बुधवार, 21 अक्टूबर 2020

कहॉं से आता है इतना पैसा ग्राम प्रधान पद के प्रत्‍याशीयों के पास जो आये दिन कराते हैं निर्माण कार्य और देते हैं हजारों के उपहार-अखंड गहमरी

आज या कभी कोई किसी को एक कप चाय बिना स्वार्थ के नहीं पिलाता, एक पान नहीं खिलाता, एक रूपया भीख किसी को नहीं देता, ऐसे हाल में क्यों और कुछ लोग बिना किसी पद के बिना किसी सरकारी आर्थिक श्रोत के कैसे ग्राम सभाओं में भारी भरकम काम कैसे कराया जा रहा है? इसका धन कहाँ से आ रहा है? मेरी समझ में नहीं आता।

मैं अपनी बात लिखने से पहले कुछ बाते आपको बताना चाहूँगा। मैं गहमर परिक्षेत्र छोटे स्तर पर बाल व महिला  विकास के लिए तरह तरह का आयोजन ''गहमर वेलफेयर सोसाइटी'' के तहत करता था। लालच था कि जब इस क्षेत्र में सरकार NGO  की कार्यप्रणाली देखेगी तो उसका फायदा हमें होगा। हमें आर्थिक लाभ भी मिलेगा, हमारे दिये प्रमाण-पत्र महत्व रखेगें, हमारे क्षेत्र के बच्चे भी आगे जायेगें। वर्ष 2015 में जब मेरी पत्रिका साहित्य सरोज आई तो गोपालराम  गहमरी कार्यक्रम शुरू हुआ। यहाँ भी लालच कि पत्रिका आगे जायेगी तो अर्थ मिलेगा, गोपालराम गहमरी का नाम जो सरकार से दूर है वह सरकार के निगाह में आयेगा। नये व गुमनाम साहित्यकार आगे आयेगें। साथ ही बाहर के साहित्यकार आयेगें तो हमारे बच्चे कुछ सीखेगें।  हमारे गाँव के बच्चे आगे जाकर फर्क के साथ कह सकेगें कि ''हम गाँव में रह कर भी शहर के बराबर है''। इस काम में हम आपका सहयोग लेते हैं।  
आज या कभी कोई किसी को एक कप चाय बिना स्वार्थ के नहीं पिलाता, एक पान नहीं खिलाता, एक रूपया भीख किसी को नहीं देता, ऐसे हाल में क्यों और कुछ लोग बिना किसी पद के बिना किसी सरकारी आर्थिक श्रोत के कैसे ग्राम सभाओं में भारी भरकम काम कैसे कराया जा रहा है? इसका धन कहाँ से आ रहा है? मेरी समझ में नहीं आता।
भारत के सबसे अमीर व्यक्ति भी पानी में पैसे नहीं फेंकता, वह भी तब तक किसी काम में पैसे नहीं लगाता जब तक वहाँ से कोई फायदा नहीं होता। मैं गाँव में अन्तर्राष्ट्रीय कार्यक्रम के लिए चंदा माँगता हूँ , नहीं मिलता है, क्योंकि उससे किसी को कोई रिर्टनिंग नहीं।ऐसे में आम आदमी जब अपनी गाढ़ी कमाई के हजारो रूपये जनसेवा के नाम पर बहा कर केवल सोशलमीडिया पर फोटो डाले या डलवायें तो संदेह होना लाजिमी है।
क्या इन जनसेवक को इतनी आमदनी है जो परिवार सेवा के बाद भी इतने पैसे बच जाते हैं जो जनसेवा के नाम पर हजारो रूपये खर्च कर सकें? क्या इनकी इस काल में भी इतनी कमाई है जो यह इनकम टैक्स बचाने के लिये जनसेवा में पैसे बहा रहे हैं? या इन जनसेवको को राजनैतिक पार्टीयाँ, भारत की A, B,C.  या ,D कम्पनीयाँ चुनावी प्रत्याशी के नाम पर फाईनेंस कर रही है और चुनाव  जीतने के बाद 50:50 के अनुपात में हमारे आपके विकास हेतु आये पैसे का बंदरबाट करेगी? आज ऐसे लोगो की कमी नहीं है जो गाँवो में विभिन्न तरीकों से यह काम करा रहे हैं। वह पैसा खर्च करके निर्माण कार्य करा रहे हैं मगर वह इस प्रकार के विकास कार्यो के लिए नियुक्त प्रधानों का काम न कराने का मुखर विरोध नहीं कर रहे हैं। वह काम न होनें पर जनसमूह को विश्वास में लेकर प्रधानों अधिकारियों पर न दबाब डाल रहे हैं और न उनके खिलाफ धरना-प्रदर्शन। इसका कारण भी साफ है। उनके ऐसा करने से उनको भी अपनी पोल खुलने का खतरा है। उन्हें डर रहता है कि वह विरोध करेगें तो उनका भी कच्चा चिट्ठा खुलेगा। ऐसे में अपने तथाकथित पैसे विकास करा कर जनता के सामने हीरो व समाज सेवी बनना एवं अपनी विकासपुरूष के रूप में छवि दिखाते हैं। जिससे साँप भी मर जाता है और लाठी भी नहीं टूटती और यदि चुनाव जीत गये तो आपके विकास के पैसों से राजनैतिक और A,B,C,D कम्पनी की कर्ज वापसी और अपनी तिजोरी।
यहाँ एक और गणित समझाना आपको और जरूर है, आप अपने घर के पास एक छोटी सी नाली साफ कराते हैं तो दो मजदूर दिन भर लग जाते हैं हजार रूपये का खर्च आता है।अपने घर की सफाई कराये, छोटे छोटे निर्माण कराये तो दसो हजार रूपये खर्च हो जाते हैं, एक टैक्टर मिट्टी गिराये तो 2000 खर्च हो जाते हैं। सिमेंट के काम का तो पूछीये ही मत। हम अपने घर के कामों को कराने के लिए महीनों सोचते हैं, ऐसे में यह समाजसेवी तुरंत और महीने में कई काम ऐसे कराते हैं, धन कहाँ से आता है? लाखों के सामान बाँट दिये जाते हैं बिना सरकारी सहायता के, धन कहाँ से आता है? आपको सोचना होगा।
चुनाव आते ही वोटो के सौदागरों को प्रतिदिन मुर्गा बोलत प्रतिदिन परोसा जा रहा है, यदि हम गणित के हिसाब से देखे तो महज 1 किलो मटन 400 से 500 रूपये किलो है, और एक सामान्य जाम की बोतल 600/- रूपये, तेल ,मसाला जलावन, आटा, चावल , पत्तल, गिलास इत्यादि का खर्च हम 500/- रूपया भी रखें तो कुल खर्च लगभग 1600 रूपये चार व्यक्ति का आता है यानि 400 रूपया प्रतिव्यक्ति। अब वह 400 रूपये खर्च करने वाले हम अकेले तो नहीं? फिर यह 400 रूपये का रिर्टन कैसे?क्या आप केवल पुरूष वर्ग की सेवा कर महिला वर्ग का मत ऐसे समय में लेगें जब महिला भी समाज में निकल कर अपनी पहचान बना रही हैं।
आप को एक हकीकत सुनाता हूँ।
गत जिला पंचायत चुनाव में मैनें एक दिन अपनी पत्नी ममता सिंह से कहा कि भाजपा से मनीष सिंह बीटू उम्मीदवार है युवा हैं, कर्मठ है उनको वोट दिया जाये , रोज मिलेगें, काम आयेगें। मेरी पत्नी ने तत्काल कहा मेरे स्कूल  में लक्की मास्टर के भाई झुन्नु सिंह भी जिला पंचायत के उम्मीदवार हैं वह भी युवा हैं, कर्मठ है, रोज मिलेगें। चलीये उनको सपोर्ट किया जाये। मैं चुप हो गया। जब मैं अपनी पत्नी का वोट नहीं फिक्स कर पाया तो मैं कैसे कहूँ कि मैं दूसरे का मत किसी को दिला दूगाँ।
आये दिन सोशलमीडिया पर लम्बे लम्बे निर्माण कार्य के फोटो, लम्बी चौड़ी पार्टीयाँ यह एक उसी प्रकार का व्यापार है जिस प्रकार 1 रूपये का चिप्स आप के पास दस रूपये का पहुँचता है। 10 रूपये के चिप्स के पैकेट में 1 रूपये के मुल्य के बराबर चिप्स  आपको मिलता है  शेष आपके जेब का 9 रूपये प्रजेंटेशन के रूप में विज्ञापन, पैंकिंग और डिस्ट्रीब्यूटर से लेकर दुकानदार  के फायदे के रूप में जाता है। पैसा आपका नाम कम्पनी का। उसी तरह आपके टैक्स का विकास के रूप में आया पैसा आपको एक रूपया मिलता है शेष तथाकथित समाजसेवी और अधिकारियों को , आप का नाम भी नहीं होता कोई आपसै सीधे मुँह बात भी नहीं करता।
अब भी वक्त है, संभल जाये, अपना पैसा अपने विकास में पूरी तरह लगवायें। ए.बी.सी.डी.कम्पनीयों, तथाकथित चुनावी समाजसेवीयों और एक टाइम भोजन कराने वालो को किनारा करें।
एक स्वच्छ और स्वस्थ ग्राम पंचायत की स्थापना करें।


अखंड गहमरी।



 

 

 

बुधवार, 7 अक्टूबर 2020

अखंड गहमरी र्स्‍माट नहीं गहमर के कोतवाल साहेब,उसके कंधे पर नहीं है सितारें- अखंड गहमरी

 स्मार्ट तो वही होता है जिसके पास पद, पैसा एवं प्रतिष्ठा होती है। अपने मौलिक अधिकारों से वंचित उसे पाने के लिए भीड़ में पीछे खड़ा व्यक्ति का स्मार्ट कैसे बन सकता है   ?   मौलिक अधिकारों विद्युत व्‍यवस्‍था चरमा जाने पर जीवन की जो गति होती है इससे आप भली-भाँति परिचित होगें  । अपनी व्‍यवस्‍था को सुधारने में हो रही कार्यवाही को भीड़ में खड़ा होकर वीडियों में कैद करने वाला एक आदमी व्‍यक्ति स्‍मार्ट कैसे होगा   ? कैसे बन सकता है  ? मगर भीड़ में खड़ा हर व्‍यक्ति शांत नहीं रह पाता, वह केवल वक्‍त की नज़ाकत को देखते हुए किये गये सवालो का जबाब नहीं दे पाता है।अखंड गहमरी नहीं, ''स्‍मार्ट होगें गहमर के कोतवाल साहब'' क्‍योंकि उनके कंँधे पर लगे तीन सितारे और साथ में है दर्जनो सहयोगी।

गहमर कोतवाली में आने के पूर्व गहमर के नये कोतवाल को रेवतीपुर थाना, करंडा, जमानियॉं, दिलदारनगर व गाजीपुर सदर जैसी बड़ी कोतवालीयों के संचालन का अनुभव है।  गहमर कोतवाली के यदि हम सिर्फ राजपूत थानाध्‍यक्षों की बात करे तो गहमर कोतवाली में जो राजपूतों का प्रमुख गाँव है कोतवाल के रूप में आने वाले राजीव सिंह के बाद दिलीप सिंह दूसरे राजपूत कोतवाल हैं। राजपूत थानाध्यक्षों की सूची लंबी नहीं है लेकिन उनके कार्यकाल में विवाद लम्बें रहे हैं।

बचनप की स्‍मृतियों में यदि जाये तो वर्ष 1992 में गहमर थानाध्‍यक्ष हो कर आये रक्षपाल सिंह जो उस समय पूरे गहमर थाने के भवनो का न सिर्फ पूरी तरह मरम्‍मत कराये, मंदिर का पुन:निर्माण कराये, पूरे थाने के ध्‍वस्‍त वायरिंग को बदले, बल्कि पूरे परिसर की प्रतिदिन साफ सफाई पर जोर देते हुए प्रत्‍येक सिपाही के मनोबल को बढ़ाने उनकी समस्‍याओं को अपना समझने का काम करते हुए गहमर थाने को एक अलग पहचान दिया था।

वर्ष 2005 में पंचायती चुनाव के समय गहमर में 01 अगस्त 2005 को हुए मनोज हत्याकांड के बाद हुए विवाद में थानाध्यक्ष पी.पी.सिंह की नेतृत्व क्षमता में कमी और भीड़ की मनोदशा न समझ पाने के कारण गहमर थाने पर बवाल हुआ। पुलिस पब्लिक के साथ गुरिल्ला युद्ध हुआ। कई आम जन घायल हुए, गोलीयॉं चली, पत्‍थरबाजी हुई। कई निदोर्ष घायल हुए, कई फँसे कई फँसाये गये। पूरी तरह थानाध्‍यक्ष के गलती का ठिकरा आम जनता पर फूटा।

 गहमर में आये राजपूत थानाध्यक्ष कौड़ीराम निवासी अभय सिंह  मगरखाई के पास हुए गैंगमैन की अयोग्यता से ट्रेन और ट्रैक्टर की टक्कर में कमली नामक महिला समेत दो कि मौत के बाद आक्रोशित भीड़ जो ट्रेन रोकने और बवाल करने पर अतारू थी, जिले से मदद आने तक न सिर्फ अपने एक हमराही राधेश्‍याम राय और जीप के ड्राइवर को लेकर भीड़ को अपनी बातों में उलक्षा कर रखे रहे, बल्कि राजगीर से दिल्‍ली जा रही श्रमजीवी एक्‍सप्रेक्‍स जो बाराकंला हाल्‍ट पर खड़ी थी उसके साथ अनहोनी होने से बचाये।  और यही नहीं खुद उस भीड़ का मुखिया बन कर रेलवे से त्‍वरित मदद पीडि़त परिवार को दिलाये। जो उनकी कार्यक्षमता का एक बेहतरीन उदाहरण साबित हुआ।

गहमर आने वाले दूसरे अभय सिंह कद भले छोटा था मगर दिमाग और नेतृत्‍व क्षमता कद से बहुत अधिक तेज, गहमर में विवादित नौका की भूमि पर कब्‍जे को लेकर जब गहमर में माले का आन्‍दोलन गहमर थाने पर हुआ और माले वाले दिन गहमर थाने पर भाषणबाजी करते हुए राजपूतो को उल्‍टा सीधा बोलते हुए खेत जबदस्‍ती खेत काटने पहुँच गये, खेतो पर जो राजपूतो ने उनके साथ किये माले वालो की जान पर बन आई। अभय सिंह अपने सूझ-बूझ से राजपूतो को समझा कर गंम्‍भीर मामले को पूरी तरह निपटा दिया, उनकी ही देन रही कि फिर आज तक माले की हिम्‍मत नहीं पड़ी गहमर थाने पर बवाल करने की। उनकी यह उपलब्‍धी आज भी याद की जाती है।

गहमर आने वाले तीसरे वीपिन सिंह का कार्यकला लम्‍बा नहीं रहा। तेज तर्राक विपीन सिंह अपने अल्‍प कार्यकाल में गहमर क्षेत्र के अपराधीयों में एक दशहत बन गये। 2012 विधानसभा चुनाव में गाजीपुर नामांकन कार्यालय में डियूटी लगी और वहॉं भीड़ के अंदर चले जाने के कारण उन्‍हें निलंबित कर दिया गया। निलंबन के बाद जब वह मॉं कामाख्‍या के दरवार में आये तो उनके साथ आम आदमी तो गया मगर गहमर थाने का एक सिपाही नहीं गया, दर्शन के पूर्व उनके उतारे बेल्‍ट को पकड़ने वाला कोई सिपाही नहीं था। यह घटना मैं भूल नहीं पाया, क्‍योंकि पद की पूजा देखा।

 गहमर आये एक अन्‍य राजपूत थानाध्‍यक्ष के0पी0सिंह के बारे में मुझे बहुत पता नहीं, क्‍योंकि उस वक्‍त के मैं सक्रिय समाज से दूर था न कोई मुलाकता याद है न उनका चेहरा। और हिमेंद्र सिंह चूकी मेरी पहली पुस्तक के विज्ञापन दाता थे इस लिए मैं उनके विषय में इतना ही कहूँगा कि सही गलत की बारीक पहचान  और त्वरित निर्णय ही खूबी रही।

गहमर थानाध्‍यक्ष होकर आये और गहमर के कोतवाली हो जाने के कारण प्रथम कोतवाल होने का गौरव प्राप्‍त किये  राजीव सिंह  रक्षपाल सिंह के बाद ऐसे कोतवाल रहे जो अपराध के साथ-साथ गहमर थाने की व्‍यवस्‍था और अपने मातहदो के मनोबल पर बढ़ाने पर ध्‍यान दिया। गहमर कोतवाली के आफिस के सामने लगा नया खड़जा एवं ताडीघाट-बारा मार्ग की तरफ लगा हुआ गेट राजीव सिंह की देन है। उनके कार्यकाल में मुझे एक दो बार गहमर थाने जो कोतवाली में बदल चुकी थी जाने का सौभाग्‍य प्राप्‍त हुआ।  राजीव सिंह ने न सिर्फ कोतवाली में निर्माण कराया बल्कि अपने मातहदो के बीच होली जैसे त्‍यौहार मनाकर कोतवाल और सिपाही के बीच की दूरी खत्‍म किया और उनका हौसला अफजाई किया।  2020 फरवरी में राजीव सिंह के कार्यकाल में एक यादव की मौत को राजनैतिक तूल देकर बाहरी लोगो द्वारा गहमर के माहौल को खराब करने की जो कोशिश की गई जिसे राजीव सिंह के द्वारा न सिर्फ कड़ाई से रोका गया बल्कि कई राजो से पर्दा भी उठाया गया।  गहमर के सायर में हुए सैनिक हत्‍याकांड में आरोपीयों को 24 घंटे के अन्‍दर जेल भेजा।  राजनैतिक कारणो से उन्‍हें हटाया गया। मगर वह भी अपनी एक छवि छोड़ने में कामयाब रहे। 

उनके जगह नये कोतवाल विमल मिश्रा ने गहमर की कमान संभाली । उनकी लाकडाउन में की गई जनसेवा अनुकर्णिय रही । व्‍यवस्‍थाएं सभी ठीक थी मगर वह गहमर भाजपा जनों के आन्‍तरिक युद्व और स्‍वाभिमान की लड़ाई का शिकार बने। वर्तमान कोतवाल गहमर कोतवाली के सबसे अपराधिक मौसम में गहमर की कमान संभाले हैं, अब देखना है कि किस कदर यहॉं के अपराधो पर अंकुश लगा पाते हैं   ?

यदि अपराधो की बात करें तो धान की फसल तैयार होने के साथ गहमर के खेतो पर बिहार के अपराधीयों द्वारा खलि‍हानों  को लूटने की, तैयार फसलों को जलाने की, खलि‍हानो में साये किसानो पर हमला करने की घटना आम होती है। जिससे किसान पूरी तरह परेशान रहते हैं। करहियॉं, भतौरा, गहमर में कई किसानो की हत्‍या तक हो चुकी है। दर्जनो किसान लूटे जा चुके है। हत्‍या में यदि बात करें तो सुनील हत्‍याकाड़ गहमर, पिता-पुत्र हत्‍याकाड़ भतौरा, बागीचे में सोये वृद्व की हत्‍या करहियॉं से कुछ उदाहरण है। ऐसे में नये कोतवाल को इस समय इन घटनाें को रोकने में काफी मेहनत करनी होगी। वह अपनी मेहनत में किस तहर स्‍मार्टपन लाकर घटनओं को रोक एक स्‍वच्‍छ अपराधमुक्‍त वातावरण दे पाते हैं यह तो वक्‍त बतायेगा।

बिहार में भी चुनाव और त्‍यौहारों के कारण बड़ी मात्रा में शराब की पहले की अपेक्षा बहुत तेजी से होगी। गहमर कोतवाली और उनसे चौकीयों के सिपाहीयों की मदद से मोटरसाइकिलो पर लाद कर ,बारा गॉंव होत हुए पैदल कर्मनाशा नदी पार करके ,मगरखाई सायर देवल के रास्‍ते के रास्‍ते कर्मनाशा पार करके अन्‍य कई रास्‍तों से भारी मात्रा में बिहार शराब की तस्‍कारी होती हैं। बिहार जाने वाले अवैध शराब तस्‍कारी का प्रमुख गढ़ बन चुका है गहमर । गहमर कोतवाली क्षेत्र से प्रतिदिन लाखो रूपये की शराब पुलिस विभाग के सहयोग से, स्‍थानीय लोगो के सहयोग से पैदल व मोटसाइकिलो के द्वारा बिहार में जाती है। ऐसे में बिहार जाने वाली शराब को नये कोतवाल कहॉं   त   ? कैसे रोक कर अपने आपको एक र्स्‍माट कोतवाल साबित करते हैं यह आने वाले वक्‍त में देखना है। 

गंगा नदी से बालू निकालना यह पूरी तरह अपराध है। ऐसे में जगह जगह ट्रैक्‍टरों पर दिखने वाले सफेद बालू साफ ईशारा करते है कि क्षेत्र में अवैध खनन हावी है। आप आये दिन खास तौर से तरकारी कामों में सफेद बालू का प्रयाेग देख सकते हैं जबकि सफेद बालू का प्रयोग निर्माण में सही नहीं माना जाता है। ऐसे में नये कोतवाल इन अवैध खनन को रोक कर कैसे अपने आपको एक र्स्‍माट राजपूत कोतवाल साबित करते हैं यह भविष्‍य के गर्त में है। 

गहमर कोतवाली क्षेत्र की देवल चौकी एक तीर्थ स्‍थल के रूप में पुलिस एवं अपराध के पितामहों के बीच विख्‍यात है। हर कोई देवल पुलिस चौकी पर माथा टेक कर लक्ष्‍मी देवी को प्राप्‍त करना चाहता है। देवल से होने वाले प्रमुख अपराधों में ओवरलोड वाहन, शराबो की तस्‍करी, कृर्षि अपराध इत्‍यादि प्रमुख हैं, ऐसे में गहमर कोतवाल अपने अन्‍तगर्त आने वाले इस चौकी पर कितना ध्‍यान दे पाते हैं और यहॉं के माध्‍यम से होने वाले अपराधो में कितनी कमी कर पाते हैं यह तो उनके स्‍मार्ट छवि पर ही आधिरत होगा, हम जनता तो केवल इन्‍तजार ही करेगें। 

गाजीपुर में गंगा पर बने पुल के शुरू होने के बाद बिहार, बंगाल सहित देश के पूर्वोतर से आने वाले ट्रको का गाजीपुर बारा मार्ग प्रमुख केन्‍द्र फिर बनने जा रहा है। बक्‍सर में गंगा नदी पर बना पुल खराब होने एवं नौबतपुर बार्डर से ओवरलोड वाहन पर रोक के कारण नियमों के विपरीत भार लेकर ट्रक इसी गहमर मार्ग को उत्‍तर प्रदेश की सीमा में प्रवेश करने के लिए चुनते हैं, वह चाहे देवल सीमा से प्रवेश करें या बारा सीमा से दोनो तरह से ओवरलोड वाहन नियमों के विपरीत ही गुजरते हैं। ऐेसे में गहमर कोतवाल पहले से चल रही पुर्जी प्रथा को खत्‍म कर ओवरलोड वाहनो पर कितना प्रतिबंध लगाते हैं ? यह तो उनके स्‍मार्टनेस कार्य पद्वित से ही पता चलेगा। वैसे अखंड गहमरी को उम्‍मीद है कि उनकी कार्यप्रणाली से अब ताड़ीघाट बारा मार्ग से ओवर लोड वाहन नहीं गुजरेगें। जिससे गाजीपुर में गंगा पर बना पुल कुछ सुरक्षित होगा।

अक्‍टूबर महीने के साथ त्‍यौहारों का मौसम आ रहा है। त्‍यौहारों के मौसम के साथ-साथ जाड़े का मौसम शुरू हो रहा है। यदि पूर्व की चोरी की घटनाओं पर नज़र डाले तो देखा जा सकता है कि इस क्षेत्र में अक्‍टूबर नवम्‍बर और दिसम्‍बर के मध्‍य तक ही अधिकाशं चौरी की घटनाएं होती है। अभी हाल में गहमर में एक घर में हुई चोरी में बंदुक सहित कई सामान गया है जिसका पर्दापाश नहीं हुआ।  अब कोतवाल महोदय इन चोरीयों का पर्दापाश कैसे करते हैं? आने वाले समय में चोरीयॉं कैसे रोकते है? यह तो आने वाला वक्‍त ही बतायेगा, हम और आप क्‍या बतायें, क्‍योंकि हम और आप स्‍मार्ट तो हैं नहीं।

उत्‍तर प्रदेश में पंचायत चुनाव आ रहे हैं। गहमर का इतिहास गवाह है कि यहॉं चुनाव में मतदान के दिन तो कुछ नहीं होता परन्‍तु चुनाव के पूर्व राजनीति हावी रहती हैं। ग्राम प्रधान चुनाव में यहॉं के छुटभैये नेता भी शेर हो जाते है और छोटी से छोटी घटना को बड़ा बना कर जो प्रस्‍तुतिकरण करते हैं उसका खामियाजा आम जनता भुगतती है। वर्ष 2005 में मनोज हत्‍याकाड़, 2010 में विवाद एवं 2017 के विधानसभा चुनाव के पूर्व हुए हिंसा इनका एक उदाहरण है ऐसे में जब पंचायती चुनाव नजदीक हैं, हर कोई बरसाती मेढ़क की तरह निकल कर ग्राम सभा का कर्मठ, ईमानदार, समाजसेवी बनकर दलितो व पिछडी का नेता बन अपनी राजनैतिक रोटी सेकने के लिए आग जला रहा है। नये कोतवाल कैसे इस समस्‍या से निपटेगें   ? यह उनकी कार्यशौली पर ही निर्भर करेगा।

 गहमर आये नये कोतवाल इस मौसम में अपराधो पर, शराब तस्‍करी पर, बालू खनन पर, ओवरलोड वाहन पर कैसे अंकुश लगाते हैं ? आपने आपको एक तेज-तरार्क स्‍मार्ट कोतवाल कैसे साबित करते है? आम जनमानस यह कह सके कि एक स्‍मार्ट कोतवाल गहमर कोतवाली को प्राप्‍त हुआ जो गहमर थाने के 114 सालों के इतिहास में पहली बार हुआ है जो एक स्‍मार्ट कोतवाल आया है। अब जब उनके जनपद में 141 दिन शेष हैं। अखंड गहमरी यही प्रार्थना करेगा कि उनके जाने के बाद उनके कारनामें गहमर कोतवाली के इतिहास में लिखना इतिहासकारों व अखंड गहमरी की मजबूरी हो जाये।

*अखंड गहमरी* गहमर गाजीपुर* ।