लोक सभा चुनाव 2019 और गहमर द्वितीय भाग-:
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2019 लोक सभा चुनाव के परिपेक्ष ...................................देखते हैं हकीकत की तस्वीर।।।
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गाजीपुर के पूर्व सांसदो ,वर्तमान सांसद रेल राज्यमंत्री/दूर संचार मंत्री औरभारत प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक ने कितनी बार गहमर के सैनिको की तारीफ कर चुके हैं यदि अखंड गहमरी रख पाता तो वह भी कही लाल नीली बत्ती में होता न कि घर में बैठ वाइफ होम की सेवा में मगसूल रहता। आज मैं गहमर के बारे में एक और भ्रम तोड़ना चाहता हूँ। वह यह कि यहॉं के नौजवान केवल सेना में नहीं बल्कि देश की कोई भी ऐसी सुरक्षा एजेन्सी नहीं, भारत का कोई ऐसा राज्य नहीं जिसकी पुलिस में गहमर के दर्जनों नौजवान कार्यरत न हो। गहमर के वीरता के इतिहास की बात अगर मैं वर्ष 1535 से करूँ तो दो बाते समाने होेगीं पहली की आप पढ़ न सकेगें दूसरे मेरी लेखनी किसी न किसी के योगदान को छोड़ने के कलंक से कलंकित भी हो जायेगी।
इस लिए मैं शुरूआत करता हूँ प्रथम स्वतंन्त्रता संग्राम सेनानी वीर मैगर सिंह से जिनके वीरता का खौफ अंग्रेजी हूकूमत में इस कदर था कि उनके गहमर आगमन की सूचना मात्र से रात में अंग्रेज अधिकारी अपनी जान की परवाह न करते हुए गंगा नदी मे कूद कर अपनी जान बचा कर भागने पर मजबूर हो गये, प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेने वाले मैगर सिंह अकेले नहीं थे उनके साथ दर्जनों गहमर के नौजवान थे। प्रथम विश्व युद्व से लेकर द्वितीय विश्व युद्व तक गहमर के 219 सैनिक शहीद हो चुके हैं। द्वितीय स्वतंन्त्रा संग्राम आन्दोलन की कोई ऐसी मुख्य या गुमनाम धारा नहीं जिसमें गहमर के वीर न रहे हो। चाहे गहमर डाकघर, रेलवे स्टेशन, पुलिस स्टेशन जलाना हो, या अंग्रेजो को शासन हटा कर अपना शासन 42 दिनो तक करना हो, यहॉं के नौजवानो ने किया।
(समस्त आन्दोलनकारीयों का नाम पिता का नाम व पटटी लिखना संभव नहीं हैं, जो चाहे उसे उपलब्ध हो जायेगा, मेरी अप्रकाश्तिा पुस्तक गहमर दिगदिर्शका में सबका नाम है)आजादी के बाद भी गहमर के सैनिको का सिलसिला थमा नहीं। गहमर की इस वीरता को देखते हुए वर्ष 1989 तक गहमर के पंचायत भवन पर विशेष सैनिक भर्ती गहमर के लिए आती थी, जिसे रैली भर्ती शुरू होने के बाद बंद कर दिया गया।
वीरता के नित्य नये दिन आयाम रखने वाले गहमर को आखिर हकीकत के धरातल पर मिला क्या ? आज यह प्रश्न मैं रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा के सामने रखना चाहता हूँ। मनोज सिन्हा के समझ इस लिए रखना हूँ क्योंकि गहमर ने हमेशा मनोज सिंन्हा के मान सम्मान की रक्षा की है, वह यदि चुनाव हारें भी हैं तो कभी गहमर में उनके मतो का प्रतिशत कम नहीं रहा है। आज सेना के नाम पर गहमर को अपने लक्षेदार बातो में उलझाने वाले इन सांसदो ने गहमर को दिया क्या ? गहमर को इन नेताओं से सुविधा लेने की बात मैं इस लिए हक से करता हूँ क्योंकि ये मत मॉंगते हुए गहमर के इतिहास को दुहरा कर गहमर के मतदाताओं को संवेदनाओं से खेलते हैं। आज यहॉं का नौजवान सीमा पर तैनात है मगर घर में जब उसकी बीबी, उसके बच्चे, उसके मॉं-बाप बिमार होते है तो वह तड़पने को मजबूर होते हैं क्योंकि एक सुविधा जनक चिकित्सालय गहमर में नहीं हैं। वह पड़ोसीयों की दया पर, अपने रिश्तेदारो की सहायता से गाजीपुर या बनारस पहुँचने का प्रयास करते है, ताकि वह अपना जीवन बचा सके, उनके ऑंखो में अश्क होते हैं मगर न वो कुछ कर पाते हैं और न देश की सीमा पर या अपने गॉंव से मीलो दूर अपने या किसी अन्य राज्य की पुलिस में तैनात उनका सिपाही बेटा, पति या पिता कुछ कर पाता है। वह लाचार होकर बस समय का इन्तजार करता है और मॉं कामाख्या से विनती करता है कि उसके परिवार को वह सुरक्षित रखें।
आज गहमर के सैनिकों के पास अपने रेलवे स्टेशन से भारत की किसी सीमा पर जाने की सीधी ट्रेन नहीं हैं, वह मीलों चल अन्य स्टेशनो पर जाकर देश की सीमाओं की तरफ जाने वाली ट्रेने पकड़ते है, गहमर रेलवे स्टेशन पर पार्सल की सुविधा न होने से वह अपने आवश्यक सामान, बक्सें लेकर कैसे यात्रा प्रारंभ्भ करते हैं ये तो सैनिको का दिल ही जानता होगा, मुझे तो बस लेखनी चलानी है। जब गहमर में बात सीमा पर जाने वाले ट्रेनो के ठहराव की बात होती है तो हमारे मंत्री जो गहमर के सैनिको की तारीफ करते नहीं थकते बडी आसानी से कह देते हैं कि एक ट्रेन के ठहराव में कितनी परेशानी आती है आपको नहीं पता, और वही मंत्री दूसरे दिन जाकर जनपद के विभिन्न भागों में ट्रेनो का ठहराव देते है, और जब सब खत्म होने को होता है तो मगध एक्सप्रेक्स जैसी ट्रेन का ठहराव कर अपना सीना ठोक लेते हैं। गहमर के लोगो ने गहमर में सैनिक स्कूल की मॉंग उठाई थी, जिससे सैनिको के बच्चे अपने गॉंव में ही अच्छी शिक्षा ग्रहण कर सेना में जा सके, वर्ष 2001 के दशक में माननीय अटल बिहारी वाजपेई जी की सरकार में भी यह मॉंग उठी, मगर किसी को सुनाई नहीं दी, उसके बाद से हमेशा गाजीपुर का र्दुभाग्य रहा कि केन्द्र में जिसकी सरकार बनी हमारा सांसद उसका विरोधी ही था, मगर इस विरोधी खेमें में भी एक सांसद राधेमोहन सिंह ऐसा सांसद हआ जिसने जनता की कसौटी पर खरा उतरने का पूरा प्रयास किया, बहुत कुछ किया परन्तु वह भी गहमर में सैनिक स्कूल की मॉंग को पूरा न करा सका। माननीय सिन्हा जी के आगमन के बाद मोदी के सराकर बनने और गाजीपुर जनपद के मंच से बार बार गहमर का नाम लेने के बाद आशा बनी कि गहमर में सैनिक स्कूल खुलेगा, मगर चर्चा तक न हुई। गहमर के युवाओं के लिए आने वाली विशेष भर्ती को दुबारा चालू करने का पूरा प्रयास राधे मेाहन सिंह द्वारा किया गया मगर वह असफल रहें, मगर इसका प्रयास बार बार सैनिको का नाम लेकर गहमर को संबोधित करने वाले मोदी सरकार और इनके मंत्री द्वारा कोई प्रयास माननीय द्वारा नहीं किया गया, और यदि किया गया तो क्यों नहीं पूरा हुआ जबकि सारा कुछ इनका ही था।
यही नहीं गहमर के वीर आन्दोलन कारीयों के नाम पर जिससे दुनिया जानती है न गाजीपुर जनपद में किसी स्मारक, पुल, सड़क, ईमारत का नामकरण किया गया, न डाक टिकट जारी किया गया और न ही इनके नाम पर रेल व्यवस्था में किसी ट्रेन का नामकरण किया गया।
आज यह सैनिको का नाम लेकर गहमर को संबोधित करने वाली सरकार न गहमर के सैनिको को अच्छा स्वास्थ दे सकी, न शिक्षा दे सकी और न ही उसको सीमा पर जाने का संसाधन दे सकी, तो किस बात की तारीफ, किस बात का संबोधन। क्या केवल मतदाताओं को रिझाने के लिए गहमर के सैनिको का सम्मान किया जा रहा है ?
यह मेरा लेख किसी दुभावना से प्रेरित नहीं है, मैने वही लिखा जिसको मैने अपने 2001 में 21 साल की उम्र से पत्रकारिता ज्वाइन करने और 2014 में छोडने के बाद तक कई बार समाचार पत्र में प्रकाशित कराया।
क्रमस: जारी
आगे पढे गहमर के साहित्यकारों पर सरकार की भूमिका।
अखंड गहमरी।
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2019 लोक सभा चुनाव के परिपेक्ष ...................................देखते हैं हकीकत की तस्वीर।।।
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गाजीपुर के पूर्व सांसदो ,वर्तमान सांसद रेल राज्यमंत्री/दूर संचार मंत्री औरभारत प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक ने कितनी बार गहमर के सैनिको की तारीफ कर चुके हैं यदि अखंड गहमरी रख पाता तो वह भी कही लाल नीली बत्ती में होता न कि घर में बैठ वाइफ होम की सेवा में मगसूल रहता। आज मैं गहमर के बारे में एक और भ्रम तोड़ना चाहता हूँ। वह यह कि यहॉं के नौजवान केवल सेना में नहीं बल्कि देश की कोई भी ऐसी सुरक्षा एजेन्सी नहीं, भारत का कोई ऐसा राज्य नहीं जिसकी पुलिस में गहमर के दर्जनों नौजवान कार्यरत न हो। गहमर के वीरता के इतिहास की बात अगर मैं वर्ष 1535 से करूँ तो दो बाते समाने होेगीं पहली की आप पढ़ न सकेगें दूसरे मेरी लेखनी किसी न किसी के योगदान को छोड़ने के कलंक से कलंकित भी हो जायेगी।
इस लिए मैं शुरूआत करता हूँ प्रथम स्वतंन्त्रता संग्राम सेनानी वीर मैगर सिंह से जिनके वीरता का खौफ अंग्रेजी हूकूमत में इस कदर था कि उनके गहमर आगमन की सूचना मात्र से रात में अंग्रेज अधिकारी अपनी जान की परवाह न करते हुए गंगा नदी मे कूद कर अपनी जान बचा कर भागने पर मजबूर हो गये, प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेने वाले मैगर सिंह अकेले नहीं थे उनके साथ दर्जनों गहमर के नौजवान थे। प्रथम विश्व युद्व से लेकर द्वितीय विश्व युद्व तक गहमर के 219 सैनिक शहीद हो चुके हैं। द्वितीय स्वतंन्त्रा संग्राम आन्दोलन की कोई ऐसी मुख्य या गुमनाम धारा नहीं जिसमें गहमर के वीर न रहे हो। चाहे गहमर डाकघर, रेलवे स्टेशन, पुलिस स्टेशन जलाना हो, या अंग्रेजो को शासन हटा कर अपना शासन 42 दिनो तक करना हो, यहॉं के नौजवानो ने किया।
(समस्त आन्दोलनकारीयों का नाम पिता का नाम व पटटी लिखना संभव नहीं हैं, जो चाहे उसे उपलब्ध हो जायेगा, मेरी अप्रकाश्तिा पुस्तक गहमर दिगदिर्शका में सबका नाम है)आजादी के बाद भी गहमर के सैनिको का सिलसिला थमा नहीं। गहमर की इस वीरता को देखते हुए वर्ष 1989 तक गहमर के पंचायत भवन पर विशेष सैनिक भर्ती गहमर के लिए आती थी, जिसे रैली भर्ती शुरू होने के बाद बंद कर दिया गया।
वीरता के नित्य नये दिन आयाम रखने वाले गहमर को आखिर हकीकत के धरातल पर मिला क्या ? आज यह प्रश्न मैं रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा के सामने रखना चाहता हूँ। मनोज सिन्हा के समझ इस लिए रखना हूँ क्योंकि गहमर ने हमेशा मनोज सिंन्हा के मान सम्मान की रक्षा की है, वह यदि चुनाव हारें भी हैं तो कभी गहमर में उनके मतो का प्रतिशत कम नहीं रहा है। आज सेना के नाम पर गहमर को अपने लक्षेदार बातो में उलझाने वाले इन सांसदो ने गहमर को दिया क्या ? गहमर को इन नेताओं से सुविधा लेने की बात मैं इस लिए हक से करता हूँ क्योंकि ये मत मॉंगते हुए गहमर के इतिहास को दुहरा कर गहमर के मतदाताओं को संवेदनाओं से खेलते हैं। आज यहॉं का नौजवान सीमा पर तैनात है मगर घर में जब उसकी बीबी, उसके बच्चे, उसके मॉं-बाप बिमार होते है तो वह तड़पने को मजबूर होते हैं क्योंकि एक सुविधा जनक चिकित्सालय गहमर में नहीं हैं। वह पड़ोसीयों की दया पर, अपने रिश्तेदारो की सहायता से गाजीपुर या बनारस पहुँचने का प्रयास करते है, ताकि वह अपना जीवन बचा सके, उनके ऑंखो में अश्क होते हैं मगर न वो कुछ कर पाते हैं और न देश की सीमा पर या अपने गॉंव से मीलो दूर अपने या किसी अन्य राज्य की पुलिस में तैनात उनका सिपाही बेटा, पति या पिता कुछ कर पाता है। वह लाचार होकर बस समय का इन्तजार करता है और मॉं कामाख्या से विनती करता है कि उसके परिवार को वह सुरक्षित रखें।
आज गहमर के सैनिकों के पास अपने रेलवे स्टेशन से भारत की किसी सीमा पर जाने की सीधी ट्रेन नहीं हैं, वह मीलों चल अन्य स्टेशनो पर जाकर देश की सीमाओं की तरफ जाने वाली ट्रेने पकड़ते है, गहमर रेलवे स्टेशन पर पार्सल की सुविधा न होने से वह अपने आवश्यक सामान, बक्सें लेकर कैसे यात्रा प्रारंभ्भ करते हैं ये तो सैनिको का दिल ही जानता होगा, मुझे तो बस लेखनी चलानी है। जब गहमर में बात सीमा पर जाने वाले ट्रेनो के ठहराव की बात होती है तो हमारे मंत्री जो गहमर के सैनिको की तारीफ करते नहीं थकते बडी आसानी से कह देते हैं कि एक ट्रेन के ठहराव में कितनी परेशानी आती है आपको नहीं पता, और वही मंत्री दूसरे दिन जाकर जनपद के विभिन्न भागों में ट्रेनो का ठहराव देते है, और जब सब खत्म होने को होता है तो मगध एक्सप्रेक्स जैसी ट्रेन का ठहराव कर अपना सीना ठोक लेते हैं। गहमर के लोगो ने गहमर में सैनिक स्कूल की मॉंग उठाई थी, जिससे सैनिको के बच्चे अपने गॉंव में ही अच्छी शिक्षा ग्रहण कर सेना में जा सके, वर्ष 2001 के दशक में माननीय अटल बिहारी वाजपेई जी की सरकार में भी यह मॉंग उठी, मगर किसी को सुनाई नहीं दी, उसके बाद से हमेशा गाजीपुर का र्दुभाग्य रहा कि केन्द्र में जिसकी सरकार बनी हमारा सांसद उसका विरोधी ही था, मगर इस विरोधी खेमें में भी एक सांसद राधेमोहन सिंह ऐसा सांसद हआ जिसने जनता की कसौटी पर खरा उतरने का पूरा प्रयास किया, बहुत कुछ किया परन्तु वह भी गहमर में सैनिक स्कूल की मॉंग को पूरा न करा सका। माननीय सिन्हा जी के आगमन के बाद मोदी के सराकर बनने और गाजीपुर जनपद के मंच से बार बार गहमर का नाम लेने के बाद आशा बनी कि गहमर में सैनिक स्कूल खुलेगा, मगर चर्चा तक न हुई। गहमर के युवाओं के लिए आने वाली विशेष भर्ती को दुबारा चालू करने का पूरा प्रयास राधे मेाहन सिंह द्वारा किया गया मगर वह असफल रहें, मगर इसका प्रयास बार बार सैनिको का नाम लेकर गहमर को संबोधित करने वाले मोदी सरकार और इनके मंत्री द्वारा कोई प्रयास माननीय द्वारा नहीं किया गया, और यदि किया गया तो क्यों नहीं पूरा हुआ जबकि सारा कुछ इनका ही था।
यही नहीं गहमर के वीर आन्दोलन कारीयों के नाम पर जिससे दुनिया जानती है न गाजीपुर जनपद में किसी स्मारक, पुल, सड़क, ईमारत का नामकरण किया गया, न डाक टिकट जारी किया गया और न ही इनके नाम पर रेल व्यवस्था में किसी ट्रेन का नामकरण किया गया।
आज यह सैनिको का नाम लेकर गहमर को संबोधित करने वाली सरकार न गहमर के सैनिको को अच्छा स्वास्थ दे सकी, न शिक्षा दे सकी और न ही उसको सीमा पर जाने का संसाधन दे सकी, तो किस बात की तारीफ, किस बात का संबोधन। क्या केवल मतदाताओं को रिझाने के लिए गहमर के सैनिको का सम्मान किया जा रहा है ?
यह मेरा लेख किसी दुभावना से प्रेरित नहीं है, मैने वही लिखा जिसको मैने अपने 2001 में 21 साल की उम्र से पत्रकारिता ज्वाइन करने और 2014 में छोडने के बाद तक कई बार समाचार पत्र में प्रकाशित कराया।
क्रमस: जारी
आगे पढे गहमर के साहित्यकारों पर सरकार की भूमिका।
अखंड गहमरी।
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