रविवार, 9 अगस्त 2020

पहले उनकी त्‍चचा से उनकी उम्र का पता ही नहीं चलता था। अब उनकी त्‍वचा उनकी उम्र की गवाही देने लगी है, अब तो जाओं।

भैया मत करों बर्बाद यह भी सीजन। हर सीजन तो हमारा तुमने बर्बाद कर दिया है। अब तो रहम करो। कितनी मेहनत से हम कहॉं कहॉं से खोज-खोज कर, 1 2 का 4 कर कर के होली पर अपनी डायरीयॉं भरें थे। परन्‍तु तुमने मारा की एक ही मिनट में सब घो कर रख दिया। हमने तो कलेजे पर पत्‍थर रख रख कर इस गम को सह लिया। दिल के अरमानों को ऑसूओं में बहा दिया। न जाने कितनों से मिलने का वादा किया था वो पूरा नही किया। हरी घास सूख गई मगर मैं खा न सका। बीबीयॉं इस कदर बरसी की गहमर में आज तक जल जमाव है। रंगों का त्‍यौहार बेरंग कर दिया। अब तो स्‍वतंन्‍त्रता दिवस का सीजन आ गया  मित्र। भकबेलनी चाची से किसी तरह रूपया दो रूपया मॉंग कर, खादी का कुर्ता पैजामा सिलवाया हूँ। सटकनीयॉं, मटकनीयॉं, भटकनीयॉं से कह कह कर किसी तरह से अपने लिए दो चार दर्जन मंचों की व्‍यवस्‍था किया हूँ।

तुम्‍हारे न जाने से हम कवियों के अरमानो पर कितना पानी पड़ा है तुम नहीं जानते। कितनी ही कवयित्रीयों के क्रीम पाउडर बिना प्रयोग के सूख गये। पहले उनकी त्‍चचा से उनकी उम्र का पता ही नहीं चलता था। अब उनकी त्‍वचा उनकी उम्र की गवाही देने लगी है। न जाने कितनी साड़ीयॉं और सूट बिना किसी के देखें ही पुराने हो गये। कम से उन पर तरस खाओं। हम लोगो पर तो तुम तरस खा नहीं सकते हो।

तुम्‍हारे वजह से होली निकली दाम न मिला, शादी विवाह का मौसम निकल गया न दाम मिला न भोजन, न किसी ने तारीफ किया। जितना जुल्‍फ़ तुमने किया उतना तो मेरी परम प्रिय,मेरे प्राणो की  प्‍यार, मेरी अर्धागिनी, मेरी बुलबुल, मेरी चन्‍द्रमुखी जब ज्‍वालामुखी बनती है तब भी नहीं करती है।

तुम्‍हारे आने से नई पद्वति से काव्‍य सुनाने का मौका तो मिल जाता है मगर जो कानो को तालीयॉं और वाह वाह सुनने की आदत पड़ गई है उसका क्‍या करें। बड़ी दिक्‍कत होती है जब तक तालीयॉं न मिले जुबान नहीं खुलती, बड़ी मेहनत से बीबी की गालिायँ जो जल्‍दी न उठने के कारण रोज पड़ती है उसके जमा संग्रह से किसी तरह निकाल कर गालीयों को ही उत्‍साह वर्धन मान कर कुछ सुना ले जाता हूँ। मगर अब वो भी गालियॉं नहीं देती है। कहती है दाम लाओ तो गालियॉ दू, बिना मुल्‍य के अपनी गालियॉं खराब नहीं करूँगी। अब आप बताईये लिफाफे भी नहीं मिलते और न आयोजन के लिए आयोजको से मोटी रकम और न ही नये कवियों को मंच देने पर मिलने वाला कमीशन ही प्राप्‍त करने का सुख उठा पा रहा हूँ। तो बताओं अपनी श्री श्री श्रीमती के प्‍यारे प्‍यारे हाथों में क्‍या दूँ? काहे हमारे जीवन गाड़ी की पटरी को उतारने पर तुले हो। 

ऑंखे तरस गई अवलोकानार्थ में, स्‍वादाचखेनार्थ में, अब तो ऐसा जतन करों कि खादी निकल जाये बक्‍से से, डायरी की धूल साफ हो जाये। तालीयों का रसास्‍वाद कान करें। नये लोगो का हूजूम मिले, और हमारा स्‍वतंन्‍त्रता दिवस बड़ी ही शान से मने। बोलो गजगमिनियॉं की जय जय। बोलो अखंड गहमरी की जय।


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