भारत
ही नहीं विश्व को परेशान करने वाले कोरोना की दवा तो नहीं बनी है, लेकिन
कोरोना के बाद जिस वायरस ने आम आदमी को सबसे अधिक परेशान किया है उस वायरस
की दवा होने के बाद भी इस वायरस का ईलाज नहीं हो पा रहा है। इस वायरस का
ईलाज करने वाले डाक्टर ही इस वायरस को पनपने में पूरी मदद कर रहे हैं।
कोरोना वायरस तो केवल आदमी के तन को खा कर रहा है लेकिन यह वायरस तो आम
आदमी के तन मन धन को खाते हुए उसका भविष्य पूरी तरह बर्बाद कर रहा है। इस
वायरस की भूख इतनी अधिक है कि वह जिन्दगी को जीते जी पूरी तरह खा जा रहा
है। सब कुछ खाने के बाद भी इस वायरस की भूख और दरिद्रता मिटने का नाम नहीं
ले रही है। नित्य नये नये चोचले निकाल कर वह इस प्रकार दोहन कर रहे हैं कि
उसके आगे भष्मारसुर व कोरोना भी शर्म के आगे चूल्लू भर पानी में डूब कर मर
जाये। कोरोना से भी अधिक खतरनाक इस वायरस का नाम है नीजी स्कूल व उसके
संचालक।
दुनिया का हर प्राणी जानता है कि पूरा विश्व वर्ष 2020 के प्रारंम्भ से ही जीवन को बचाते हुए दो वक्त की रोटी व सर की छत के लिए किस तरह संघर्ष कर रहा है किस तरह उसे बचा रहा है। यह दर्द तो वही बता सकता है जो इससे जूझ रहा है। इन सब से बेपरवाह कोरोना से भी खतरनाक राक्षस रूपी नीजी स्कूल संचालक उसे मौत के मुहँ में ढ़केले जा रहे है और वह केवल किस इस लिए बर्दाश्त करने को बाध्या है क्यों कि डर उसके बच्चों के भविष्य का दिखाया जा रहा है। बच्चों के भविष्य रूपी तलावार से डरा किस प्रकार नीजी स्कूह इस काल में भी मनचाही वसूली कर रहें उसे रोकने का साहस मुझे लगता है किसी में नहीं। शासन प्रशासन भी नीजी स्कूलों के इस धिनौने कृत्य में पूरी तरह उसका साथ निभा रही है।
कितना भी बड़ा व्यापारी क्यों न हो, चाहे वह भारत का सबसे अमीर घराना क्यों न हो वह गॉंव में विकास के निचले पावदान पर खड़े व्यक्ति के खरीदारी क्षमता जिसे अंग्रेजी में आप सब परचेंजिग पावर कहते हैं उसी पर निर्भर है। बाजार का मुख्य हिस्सा छोटी दुकान, ठेले, गुमटी जो बड़े से बड़े निर्माता के घर की रोटी चलाती हैं, महीनो महीनें से बंद पड़ी हैं। बड़ी कम्पनीयों के मालिक अपने अथाह धन होने के बाद भी अपने सेवको को दो वक्त की रोटी नहीं दे पाये। मालिकों ने अपने अकड़ के कारण, अपने छड़िक लाभ के कारण अपने मजदूरों को संभालना जरूरी नहीं। मजदूर भूखें नंगे पैदल चलते बेसहारा लाचार घर लौट गये। इसका नतीजा यह हुआ कि आज निर्माताओं के पास सब कुछ होते हुए भी मानव बल नहीं । जिससे वह उत्पादन करें।
हर आदमी अपनी आमदनी ही नहीं गँवा चुका है बल्कि अपनी जमा पूँजी का बड़ा हिस्सा निकाल कर अपने पेट की ज्वाला को शांत कर रहा है। आखिर वह करें भी तो क्या करें? कहॉं जाये? किससे कहें ? क्या कहें? सुनेगा कौन? बंद वातानुकुलित कमरे में बैठे अफसरशाहों का गुलाम हो चुके भारत के नेताओं के पास न तो अपनी सोच है न क्षमता, न तो उनकी यादाश्त ही इतनी तेज है जो वह जमीन की हकीकत को याद रख सकें। इस लिए वह जनता के दर्द निवारक दवा बन नहीं सकते। जब हर तरफ आर्थिक मंदी और बंदी दोनो है ऐसे में कहॉं से आयेगें इतने पैसे जो नीजी स्कूल नाम वायरस का ईलाज कर सके ? कुछ स्कूल कह रहे है जब आपकी हैसियत नहीं थी तो क्योंं बड़े स्कूल में डाला? भैया मैं 500 रूपया दैनिक कमाता था। आप के स्कूल की फीस 3000 रूपये थी और खर्च लेकर 5000 रूपये महीन, हम नमक रोटी से गुजारा कर के बच्चे को पढ़ा रहे हैं। आमदनी बचा कर आपको तो आपको फीस दे रहे थे परन्तु आज जब हम 1 रूपया महीना नहीं कमा रहे हैं तब भी आपको हम पैसे देने को तैयार है मगर आप कुछ तो छोड़ीये।
आज प्राइवेट स्कूल केवल दिखावे के नाम, फीस व अन्य वसूली कायम रखने हेतु आनलाइन क्लासों का चोचला शुरू किये हैं। मैं पूछना चाहता हूँ कि भारत में कितने ऐसे परिवार होगें खास तौर से ग्रामीण व छोटे नगरी क्षेत्र में जो अपने आवश्यकता से अधिक मोबाइल फोन रखे होगें, यदि उनके घर में तीन बच्चें है तो भी एक मोबाइल खरीदना ही पड़ेगा और और तो किताबों की जरूरत भी बता कर सारी-सारी की किताबें खरीदवाई जा रही हैं। मैं दावे और जिम्मेदारी के साथ कहता हूँ कि जिस प्रकार की एनसीआरटी की किताबें बाजार में कम कीमत में उपलब्ध हैं उससे 90 प्रतिशत गिरे स्तर की किताबें प्राइवेट प्रकाशक से मोटा कमीशन लेकर नीजी स्कूल रूपी वायरस मँहगे दामो उसे बेच रहे हैं और बच्चों को इस समय भी उसे खरीदने पर बाध्य कर रहे हैं। यही नहीं हर साल वह किताबों को बदलने की परम्परा इस साल भी शुरू रखें हैं। बदलाव भी क्या ? प्रकाशन वही, उसकी सिरीज बदल दी जाती है जिससे एक ही परिवार का लड़का जो एक क्लास आगे पीछे है किताबो का प्रयोग न कर पाये और इन वायरसो का पेट और भरें।कुछ स्कूल संचालक बच्चों को लैपटाप लेने की सलाह दे रहे हैं आज के बाजार भाव में बाजार में कम से कम लैपटाप की कीमत 15000 हजार रूपये, उसके साथ माडम ऐसोसिरिज मिला कर 18-19 हजार रूपये आप बताईये कहॉं से खर्च कर पायेगा इतने रूपये। आनलाइन क्लास के नाम पर मोबाइल की खरीद या मोबाइल देने की बात हो रही है मैं जानना चाहता हूँ कि आज हर आदमी कहॉं से मोबाइल लायेगा।
दुनिया का हर प्राणी जानता है कि पूरा विश्व वर्ष 2020 के प्रारंम्भ से ही जीवन को बचाते हुए दो वक्त की रोटी व सर की छत के लिए किस तरह संघर्ष कर रहा है किस तरह उसे बचा रहा है। यह दर्द तो वही बता सकता है जो इससे जूझ रहा है। इन सब से बेपरवाह कोरोना से भी खतरनाक राक्षस रूपी नीजी स्कूल संचालक उसे मौत के मुहँ में ढ़केले जा रहे है और वह केवल किस इस लिए बर्दाश्त करने को बाध्या है क्यों कि डर उसके बच्चों के भविष्य का दिखाया जा रहा है। बच्चों के भविष्य रूपी तलावार से डरा किस प्रकार नीजी स्कूह इस काल में भी मनचाही वसूली कर रहें उसे रोकने का साहस मुझे लगता है किसी में नहीं। शासन प्रशासन भी नीजी स्कूलों के इस धिनौने कृत्य में पूरी तरह उसका साथ निभा रही है।
कितना भी बड़ा व्यापारी क्यों न हो, चाहे वह भारत का सबसे अमीर घराना क्यों न हो वह गॉंव में विकास के निचले पावदान पर खड़े व्यक्ति के खरीदारी क्षमता जिसे अंग्रेजी में आप सब परचेंजिग पावर कहते हैं उसी पर निर्भर है। बाजार का मुख्य हिस्सा छोटी दुकान, ठेले, गुमटी जो बड़े से बड़े निर्माता के घर की रोटी चलाती हैं, महीनो महीनें से बंद पड़ी हैं। बड़ी कम्पनीयों के मालिक अपने अथाह धन होने के बाद भी अपने सेवको को दो वक्त की रोटी नहीं दे पाये। मालिकों ने अपने अकड़ के कारण, अपने छड़िक लाभ के कारण अपने मजदूरों को संभालना जरूरी नहीं। मजदूर भूखें नंगे पैदल चलते बेसहारा लाचार घर लौट गये। इसका नतीजा यह हुआ कि आज निर्माताओं के पास सब कुछ होते हुए भी मानव बल नहीं । जिससे वह उत्पादन करें।
हर आदमी अपनी आमदनी ही नहीं गँवा चुका है बल्कि अपनी जमा पूँजी का बड़ा हिस्सा निकाल कर अपने पेट की ज्वाला को शांत कर रहा है। आखिर वह करें भी तो क्या करें? कहॉं जाये? किससे कहें ? क्या कहें? सुनेगा कौन? बंद वातानुकुलित कमरे में बैठे अफसरशाहों का गुलाम हो चुके भारत के नेताओं के पास न तो अपनी सोच है न क्षमता, न तो उनकी यादाश्त ही इतनी तेज है जो वह जमीन की हकीकत को याद रख सकें। इस लिए वह जनता के दर्द निवारक दवा बन नहीं सकते। जब हर तरफ आर्थिक मंदी और बंदी दोनो है ऐसे में कहॉं से आयेगें इतने पैसे जो नीजी स्कूल नाम वायरस का ईलाज कर सके ? कुछ स्कूल कह रहे है जब आपकी हैसियत नहीं थी तो क्योंं बड़े स्कूल में डाला? भैया मैं 500 रूपया दैनिक कमाता था। आप के स्कूल की फीस 3000 रूपये थी और खर्च लेकर 5000 रूपये महीन, हम नमक रोटी से गुजारा कर के बच्चे को पढ़ा रहे हैं। आमदनी बचा कर आपको तो आपको फीस दे रहे थे परन्तु आज जब हम 1 रूपया महीना नहीं कमा रहे हैं तब भी आपको हम पैसे देने को तैयार है मगर आप कुछ तो छोड़ीये।
आज प्राइवेट स्कूल केवल दिखावे के नाम, फीस व अन्य वसूली कायम रखने हेतु आनलाइन क्लासों का चोचला शुरू किये हैं। मैं पूछना चाहता हूँ कि भारत में कितने ऐसे परिवार होगें खास तौर से ग्रामीण व छोटे नगरी क्षेत्र में जो अपने आवश्यकता से अधिक मोबाइल फोन रखे होगें, यदि उनके घर में तीन बच्चें है तो भी एक मोबाइल खरीदना ही पड़ेगा और और तो किताबों की जरूरत भी बता कर सारी-सारी की किताबें खरीदवाई जा रही हैं। मैं दावे और जिम्मेदारी के साथ कहता हूँ कि जिस प्रकार की एनसीआरटी की किताबें बाजार में कम कीमत में उपलब्ध हैं उससे 90 प्रतिशत गिरे स्तर की किताबें प्राइवेट प्रकाशक से मोटा कमीशन लेकर नीजी स्कूल रूपी वायरस मँहगे दामो उसे बेच रहे हैं और बच्चों को इस समय भी उसे खरीदने पर बाध्य कर रहे हैं। यही नहीं हर साल वह किताबों को बदलने की परम्परा इस साल भी शुरू रखें हैं। बदलाव भी क्या ? प्रकाशन वही, उसकी सिरीज बदल दी जाती है जिससे एक ही परिवार का लड़का जो एक क्लास आगे पीछे है किताबो का प्रयोग न कर पाये और इन वायरसो का पेट और भरें।कुछ स्कूल संचालक बच्चों को लैपटाप लेने की सलाह दे रहे हैं आज के बाजार भाव में बाजार में कम से कम लैपटाप की कीमत 15000 हजार रूपये, उसके साथ माडम ऐसोसिरिज मिला कर 18-19 हजार रूपये आप बताईये कहॉं से खर्च कर पायेगा इतने रूपये। आनलाइन क्लास के नाम पर मोबाइल की खरीद या मोबाइल देने की बात हो रही है मैं जानना चाहता हूँ कि आज हर आदमी कहॉं से मोबाइल लायेगा।
मैं दावे और जिम्मेदारी के
साथ कह रहा हूँ कि जिस प्रकार प्राइमरी और जूनियर हाई स्कूल के स्तर के
बच्चों का आनलाइन क्लास चल रहा है, जिस प्रकार नज़रे मोबाइल पर टिकाना पड़
रहा है, नेटवर्क और तमाम दिक्कहतें हो रही हैं बच्चें कुछ दिन में पागल
और शरीरिक रूप से बेजान व भूख न लगने अनिद्रा के शिकार न हो गये तो आप भी
कहीयेगा। अधिक दिन नहीं यह समस्या इन आनलाइन क्लासो का परिणाम आपके सामने
महीने के दिन के अंदर आने लगेगा। न यकीन हो तो अपने किसी अच्छे बाल रोग
विशेषज्ञ से पूछ कर देंख लें। आज जिस आनलाइन क्लास से बच्चे के पढ़ने को
अपने रूतबे से जोड़ रहे हैं भगवान न करें खून के ऑंसू रोना पड़े। ये
नीजी स्कूल नामक वायरसो ने आम आदमीयों को इस कदर मजबूर कर दिया है कि वह न
जी पा रहा है न मर पा रहा है और हमारी सरकार आम आदमी के परेशानी पर मजा ले
रही है। ले भी क्यों न हमारी सरकार में बैठे लोगो की खुद या तो कई नीजी
स्कूल है या तो उनके चहेतो के नीजी स्कूल हैं ऐसे में कोई अपने पैर पर
कुल्हाड़ी कैसे मारेगें? यह तो साफ है।
मानता हूँ कि नीजी स्कूल के भी कुछ ऐसे खर्च है जो किसी काल में बंद नहीं हो सकते हैं, जैसे अध्यापको व कर्मचारीयों का वेतन, प्रधानाचार्य/प्रचार्य/प्रधानाध्या पक का वेतन और उसके बाद स्कूल प्रंबधक का बड़ा पेट इस लिए उन खर्चो के लिए स्कूल की फीस जरूरी है मगर वह भी इस काल में उतनी ही होनी चाहिए जितने में स्कूल के खर्च निकल जाये अध्यापको व कर्मचारीयों के भूखमरी के हालत न आवें। पर ऐसा नहीं है स्कूल की चारदिवारों की संख्या बढ़ा कर अपना कद बढ़ाने की भूख, किताबों में कमीशन की भूख, इतनी अधिक है कि उन्हें मानवीय संवेदनाएं दिखाई ही नहीं पड़ती।
मेरा मानना है कि जान है तो जहान है। इस संकट के कम होने के बाद कोर्स को कम करके, सेशन देर से शुरू किया जा सकता है। एक्ट्रा क्लास चलाये जा सकते हैं। महत्वपूर्ण चीजो को बता करे के परीक्षा कराई जा सकती है। वर्तमान में स्कूल अपने देय वेतन के हिसाब से फीस रखें, प्रवेश शुल्क, बिल्डिंग शुल्क, विकास शुल्क और अन्य शुल्कों के नाम पर होने वाले लूट को कम से कम इस काल में बंद कर दें। जिससे आम आदमी भी जीवन जी सकें। कही ऐसा न हो कि आम आदमी नीजी स्कूलों के इस वायरस के हाथों इस कदर परेशान हो जाये कि या तो वह हाथ में हथियार उठा लें या अपनी ही जीवन लीला समाप्त कर लें।
अखंड गहमरी
मानता हूँ कि नीजी स्कूल के भी कुछ ऐसे खर्च है जो किसी काल में बंद नहीं हो सकते हैं, जैसे अध्यापको व कर्मचारीयों का वेतन, प्रधानाचार्य/प्रचार्य/प्रधानाध्या पक का वेतन और उसके बाद स्कूल प्रंबधक का बड़ा पेट इस लिए उन खर्चो के लिए स्कूल की फीस जरूरी है मगर वह भी इस काल में उतनी ही होनी चाहिए जितने में स्कूल के खर्च निकल जाये अध्यापको व कर्मचारीयों के भूखमरी के हालत न आवें। पर ऐसा नहीं है स्कूल की चारदिवारों की संख्या बढ़ा कर अपना कद बढ़ाने की भूख, किताबों में कमीशन की भूख, इतनी अधिक है कि उन्हें मानवीय संवेदनाएं दिखाई ही नहीं पड़ती।
मेरा मानना है कि जान है तो जहान है। इस संकट के कम होने के बाद कोर्स को कम करके, सेशन देर से शुरू किया जा सकता है। एक्ट्रा क्लास चलाये जा सकते हैं। महत्वपूर्ण चीजो को बता करे के परीक्षा कराई जा सकती है। वर्तमान में स्कूल अपने देय वेतन के हिसाब से फीस रखें, प्रवेश शुल्क, बिल्डिंग शुल्क, विकास शुल्क और अन्य शुल्कों के नाम पर होने वाले लूट को कम से कम इस काल में बंद कर दें। जिससे आम आदमी भी जीवन जी सकें। कही ऐसा न हो कि आम आदमी नीजी स्कूलों के इस वायरस के हाथों इस कदर परेशान हो जाये कि या तो वह हाथ में हथियार उठा लें या अपनी ही जीवन लीला समाप्त कर लें।
अखंड गहमरी
आपके विचार एकदम दुरुस्त हैं आदरणीय
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लेखनी गहमरी जी
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही, मन को छू गया
जवाब देंहटाएंसच के दर्शन एक एक बात सच्च है बेहतरीन लेख
जवाब देंहटाएंआज के यथार्थ का बेबाक़ी से चित्रण
विचारणीय
जवाब देंहटाएंयथार्थ को प्रदर्शित करता विचारणीय लेख
जवाब देंहटाएंमित्र आपकी लेखनी का प्रभाव सरकार के जिम्मेदार लोंगो पर सकारात्मक रूप से पड़े महाकाल से यही विनम्र प्रार्थना है।
जवाब देंहटाएंपूर्णतः सहमत नहीं हूँ. मैं भी एक शिक्षिका हूँ और ऑनलाइन कक्षाओं के लिए दिन रात परिश्रमरत हूँ .
जवाब देंहटाएंपूर्णतः सहमत नहीं हूँ. मैं भी एक शिक्षिका हूँ और ऑनलाइन कक्षाओं के लिए दिन रात परिश्रमरत हूँ .
जवाब देंहटाएंसीमा रानी जी, अपनी असहमति के बिन्दु तो बताएँ, बड़ा आभार होगा l मुझ अंगूठा छाप को तो गहमरी का लेख गम्भीर उचित और विचारोत्तेजक लगा l आदरणीयां सीमा जी, आपके विचार बिंदुओं से विषय का पूर्ण विमर्श हो सकेगा
जवाब देंहटाएंl
सीमा रानी जी, अपनी असहमति के बिन्दु तो बताएँ, बड़ा आभार होगा l मुझ अंगूठा छाप को तो गहमरी का लेख गम्भीर उचित और विचारोत्तेजक लगा l आदरणीयां सीमा जी, आपके विचार बिंदुओं से विषय का पूर्ण विमर्श हो सकेगा
जवाब देंहटाएंl
Bilkul satya hai bhai, 1 versh bachcha na hi padhe to humko nhi lagta ki ekdam se uska future hi barbad ho jayega, khub karlo dar ka dhandha darakar. Uper wala sub dekh rha hai, yaha jindgi ke lale pade hai to Future ki chinta kaun karen ,
जवाब देंहटाएंज्वलंत मुद्दे पर कलम चलाकर सबको जागरुक किया है आपने। आपकी कलम को सलाम।
जवाब देंहटाएं👏👏👏
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