मंगलवार, 3 अगस्त 2021

ईहा के ईहॉ

 आज ईहॉं के  ईहॉं,  ईहॉं से कहली कि ' ईहॉं के सुनत बानी जी, अखंड गहमरी जी के  ईहॉं अइले ठेर दिन भलइ, बोलाइ ना।
 ईहॉं के  ईहॉं जब  ईहॉं के चूड़ी टाइट कईली त  ईहॉं के छटपटा के अखंड गहमरी के फोन करूँवन कि * ईहॉं के जानत बानी, तनी जब बकलोलपुर आईब तक  ईहॉं आइव, मलकिन खोजत रहली। एक दिन मोका लगा के हम जब  ईहॉं के घरे  ईहॉं के ऊहॉं से मिले पहुँचनीनू तक  ईहॉं के रहबे ना कइलन। दरवजवा खोल के ऊहॉं निकलली। देखते हमरा के मुस्‍कियाएं लगती, कहली नू ये गहमरी जी  ईहॉं के त नइखी, आनी बइठी अवते होई हन। हम घुस के बइठ गइनी, भीतरा से पानी सानी आइल। ऊहॉं के कहली नू कि 'ये गहमरी जी ली हइी ली पानी पीही, बिस्‍कुटवा जल्‍दी खा ली ना  *ईहॉं के आ जाइब न त छोर लीहन। महीना में दू खाली बिस्‍कुल ले आवे लन, एगो छिल-छिल के अपने खईहन महीना भर में, हा एगो अपना सरहजीया खातिर रखीहन। जब उ आई त औकरों के छील छील के बिस्‍कुटवा खी हईहन। अब हम रऊवा सबके का बताई अब्बे बिस्कुटवा उठवले ही रहनी कि इहाँ के आ गइनी। हमरा के देखते न परनाम न पाती, बिस्कुट छोर लेहनी। लगली इहाँ के ऊँहा के डाँटे कि केतना मेहनत से पास कराई में चार गो बिस्कुट मिलल रहे, उहो तू इनका के दे दिहलू.। अब हम कब्बो पास कराई क बिस्कुट देखी त कब्बो   त कब्बो *इहाँ के त कब्वो * इहाँ के ऊँहा के
आपे बताई का करी...अइसन मासटर साहेब क?

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