शुक्रवार, 21 सितंबर 2018

घुमक्‍कड प्रव़ति का मैं अाज फिर मैं घूमने निकल गया, दिल्‍ली से दौलताबाद होते हुए हुए अचानक मैं झरनीया में अपनी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियॉं के घर जा बैठा। बेहई का आलम तो तब हुआ जब वह नज़रे चुराती रही मैं चाय पानी की फरमाईस कर बैठा। बेचारी करती भी क्‍या वह मुझे बैठा कर चाय पानी दे ही रही थी कि तभी उसका बच्‍चा आ गया और मुझे मामा जी कर कर प्रणाम कर बैठा, मेरी तो दशा आप समझ ही गये होगें, क्‍योकि कभी न कभी तो आप भी इस बिमारी से ग्रस्ति हुए होगें।
मेरे प्‍यारे से भानजें को देख कर उसमें कुछ हिटलरपन आ गया, उसे देखते ही अपने मुहँ से फूल बरसाती हुई बोल पड़ी, आ गये चलो बैग उतारो, टिफीन खाया कि नहीं, खाना खाओं, और होमवर्क करों, टीचर जी आते होगें। उसके इतने सवाल तो सुन कर मैं परेशान हो गया। मैं तो गजगमिनियॉं को देखने लगा कि यह वही है जो मेरे साथ HSBBF कर रही थी, आप आप यह सोच रहे होगें कि यह कौन सी डिग्री है तो आप को बताते चले कि हम दोनो हाई स्‍कूल में बार बार फेल हैं।मैं अपनी सोच में मग्‍न था तभी चटाक- चटाक के साथ गजगमिनियॉं की मोटी आवाज सुनाई दी, टीफिन नहीं खाया, क्‍या करते हो तुम न खाना-पीना कुछ नहीं।
ये शर्ट पर दाग कैसा हैं आज फिर कुछ बाहर का खाया क्‍या। मैं तो जैसे पागल होने लगा, मैं चुपके से वहॉं से चल दिया, न जाने मेरे आने का गुस्‍सा था या बच्‍चे पर आधुनिकता का रौब या दोनो परिस्थितियॉं।
वहॉं से जैसे ही बाहर निकला मेरी एक और पूर्वप्रेमिका मजगमिनियॉं से मुलाकात हो गई।, बड़े ही प्‍यार से उसने मेरा स्‍वागत किया, मैं तो बाग बाग कर उठा। अब आप जलीयेगा मत, आप का चेहरा ही ठीक नहीं है तो मेरी क्‍या गलती, मेरे पर तो लाखों मरती हैं आप मर न मरें तो हम क्‍या करें। मैं अपनी पूर्व प्रेमिका के बाहों में बाहें डाल कर चलता हूँ, गजगौरी के बाग में पहुँच गया, जहॉं आमो से लदें बागीचे देख कर मुझे लगा कि यहॉं तो बच कर बैठना चाहिए, कब कोई पत्‍थर आकर सिर पर न लग जाये, मैं अपने हाथ सिर पर रख कर चलने लगा। तभी मेरी प्रेमिका जोर से हँस पड़ी और बोली मेरे भकबेलन हीरो हाथ हटा लों जो तुम सोच रहे हो एैसा कुछ नहीं होगा, यहॉं बच्‍चे नहीं आते अब आम के बगीचों में जानू, और आराम से बैठों और मेरी जुल्‍फों से जुएं निकालों, बहुत दिनों के बाद मिले हो, देखो मेरे सिर का क्‍या हाल कर दिया है जुएं ने। मैं तो अब प्रेम की दुनिया भूल चुका था, मैं उसे आज की सारी बात बताई। उसने हसते हुए जबाब दिया जानू अब भूल कर भी मत खोजना बचपन, बचपन तो भेटं चढ़कर आधुनिकता के दिखाबे में, अब तो ऑंख भी ठीक से बच्‍चा स्‍कूल में खोलता है। किताबों के बोझ से उसके कन्‍धे झुके हैं। बाहर खाना पीना घूमना और खेलना तो अब अपराध हो गया हैं जानू। मॉं बाप आधुनिकता और दिखावें के चक्‍कर में बच्‍चों को किताबी कीडा से अधिक कुछ समझते ही नहीं। आज तुम्‍हारी पहली प्रेमिका ने जो किया वह नया नहीं है कहानी घर घर की हैं, बच्‍चें स्‍कूल से आने के बाद दो प्‍यार के बोल को तरस जाते हैं, आते ही पहले नौवां घंटा उनका घर में शुरू हो जाता है। सवाल जबाब, जैसे तैसे दो रोटी मुहँ के नीचे और फिर शुरू दिखावे की जिन्‍दगी। सकून के दो पल के लिए तरस जाता है आज का नौनिहाल और फिर ढ़ाल लेता है अपने आपको उसी परिवेश में। मेरे जानू और मॉं कहती है मेरा बेटा ठीक से खाता नहीं, हसता नहीं, वह कहॉं से हसेगा जब आप उसे जीने ही नहीं दोगें। समाज के सामने दिखावे में उसे रोबेट बना कर खडा कर दोगो, अंग्रेजी और पश्चिमी करण के चक्‍कर में उसे अपनी संस्‍कृति से दूर कर कुछ सीखने नहीं दोगें। वह बोले जा रही थी और मैं उसका चेहरा देखे जा रहा था।
यह सोच रहा था कि कल की पागल मेरी यह प्रेमिका मजगमिनियॉं कितनी चालक हो गई।सही बात है घुमकड़ प्रवृति का अखंड गहमरी घूमता ही रहता है, इस गली उस गली। बहुत कुछ देखा उसने बहुत कुछ सुना उसने। पर उसकी ऑंखे कुछ तलाशती रहती है। लेह से कन्‍याकुमारी तक, जीरो से द्वारिका तक हर जगह हर समय तलाशती हैं उसकी ऑंखे। वो खोजता फिरता है बचपन मगर उसे बच्‍चों में बचपन तो कही दिखाई ही नहीं देता। वह तो 2 साल के बच्‍चों में उदासी, कर्तव्‍य-बोध, मोटापा, गंम्‍भीरता और ऑंखों में डर, हाथो में मोबाइल, कंधे पर बोझ ही देख पता है। वह खोज रहा है आज के बच्‍चो में बचपन, वो फुदकना, चहकना, दौड़ना, हसना, खाना, मगर दिखता ही नहीं। समझ में नहीं आता कि वह कौन सा राक्षस है जो बच्‍चों से यह छीन ले गया। शायद दादी की कहानीयों में जो राक्षस था वह निकल आया और प्रवेश कर गया आज के आधुनिक समाज में और छीन बैठा बच्‍चों का बचपन।
अब जब मेरी प्र‍ेमिका ही ऐसा कर रही है तो मैं कैसे और किससे कहूँ
मत छीनो बचपन, मतछीनो बचपन।
अखंड गहमरी, गहमर, गाजीपुर।।

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