साहब कितने भी बड़े साहब क्यों न हों पंच तत्व से बने इस शरीर में जो उनकी आत्मा है वह 5 मानवों से बहुत घबड़ाती है। सब पर रोब जमाने वाले बड़े साहब इस बात से हमेशा चिंता में रहते हैं कि ये 5 मानव उनकी कश्ती को न जाने कब सागर में डूबा दें पता ही नहीं चलेगा। ये 5 मानव उनके कर्म की आत्मा निकाल कर उनके कर्तव्यपरायण को खतरे में डाल सकते हैं, यही नहीं वह साहब की आत्मा को कब परमात्मा से मुलाकात करा दें बड़े से बड़े साहब भी नहीं जानते हैं। बड़े साहब की साहबगिरी इन 5 पर नहीं चलती और यदा कदा चल भी जाये तो वैसे ही चलती है जैसे कक्षा में अध्यापक के कहने पर एक सहेली दूसरे सहेली के गाल पर चपत लगाती है। प्यार से कि सॉंप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे। बड़े साहब की इस डर का पूरा फायदा ये उठाते हैं। जहॉं बड़े साहब नहीं पहुँचते वहॉं ये पहुँच कर बड़े साहब का प्रतिनिधित्व करते हुए उनके धन बल का पूरा कराते है। अब आप तभी से यह सोच रहे होगें कि मैं आपको इतना क्यों पका रहा हूँ तो खुदा कि कसम अब नही पकाऊँगा और बताता हूँ कि बड़े साहब के सर पर सवार कौन हैं ये पॉंच। वैसे एक बात तो पक्का है कि पॉंच में तो एक से आप भी डरते होगें बड़े साहब और मेरी तरह आपकी भी हालत खराब रहती होगी, बिल्कुल सही वह पहला प्राणी हैं पत्नी देवी। मेरे ख्याल से पत्नी नाम ही काफी विस्तार में जाने की जरूर नहीं। बाकी 4 हैं बड़े साहब के मुशीं, रसोईया, वकील और बड़े साहब का वाहन चालक। जिसके हाथों में अगल अलग तरीके से बडे़ साहब की गर्दन रहती है। कोई हाथो में कलम लिए तो कोई काला कोट पहने तो कोई चुल्हे की आग लिये तो कोई स्टेरिंग लिए।
तो ऐसे ही एक बड़े साहब के बड़े साहब हैं गहमर थाने में तैनात कोतवाल साहब के वाहन चालक श्री अंजनी राय जी, जो एक स्थानीय पत्रकार को अब यह सिखा रहे हैं कि उन्हें कलम कैसे चलानी है और उनको किसके साथ रहना हैं।
जी हॉं गहमर थाने में तैनात सिपाही अंजनी राय वाहन चालक के रूप में कार्यरत हैं। उनको एक पत्रकार के खबर पर इस कदर परेशानी थी कि उन्होनें उनके साथ रहने वाले राष्ट्रीय सहारा के पत्रकार सत्या उपाध्याय को सलाह दी कि वह अपने साथी पत्रकार का साथ छोड़ दें उनके साथ न रहें। कारण यह कि सत्या उपाध्याय के साथी पत्रकार ने महज एक खबर यह प्रकाशित कर दी जिसमें लिखा था कि अंजनी चला रहे हैं थाना।
जी हॉं गहमर थाने में तैनात सिपाही अंजनी राय वाहन चालक के रूप में कार्यरत हैं। उनको एक पत्रकार के खबर पर इस कदर परेशानी थी कि उन्होनें उनके साथ रहने वाले राष्ट्रीय सहारा के पत्रकार सत्या उपाध्याय को सलाह दी कि वह अपने साथी पत्रकार का साथ छोड़ दें उनके साथ न रहें। कारण यह कि सत्या उपाध्याय के साथी पत्रकार ने महज एक खबर यह प्रकाशित कर दी जिसमें लिखा था कि अंजनी चला रहे हैं थाना।
अब अंजनी महाराज ने फोन करके सत्या उपाध्याय को पहले तो समझाया कि वह साथी पत्रकार का साथ छोड़ दे और बात करते करते उन्होेंने अपनी पत्नी को कान्फ्रेंस पर लेकर सत्या उपाध्याय को भड़काने के लिए गेयर लगाना शुरू किया, वह गेयर बदलते रहे, कभी बात को संभालने के लिए ब्रेक भी लगाते तो कभी टाप गेयर में फुल एक्सलेटर के साथ आते। परन्तु शायद राय साहब यह भूल गये कि उनका पाला एक ब्राहम्ण से पड़ गया है। जो उनके तेज स्पीड वाहन चालन से फँसेगा नहीं। राय साहब की पत्नी को भी न्यायालय में अपने जुबान को खोलने का कोई मौका पंडित जी महाराज ने नहीं दिया।
गहमर थाने में मौजूद यह वाहन चालन के पूरा प्रयास किया कि पंडित जी महाराज परशुराम के रूप में आ जाये मगर पंडित जी महाराज भी आज मुशीं के रूप में आ चुके थे। अपनी भड़क को दबाते रहे, मगर वाहन चालक महोदय कभी अपनी दो सालो में कप्तान साहब द्वारा दिये गये प्रशस्ति पत्र का जिक्र करते, तो कभी अपनी ईमानदारी का जिक्र करते, तो कभी पत्रकार महोदय को सही और पुष्ट खबर लिखना सिखाते, और घूम फिर कर फिर वहीं आ जाते साथ छोड़ दो। एक बार तो उन्होनें यहॉं तक कह दिया कि साथ छोड़ दो अच्छा होगा। और पत्रकार महोदय केवल यह पूछते रहे कि जब खबर दूसरे ने लिखी है तो सिपाही जी आपने मुझे फोन क्यों किया? यही खबर पर एतराज है या खबर गलत है तो न्यायालय जाईये, मानहानी का मुकदमा करीये। परन्तु सिपाही जी की वही डफली वही राग कि साथ छोड़ दो, सही पत्रकारिता करों।
अब मेरी तरह आपको भी समझ में नहीं आ रहा होगा कि अपने ऊपर के अधिकारीयों को छोड़ कर अपनी पत्नी को कान्फ्रेस पर लेन का क्या कारण था। वह अपनी गृहमंत्री के सामने कही यह साबित तो नहीं करना चाह रहे थे कि देखो जिसे तुम चुहा समझती हो वह कितना बलवान है।
अंजनी राय ने जिस प्रकार सत्या उपाध्याय को अपनी पत्नी को कान्फ्रेंस पर लेकर फोन किया और जिस प्रकार उन्होंने कभी प्यार तो कभी धमकी का प्रयोग किया और बार बार काल रिकाडिंग करने का जिक्र किया उससे साफ होता है कि या तो अंजनी राय के सर पर कोई भारी भरक हाथ हैं जिसके इशारे पर उन्होनें यह काम किया है, और वह हाथ भी ऐसा वैसा नहीं पूरी तरह से जानकार हाथ और बहुत कुछ सोच कर चलने वाला और या तो अंजनी राय बिल्कुल निरंकुश हो गये हैं। जिन्हें न अपने उच्चधिकारीयों का डर है, न अपने पद की हकीकत का पता न अपने कर्तव्यों का पता।
यदि उनको किसी भी खब़र पर एतराज था तो वह इसकी सूचना अपने अधिकारीयों को देते, जिस पत्रकार ने खबर लिखी है उससे बात करते, और यदि सत्या से ही बात करनी थी तो वह उनसे कहते कि साथी पत्रकार से बात करीये, जो समस्या है उसे दूर किया जाये, परन्तु उन्होंने ने सीधे अपनी पत्नी को हाट लाइन पर लेकर केवल साथ छोड़ने और पत्रकारिता सीखने की बात की।
अब देखना होगा कि विभागीय अधिकारी दो बार के प्रशस्ति पत्र प्राप्त अपने इस मुलाजिम पर कौन सी कार्यवाही करते हैं, या उसे इस प्रकार की घटना आगे भी करने के लिए खुला छोड़ देते हैं। हो भी सकता है सवाल ड्राइवर का है जिसके हाथो में न सिर्फ साहब की जिन्दगी है बल्कि उनके कई राज भी दफ़न होगें इस ड्राइवर के सीने में।
वैसे एक बात तो तय है कि गहमर में लोकतंत्र के चारो खंभे एक दूसरे से बंँधे हुए नहीं हैं। वह अपनी अपनी डफली अपनी अपने राग गा रहे हैं, जिससे आम जनता के सपनो की इमारत खतरे में हैं।
जो भी हो इस प्रकार कि घटना 1906 में बने गहमर थाने एवं 2019 में कोतवाली हुए गहमर कोतवाली के इतिहास में पहली घटना है, जिसकी जॉंच होनी चाहिए, और जो दोषी हो उस पर न्याेचित कार्यवाही हो।
साथ ही पुलिस विभाग अपने इस ड्राइवर को ही नहीं अपने विभाग के हर सिपाही को यह आदेश दें कि वह अपनी बात उच्चधिकारीयों को बताये, खुद पत्नी यानि अपनी गृहमंत्री को कान्फ्रेस पर लेकर इस प्रकार की हरकत न करें।उसकी पत्नी उसकी गृहमंत्री हैं संसार की नहीं। उस विभागीय मामले में कुछ नहीं कर सकती।
गहमर थाने में मौजूद यह वाहन चालन के पूरा प्रयास किया कि पंडित जी महाराज परशुराम के रूप में आ जाये मगर पंडित जी महाराज भी आज मुशीं के रूप में आ चुके थे। अपनी भड़क को दबाते रहे, मगर वाहन चालक महोदय कभी अपनी दो सालो में कप्तान साहब द्वारा दिये गये प्रशस्ति पत्र का जिक्र करते, तो कभी अपनी ईमानदारी का जिक्र करते, तो कभी पत्रकार महोदय को सही और पुष्ट खबर लिखना सिखाते, और घूम फिर कर फिर वहीं आ जाते साथ छोड़ दो। एक बार तो उन्होनें यहॉं तक कह दिया कि साथ छोड़ दो अच्छा होगा। और पत्रकार महोदय केवल यह पूछते रहे कि जब खबर दूसरे ने लिखी है तो सिपाही जी आपने मुझे फोन क्यों किया? यही खबर पर एतराज है या खबर गलत है तो न्यायालय जाईये, मानहानी का मुकदमा करीये। परन्तु सिपाही जी की वही डफली वही राग कि साथ छोड़ दो, सही पत्रकारिता करों।
अब मेरी तरह आपको भी समझ में नहीं आ रहा होगा कि अपने ऊपर के अधिकारीयों को छोड़ कर अपनी पत्नी को कान्फ्रेस पर लेन का क्या कारण था। वह अपनी गृहमंत्री के सामने कही यह साबित तो नहीं करना चाह रहे थे कि देखो जिसे तुम चुहा समझती हो वह कितना बलवान है।
अंजनी राय ने जिस प्रकार सत्या उपाध्याय को अपनी पत्नी को कान्फ्रेंस पर लेकर फोन किया और जिस प्रकार उन्होंने कभी प्यार तो कभी धमकी का प्रयोग किया और बार बार काल रिकाडिंग करने का जिक्र किया उससे साफ होता है कि या तो अंजनी राय के सर पर कोई भारी भरक हाथ हैं जिसके इशारे पर उन्होनें यह काम किया है, और वह हाथ भी ऐसा वैसा नहीं पूरी तरह से जानकार हाथ और बहुत कुछ सोच कर चलने वाला और या तो अंजनी राय बिल्कुल निरंकुश हो गये हैं। जिन्हें न अपने उच्चधिकारीयों का डर है, न अपने पद की हकीकत का पता न अपने कर्तव्यों का पता।
यदि उनको किसी भी खब़र पर एतराज था तो वह इसकी सूचना अपने अधिकारीयों को देते, जिस पत्रकार ने खबर लिखी है उससे बात करते, और यदि सत्या से ही बात करनी थी तो वह उनसे कहते कि साथी पत्रकार से बात करीये, जो समस्या है उसे दूर किया जाये, परन्तु उन्होंने ने सीधे अपनी पत्नी को हाट लाइन पर लेकर केवल साथ छोड़ने और पत्रकारिता सीखने की बात की।
अब देखना होगा कि विभागीय अधिकारी दो बार के प्रशस्ति पत्र प्राप्त अपने इस मुलाजिम पर कौन सी कार्यवाही करते हैं, या उसे इस प्रकार की घटना आगे भी करने के लिए खुला छोड़ देते हैं। हो भी सकता है सवाल ड्राइवर का है जिसके हाथो में न सिर्फ साहब की जिन्दगी है बल्कि उनके कई राज भी दफ़न होगें इस ड्राइवर के सीने में।
वैसे एक बात तो तय है कि गहमर में लोकतंत्र के चारो खंभे एक दूसरे से बंँधे हुए नहीं हैं। वह अपनी अपनी डफली अपनी अपने राग गा रहे हैं, जिससे आम जनता के सपनो की इमारत खतरे में हैं।
जो भी हो इस प्रकार कि घटना 1906 में बने गहमर थाने एवं 2019 में कोतवाली हुए गहमर कोतवाली के इतिहास में पहली घटना है, जिसकी जॉंच होनी चाहिए, और जो दोषी हो उस पर न्याेचित कार्यवाही हो।
साथ ही पुलिस विभाग अपने इस ड्राइवर को ही नहीं अपने विभाग के हर सिपाही को यह आदेश दें कि वह अपनी बात उच्चधिकारीयों को बताये, खुद पत्नी यानि अपनी गृहमंत्री को कान्फ्रेस पर लेकर इस प्रकार की हरकत न करें।उसकी पत्नी उसकी गृहमंत्री हैं संसार की नहीं। उस विभागीय मामले में कुछ नहीं कर सकती।
ये कोई जाँच का विषय नहीं है । वेचारा पत्नी को अपना पवार दिखा रहा है तो इसमें क्या बुराई है । समय समय पर सभी पतियों को ऐसा करना चाहिए पत्नी को हड़काने के लिए । इस छोटी सी बात का अन्यथा ना ले । इस घटना को दूसरे दृष्टिकोण से सोचे - घर में बीबी परेशान कर रही होगी , जैसा की कभी कभी आपलोग भी होते होगे । तो पत्नी को अपनी हनक दिखाने के ऐसा किया गया है मेरी समझ से ।
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