भगवान
शंकर के दरबार से अचानक बुलावा आना मेरे लिये कोई नया नहीं है। वर्ष 1995
में कावँरियो की ट्रक बाबा बैजू के दरवार जाने को तैयार और मैने मज़ाक में
ट्रक के संचालक हेराम भैया से कह दिया कि "पैसा नहीं लगता तो मै भी चलता"
फिर क्या था, मेरे घर से अनुमति से लेकर तैयारी तक 20 मिनट में और मैं
जलाभिषेक करने "बाबा बैजू कि नगरी""।
वर्ष 2009 अप्रैल में नेट पर काम करते करते अचानक अमरनाथजी की यात्रा का विज्ञापन देखा। दूसरो को बताने के लिए उसे भरने का तरीका खोजने लगा और अपना ही कर बैठा। मम्मी पापा की'' ना '' हा में बदल गई और चल दिया ''बाबा बर्फानी'' के दरबार में।
ऐसा ही कुछ 30 जुलाई को हुआ। पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार हम और पत्नी कोलापुर महालक्षमी के दर्शन पहुँचे। अगले दिन यानि 31 जुलाई को दर्शन करना था। और रात में ट्रेन से बम्बई आकर 01 आगस्त को गहमर प्रस्थान करना था।
स्टेशन पर उतरा तो देखा लोग स्टेशन पर ही तैयार हो-हो कर मंदिर दर्शन करने जा रहे हैं, हम लोग भी वही काम किये तिरूपतिबाला जी से 17 घंटे के सफर के बाद शाम 4:30 पर स्टेशन उतरे हम लोग ''महालक्ष्मी देवी '' का दर्शन 6 बजे कर स्टेशन वापस आ रहे थे।
रास्ते म़े मन में अचानक आया कि 24 घंटे होटल में बैठने से अच्छा है कही घूमा जाये। ये पता था कि महाराष्ट्र में तीन ज्योतिर्लिंग हैं मैने नेट पर सर्च किया तो पूना नजदीक भीमाशंकर, नासिक के पास त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग और औरंगाबाद में बाबा का स्थान पाया।
तब तक मदिंर से दर्शन करा कर लौट रही आटो कोलापुर प्राईवेट बस स्टैशन आ चुकी थी। पूना के बारे में पता किया तो अच्छी बस में सीट उलब्ध थी, फिर क्या था चल दिये 9 बजे रात को पूना। 31 जुलाई की सुबह 3 बजे पूना पहुँचे, वहाँ के शिवाजी टर्मिनल से दूसरी बस से 8 बजे ""भीभाशंकर ""।
एक तो ज्योतिलिंग दूसरे सावन और तीसरे सोमवार चौथे पहाडियों का अत्यधि खराब मौसम। मंदिर पर 4 किलोमीटर की डबल लाइन।कड़कड़ाती ठंड में नहाधोकर मंदिर आये, स्पेशल दर्शन का टिकट लिये और 1घंटे में दिव्य .दर्शन कर वापस 11 बजे नासिक के लिए चल दिये।
तभी पत्नी ने कहा कि नासिक के पास शिर्डी भी है क्यों न हम वहाँ भी दर्शन कर लें। आप अन्दर मत जाईयेगा, गेट पर रहीयेगा, हम दर्शन कर के आ जायेगे।
मैने रास्ता पता किया तो पता चला कि हम लोग शिर्डी होकर भी 01 अगस्त की सुबह तक त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग नाशिक पहुँच सकते हैं।
हम लोग भीभाशंकर से मंचर, मंचर से संगरमा और संगरमा से शाम 5 बजे हम लोग शिर्डी पहुँचे। पास लेकर हम लोग साई स्थान पर गये। शाम 8 बजे तक पत्नी वहाँ दर्शन कर बाहर गेट पर आगई।
हम लोग सामान उठाये, शिर्डी बस स्टैन्ड आये तो पता चला कि रात एक नासिक की बस है। बाहर आकर नीजी बस सेवा पता किये तो एक बस नासिक तक मिल गई।
टिकट लेकर बैठे तो पता चला कि वह बस सीधे त्र्यंबकेश्वर जा रही है। टिकट बढवाया और बैठ गये।
भारी बारिस के बीच हम रात 01 बजे त्र्यंबकेश्वर पहँचे। बस वाले ने सभी को मंदिर के बगल में 300 रूपये में कमरा दिलवा दिया। रात 2 बजे बस से होटल पहुँचते पहुँचते सामान और हम लोग भींग चुके थे। चेंज कर हम लोग सो गये। सुबह 5 बजे तैयार होकर मंदिर पहुँचे। भीड़ काफी हो गई थी। मगर आराम से दिव्य दर्शन हुए और हम लोग 9 बजे वहाँ से बम्बई प्रस्थान कर शाम के 4 बजे मुम्बई आ गये।
थोड़ी मस्ती जूहू बीच पर करके रात 10 बजे कुर्ली से गहमर।
इस प्रकार 24 घंटे होटल में आराम करने की जगह एक बस से दूसरी और दूसरी से तीसरी,चौथी, पाँचवी...बस बदले हुए हम भीमाशंकर और त्र्यंबकेश्वर का और मेरी पत्नी भीभाशंकर, साई बाबा और त्र्यंबकेश्वर जी के दर्शन कर अपनी आत्मा और आँखो को सुख दे चुके थे।
अखंड गहमरी
यात्रा स्मरण,जय भोले।।
वर्ष 2009 अप्रैल में नेट पर काम करते करते अचानक अमरनाथजी की यात्रा का विज्ञापन देखा। दूसरो को बताने के लिए उसे भरने का तरीका खोजने लगा और अपना ही कर बैठा। मम्मी पापा की'' ना '' हा में बदल गई और चल दिया ''बाबा बर्फानी'' के दरबार में।
ऐसा ही कुछ 30 जुलाई को हुआ। पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार हम और पत्नी कोलापुर महालक्षमी के दर्शन पहुँचे। अगले दिन यानि 31 जुलाई को दर्शन करना था। और रात में ट्रेन से बम्बई आकर 01 आगस्त को गहमर प्रस्थान करना था।
स्टेशन पर उतरा तो देखा लोग स्टेशन पर ही तैयार हो-हो कर मंदिर दर्शन करने जा रहे हैं, हम लोग भी वही काम किये तिरूपतिबाला जी से 17 घंटे के सफर के बाद शाम 4:30 पर स्टेशन उतरे हम लोग ''महालक्ष्मी देवी '' का दर्शन 6 बजे कर स्टेशन वापस आ रहे थे।
रास्ते म़े मन में अचानक आया कि 24 घंटे होटल में बैठने से अच्छा है कही घूमा जाये। ये पता था कि महाराष्ट्र में तीन ज्योतिर्लिंग हैं मैने नेट पर सर्च किया तो पूना नजदीक भीमाशंकर, नासिक के पास त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग और औरंगाबाद में बाबा का स्थान पाया।
तब तक मदिंर से दर्शन करा कर लौट रही आटो कोलापुर प्राईवेट बस स्टैशन आ चुकी थी। पूना के बारे में पता किया तो अच्छी बस में सीट उलब्ध थी, फिर क्या था चल दिये 9 बजे रात को पूना। 31 जुलाई की सुबह 3 बजे पूना पहुँचे, वहाँ के शिवाजी टर्मिनल से दूसरी बस से 8 बजे ""भीभाशंकर ""।
एक तो ज्योतिलिंग दूसरे सावन और तीसरे सोमवार चौथे पहाडियों का अत्यधि खराब मौसम। मंदिर पर 4 किलोमीटर की डबल लाइन।कड़कड़ाती ठंड में नहाधोकर मंदिर आये, स्पेशल दर्शन का टिकट लिये और 1घंटे में दिव्य .दर्शन कर वापस 11 बजे नासिक के लिए चल दिये।
तभी पत्नी ने कहा कि नासिक के पास शिर्डी भी है क्यों न हम वहाँ भी दर्शन कर लें। आप अन्दर मत जाईयेगा, गेट पर रहीयेगा, हम दर्शन कर के आ जायेगे।
मैने रास्ता पता किया तो पता चला कि हम लोग शिर्डी होकर भी 01 अगस्त की सुबह तक त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग नाशिक पहुँच सकते हैं।
हम लोग भीभाशंकर से मंचर, मंचर से संगरमा और संगरमा से शाम 5 बजे हम लोग शिर्डी पहुँचे। पास लेकर हम लोग साई स्थान पर गये। शाम 8 बजे तक पत्नी वहाँ दर्शन कर बाहर गेट पर आगई।
हम लोग सामान उठाये, शिर्डी बस स्टैन्ड आये तो पता चला कि रात एक नासिक की बस है। बाहर आकर नीजी बस सेवा पता किये तो एक बस नासिक तक मिल गई।
टिकट लेकर बैठे तो पता चला कि वह बस सीधे त्र्यंबकेश्वर जा रही है। टिकट बढवाया और बैठ गये।
भारी बारिस के बीच हम रात 01 बजे त्र्यंबकेश्वर पहँचे। बस वाले ने सभी को मंदिर के बगल में 300 रूपये में कमरा दिलवा दिया। रात 2 बजे बस से होटल पहुँचते पहुँचते सामान और हम लोग भींग चुके थे। चेंज कर हम लोग सो गये। सुबह 5 बजे तैयार होकर मंदिर पहुँचे। भीड़ काफी हो गई थी। मगर आराम से दिव्य दर्शन हुए और हम लोग 9 बजे वहाँ से बम्बई प्रस्थान कर शाम के 4 बजे मुम्बई आ गये।
थोड़ी मस्ती जूहू बीच पर करके रात 10 बजे कुर्ली से गहमर।
इस प्रकार 24 घंटे होटल में आराम करने की जगह एक बस से दूसरी और दूसरी से तीसरी,चौथी, पाँचवी...बस बदले हुए हम भीमाशंकर और त्र्यंबकेश्वर का और मेरी पत्नी भीभाशंकर, साई बाबा और त्र्यंबकेश्वर जी के दर्शन कर अपनी आत्मा और आँखो को सुख दे चुके थे।
अखंड गहमरी
यात्रा स्मरण,जय भोले।।
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