोन, मकान की किस्‍त, बिजली का बिल, और दुकान पर काम करने वालो कर्मचारीयों का वेतन, इस काल में किस कर्मचारी को भूखों मरने के लिए छोड़े ?
ये लीजिए पानी तभी मटकनियॉं सबके सामने पानी रहती है।
सभी ने अपने अपने गिलास उठा लिये।
आप की बात सही है लेकिन फिर भी आप जैसे लोगो को गरीबो का हक नहीं मारना चाहिए, उन चारो में एक बोल पड़ा।
आपने बिल्कुतल सही कहा हमें प्रतिष्ठाी की आग में बच्चों  को झोंक देना चाहिए, घर के सामानों , गहने जेवरो को को गिरवी रख कर, अपने सपनो को तोड़ कर किसी तरह यह ईंट पत्थकर की छत तैयार में बच्चों का कब्र बना देना चाहिए तब हम सही रहेगें।
नहीं ऐसी बात नहीं है पुलिस अधिकारी बोल पड़ा।
क्यों  नहीं ऐसी बात है ? सर ईंट पत्थीर का यह मकान देख कर ही तो आप हमारी प्रतिष्ठाो का मुल्याकंन कर रहे हैं, और आप करें भी क्यों  नहीं ? हमने ही तो इसे अपनी प्रतिष्ठ बताई है, सोमारू बोला।
साहब हम मध्यवर्गी परिवार का आसमान से गिरे खजूर पर लटके वाला हाल है, उच्च वर्ग किसी तरह परेशान नहीं, और गरीब यानि समाज का अंतिम वर्ग कही बैठ कर शान से खा लेगा, लाइन में लग गरीबी योजना का लाभ ले लेगा। मटकनियॉं ने सुलगती ऑंखो से बोला ।
मम्मीय मम्मी अंदर से आवाज आई मटकनीयॉं अंदर की तरफ भागी
साहब हम तो अपने प्रतिष्ठां पर न लाइन में लग कर राशन ले सकते हैं और न किसी से अपना दु:ख कह सकते हैं क्योंकि हमें लोग अमीर कहते हैं। प्रतिष्ठां बचानी है। पर भूख से तड़पते बच्चें हाथो को सहायता नम्बर डायल करने पर मजबूर कर देते है।
न जाने क्यों उस पुलिस अधिकारी के ऑंखो से ऑंसू बह रहे थे, वह कुछ बोल नहीं पा रहा था, तभी उसके मोबाइल पर घंटी बजी उसने बात किया और उठने लगा।
भाई साहब हम किसी से एक रूपया मॉंगते है तो लोग कहते है क्यों मज़ाक कर रहे है ? आप के पास पैसे की क्या कमी ?और इधर उधर की बाते कर हमारे अतीत को याद दिलात हुए फोन काट देते हैं, जीवन की यह सच्चाेई है, सोमारू बोला ।
 माफ करीयेगा मुझे, आप की बातें और हालत हर सभी के हैं मगर कोई किसी से कहे कैसे, वैघा मारे रोवन न दे वाली कहावत हर मध्य,वर्गी परिवार के साथ। आज आपने हमारी ऑंखे खोल दिया, मगर हम आपकी इस राशन पैकेट के अलावा कोई मदद नहीं कर सकते है। पुलिस अधिकारी यह कहते हुए तेजी से दरवाजे की तरफ चल दिया।
दरवाजा खोलते ही वह सन्नक रह गया, पुलिस और पैकेट देख कर आनंद लेने दरवाजे पर खड़े लोगो के ऑंखो में ऑंसू थे, सभी कठपुतलियों की तरह खड़े थे।
सब को बाहर निकलता देख वह रास्ते  से हट कर पीछे मुड़ गये।
और अंदर काफी दिनो के बाद कूकर की सीटी दाल बनने की गवाही दी, आज शायद भर भेट भोजन इस अमीरो परिवार को मिलेगा।

अखंड गहमरी
 

रविवार, 9 अगस्त 2020

पहले उनकी त्‍चचा से उनकी उम्र का पता ही नहीं चलता था। अब उनकी त्‍वचा उनकी उम्र की गवाही देने लगी है, अब तो जाओं।

भैया मत करों बर्बाद यह भी सीजन। हर सीजन तो हमारा तुमने बर्बाद कर दिया है। अब तो रहम करो। कितनी मेहनत से हम कहॉं कहॉं से खोज-खोज कर, 1 2 का 4 कर कर के होली पर अपनी डायरीयॉं भरें थे। परन्‍तु तुमने मारा की एक ही मिनट में सब घो कर रख दिया। हमने तो कलेजे पर पत्‍थर रख रख कर इस गम को सह लिया। दिल के अरमानों को ऑसूओं में बहा दिया। न जाने कितनों से मिलने का वादा किया था वो पूरा नही किया। हरी घास सूख गई मगर मैं खा न सका। बीबीयॉं इस कदर बरसी की गहमर में आज तक जल जमाव है। रंगों का त्‍यौहार बेरंग कर दिया। अब तो स्‍वतंन्‍त्रता दिवस का सीजन आ गया  मित्र। भकबेलनी चाची से किसी तरह रूपया दो रूपया मॉंग कर, खादी का कुर्ता पैजामा सिलवाया हूँ। सटकनीयॉं, मटकनीयॉं, भटकनीयॉं से कह कह कर किसी तरह से अपने लिए दो चार दर्जन मंचों की व्‍यवस्‍था किया हूँ।

तुम्‍हारे न जाने से हम कवियों के अरमानो पर कितना पानी पड़ा है तुम नहीं जानते। कितनी ही कवयित्रीयों के क्रीम पाउडर बिना प्रयोग के सूख गये। पहले उनकी त्‍चचा से उनकी उम्र का पता ही नहीं चलता था। अब उनकी त्‍वचा उनकी उम्र की गवाही देने लगी है। न जाने कितनी साड़ीयॉं और सूट बिना किसी के देखें ही पुराने हो गये। कम से उन पर तरस खाओं। हम लोगो पर तो तुम तरस खा नहीं सकते हो।

तुम्‍हारे वजह से होली निकली दाम न मिला, शादी विवाह का मौसम निकल गया न दाम मिला न भोजन, न किसी ने तारीफ किया। जितना जुल्‍फ़ तुमने किया उतना तो मेरी परम प्रिय,मेरे प्राणो की  प्‍यार, मेरी अर्धागिनी, मेरी बुलबुल, मेरी चन्‍द्रमुखी जब ज्‍वालामुखी बनती है तब भी नहीं करती है।

तुम्‍हारे आने से नई पद्वति से काव्‍य सुनाने का मौका तो मिल जाता है मगर जो कानो को तालीयॉं और वाह वाह सुनने की आदत पड़ गई है उसका क्‍या करें। बड़ी दिक्‍कत होती है जब तक तालीयॉं न मिले जुबान नहीं खुलती, बड़ी मेहनत से बीबी की गालिायँ जो जल्‍दी न उठने के कारण रोज पड़ती है उसके जमा संग्रह से किसी तरह निकाल कर गालीयों को ही उत्‍साह वर्धन मान कर कुछ सुना ले जाता हूँ। मगर अब वो भी गालियॉं नहीं देती है। कहती है दाम लाओ तो गालियॉ दू, बिना मुल्‍य के अपनी गालियॉं खराब नहीं करूँगी। अब आप बताईये लिफाफे भी नहीं मिलते और न आयोजन के लिए आयोजको से मोटी रकम और न ही नये कवियों को मंच देने पर मिलने वाला कमीशन ही प्राप्‍त करने का सुख उठा पा रहा हूँ। तो बताओं अपनी श्री श्री श्रीमती के प्‍यारे प्‍यारे हाथों में क्‍या दूँ? काहे हमारे जीवन गाड़ी की पटरी को उतारने पर तुले हो। 

ऑंखे तरस गई अवलोकानार्थ में, स्‍वादाचखेनार्थ में, अब तो ऐसा जतन करों कि खादी निकल जाये बक्‍से से, डायरी की धूल साफ हो जाये। तालीयों का रसास्‍वाद कान करें। नये लोगो का हूजूम मिले, और हमारा स्‍वतंन्‍त्रता दिवस बड़ी ही शान से मने। बोलो गजगमिनियॉं की जय जय। बोलो अखंड गहमरी की जय।