मैं काफी कम उम्र से ही पत्रकारिता में था, किसी चीज को खोजना, संदेह करना और जड़ तक पहुँचना मेरे आदत में शुमार हो गया, जो पत्रकारिता छूटने के बाद भी जारी रहा। तिरूपतिबाला जी मंदिर में भीड़ की कहानी और उसके बारे में हमेशा सुनता। कई बार जाने को सोच कर भी इस कारण नहीं जा पाया। हिम्मत कर प्रोग्राम बना कर विगत 28 जुलाई को रामेश्वरम से तिरूपति स्टेशन पहुँचा।वहाँ से तिरमूल पर्वत की तरफ चल दिया। तन के साथ मन भी चल रहा था।
शहर से निकलते ही 25 किमी दूर ही मंदिर ट्रस्ट की व्यवस्था शुरू हुई। चेक पोस्ट पर गाडीयो से सभी को उतार कर, गाडीयो की डिक्की से एक एक सामान पहले डिजिटल एक्सरे और फिर मानव चेकिंग।
हम लोग तय शुदा मठ पर पहुँचे। मठ में मौजूद मध्यप्रदेश के रीवा की एक महिला बैठी थी, बात ही बात में उसने बताया कि वह 8 बजे सुबह लाइन में लगी थी और गोदी में बच्चे के कारण 1 घंटे में दर्शन हो गया। उसके पति और देवर सुबह 8 बजे से फ्री दर्शन की लाइन में हैं, दो बच गया अभी तक नही आये, देर रात तक आ पायेगें।
खैर नहा धोकर हम मुडंन कराने नियमित स्थान पहुँचे। रास्ते में शहर की भीड़, होटलो, धर्मशालाओ एवं मठो की भीड़ देख कर मैं इस बात का अंदाजा लगाने की कोशिश कर रहे थे कि कितनी भीड़ है। जिससे बात करें वही भाड़ी भीड़ की बात करे। मैं भीड़ का कारण खोजने में जुटा रहा। इसी क्रम में मेरी मुलाकात दिल्ली से आये तीन लोगो से हुई जो एक चौराहे पर खड़े आपस में बात कर रहे थे कि सुबह आठ बजे फ्री दर्शन में लगे हैं शाम 4 बजे का पुर्जी हैं, पता नही कब नम्बर आयेगा। वह लोग वहाँ कि व्यवस्था पर संतुष्ट नही दिखे।
शाम के 7 बज चुके थे मैने और हमारे गाजीपुर से आये अनिल भैया ने इन्टर नेट स्पेशल दर्शन का टिकट लिया था, मेरा दर्शन 29 को 2 बजे था और उनका उसी दिन 7 बजे। वह तैयार होकर प्रवेश द्रार चले गये, और मुझे हिदायत दिया कि ये अपनी खोज बंद करो।उनकी बात का समर्थन मेरी परम पूज्य धर्मपत्नी ने भी किया।
मगर जो किसी की सुन ले वह अखंड नही। मैं मठ में लौट आया, रात के नौ बज चुके थे, रीवा से आई उस महिला के पति अभी तक लौट कर नहीं आये थे, मोबाइल जाने के
की आज्ञा न होने से लोकेशन भी नहीं मिल पा रही थी।
मैं एक निर्णय पर तो पहुँच गया था कि यहाँ की भीड़ और व्यवस्था में कुछ तो घालमेल है। क्या है मालूम नही।
मठ में बैठे मेरी मुलाकात बैंक कालोनी सतना मध्य प्रदेश से आये एक शुक्ला जी महाराज से हुई। मैनें अपनी जिज्ञासा और प्रश्न उनके सामने क्षमा माँगते हुए रखा।
उन्होनें मेरी बात ध्यान से सुनी और एक प्रश्न किया कि पहले अपना नाम बताईये? कहाँ से आये हैं? बताईये?'' आपके संदेह का आधार क्या है? आप यहाँ कि व्यवस्था पर क्या सोचते विस्तार से बताईये। मेरी बात सुन कई राज्यो के आये कुछ लोग पास आ गये। बाबा ने मुझे बोलने को कहा तो मैने अपना परिचय देकर कहा कि ""
बाबा मैं काशी से आता हूँ जहाँ बाबा विश्वनाथ के दर्शन पूरे सावन लाखो लोग करते है, वही हाल बैजनाथ धाम में भी है। सावन के सोमवार के दिन कम से कम तीन लाख लोग दर्शन करते है, मगर वह भीड़ भी 10 से 12 घंटे में निपट जाती है। आम दिन में भी हजारो की भीड़ आती और दो से तीन धंटो में चली जाती है। सारी खुली भीड़ रहती है। जल चढ़ाती है, माथा टेकती है, एक दूसरे फर गिरती है।
यहाँ तो दो लाइनो में लोग दर्शन करते हैं, प्रतिमा के आगे पहुँचते ही हटा दी जाती है। इस हिसाब से एक आदमी को एक सेकेन्ड से अधिक प्रतिमा के सामने नही रोका जाता । मिला कर देखा जाये तो एक सेकेन्ड में चार आदमी प्रतिमा के दर्शन करते हैं। इस प्रकार लगभग 200 लोग 1 मिनट में और लगभग 12 हजार लोग प्रतिधंटे दर्शन करते हैं। मंदिर भी रात दो बजे से रात 01 बजे यानि 23 धंटा खुला रहता है यानि लगभग 2 लाख 76 हजार लोग प्रतिदिन।
तो बाबा ये पूरे साल भीड़ कहाँ से आती है? दूसरी बात कि भारी भीड़ दिखाने की चाह में लोगो को कमरे दर कमरे बैठा कर एक क्रेज बनाते हैं, मोबाइल के न रखने से आदमी को स्थिति की जानकारी नहीं हो पाती और वह भीड़ मानकर चुप बैठा रहता है। मंदिर से बहुत दूर प्रवेश कई कमरे, कई गलियाँ कई हाल।ये कोई साजिश है।
बाबा जो शांतिपूर्वक मेरी बात सुन रहने थे अब उन्होनें मुझसे प्रश्न किया कि
अगर आपको तुरंन्त दर्शन मिल जाये या दो तीन धंटे की लाइन में ही मिल जाये और यह बात आप किसी से कहें तो उस पर अधिक प्रभाव पड़ेगा या किसी को 12 से 16 घंटे की लाइन बताने पर अधिक प्रभाव पड़ेगा यहाल के परिपेक्ष में? मैने कहाँ कि 16 धंटे कहने पर।
बाबा ने मैरे यह कहते ही कहा कि "' मिल गया आपके सवाल का जबाब आपको"" ये बड़ी बड़ी ईमारते, यह व्यवस्था, यहाँ के करोडपति लोग कोई नौकरी, किसानी या व्यवसाय से हैं?
तभी 300 के टिकट पर गये अनिल भैया दर्शन कर लौट आये , मैने समय देखा 9:30 हुए थे । मैं सोच में पड गया । भैया ने मुझको सोचता देख कहा"' अखंड तुम्हारे शक कि दिशा और दशा दोनो सही है।
बाबा ने फिर कहना शूरू किया कि यहाँ दक्षिण बहुल्यता है आबादी और भीड़ का तालमेल नही है। भारत के अन्य स्थानो से आने वालो की संख्या मिला देने पर भी नहीं।
तभी प्रसाद रूपी भोजन मठ में तैयार होने की सूचना मिली, हम सब भोजन करने चले गये।
भोजन के बाद बाबा से मैने बाबा से कहा कि बाबा मेरे शंका का पूर्ण समाधान करें । अभी ये बात हो ही रही थी कि रीवा वाली महिला के पति और देवर आ गये। दोनो काफी थके हुए थे, अपना प्रसाद पत्नी को देकर वह बाबा के पास आ गये और बोले बाबा"" गजब की अँधेरगर्दी है" सुबह 8 बजे एक कमरे में बैठा कर ताला बंद दिया, 02 बजे दूसरे रूम में लाकर बैठा दिया। जब रात को 9 बजे हम लोगो ने हल्ला किया तो दरवाजा खोला गया। तब 10 बजे तक दर्शन हुए। ये तो बिलावजह लोगो को परेशान किया जा रहा है। उनकी बात सुन कर बाबा मेरे तरफ मुस्कुरा कर देखे और बोले बेटा शंका समाधान हुआ कि नहीं? मैने कहा हो गया कुछ-कुछ। तो बाबा ने कहा आप सही हो और शेष शंका कल अंदर जा कर दूर कर लेना। जाओ सो जाओ।
अगले दिन सुबह हम जल्दी उठ कर हम लोगो ने मंदिर के साइड सीन देखे। साढ़े 11 बजे अपने मठ से जो मंदिर के बगल में था हम तैयार होकर ETC कार पार्किंग प्रवेश द्वार जो वहाँ से 2 किलोमीटर दूर था चल दिये।मैने रास्ते में बनी जालीयों में फ्री दर्शन वालो की भीड़ देखी। प्रवेश द्वार पर पहुँचने पर आशा थी कि हम लोगो को 12 बजे प्रवेश नहीं मिलेगा लेकिन महज 5 मिनट में ही प्रवेश मिल गया। अन्दर मैने देखा कि सम्पूर्ण सुविधाओं से बड़े बड़े हाल जिसमें लोहे के जालीदार गेट लगे है, बने हुए है। हम लोग एक गैलरी में खड़े थे, बाहर जाली लगे लम्बे लम्बे मंदिर की तरफ आने वाले रास्ते खाली पड़े थे। अन्दर में हाल संख्या 24 से 15 तक खाली पड़े थे, जबकि मैं बाहर सड़क और प्रवेश द्वार पर रूकी जितनी भीड़ देखा वह बड़े आराम से महज पांच कमरो में बैठ सकती थी, अन्दर दो किमी के घुमावदार रास्ते की बात ही छोड़ीये।
हम लोग एक गलियारे से दूसरे गलियारे होते हुए मंदिर में पहुँच चुके थे। 12 बजे दोपहर में प्रवेश लेकर 12:50 पर दर्शन कर चुके।
अब मेरी समझ में पूरी तरह आ चुका था कि आखिर यहाँ की भीड़ का राज क्या है?
यहाँ पर बने इन्फ्रास्ट्रक्चर के मदद से भक्तो को थकाकर, सेवा के नाम पर बंद कमरे में मुफ्त चाय नास्ता देकर जितनी भीड़ है उससे 50 गुना अधिक दिखा कर लोगो में एक भावनात्मक विचारधारा पैदा की जाती है, जो यहाँ के ट्रस्ट को न सिर्फ अधिक आमदनी देती है बल्कि यहाँ की भीड़ दिखा कर बाला जी मंदिर को सुर्खियों में रखा जाता है। नही तो जिस प्रकार यहाँ लाइन चलती हुअई दर्शन करती है हजारो की भीड़ महज कुछ घंटो में दर्शन कर अपने गतंव्य पर रवाना हो जाये और पहाडी पर बने इस त्रिमूल शहर में होटल, धर्मशाला खाली रह जायें।
हम लोग 1 घंटे म़े में दर्शन करके मठ आ चुके थे, सामने बाबा खड़े थे, मुस्कुरा कर पूछे अब भी कोई शंका बची है आपको?
मैने उनके पैर छूऐ और मुस्कुरा कर जबाब दिया '' नही"
और चल दिया वहाँ से अपनी सोच पर सत्य की मुहर लगवा कर अपनी दूसरी मंजिल ''महा लक्ष्मी कोल्लापुर के लिये। अब आप सोचें बताये।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें