पूरे बुद्धिजीवी समाज से आज यह अखंड गहमरी एक सवाल का जबाब चहता है एक
सच्ची घटना के आधार पर आशा है गुरूजन भी अपनी बात जरूर लिखेगें।
मैं
9 जुलाई 2017 यानी रविवार को बनारस से गरीब रथ एक्सप्रेक्स से दिल्ली आ
रहा था। गरीब रथ को उसके डिपार्चर टाइम 7:30 पर प्लेटफार्म पर लाया
गया..और ट्रेन बिलावजह 45 मिनट देर से खुली, अफरा तफरी मची सो अलग।
मैं भी ट्रेन में सवार हुआ, खाना बारिस के वजह से ले नहीं पाया था सो आराम से नमकीन और ठंडा पीने लगा.. तभी बर्थ नम्बर तीन पर बैठी एक भद्र महिला के 5 साल के बच्चे ने कुछ शरारत शुरू किया। महिला ने उसे समझाया और बहलाया जब वह नहीं माना तो महिला ने उसे एक झापड़ रसीद करते हुए कहा कि'' गाँव से आ रहे हो न , पूरी तरह बदमाश हो गये , दिल्ली पहँचने की देर है , पहले की तरह एक दम सीधे हो जाओगें ''। यह कह कर वह महिला फर्क से अन्य सह यात्रीयों को देखने लगी। लोगो ने उसकी हाँ में हाँ मिलाया। शायद एक मैं ही था, जिसके कानो में उस महिला कहे शब्द पिघले शीशे के सामान उतर रहे। मैं आवाक था।
तभी टीटी महोदय ने कि मेरे निवेदन पर मेरी सीट बदल दी.क्योकि उपर की सीट पर जाने में परेशानी हो रही थी।
मैं अभी लेटा ही था कि दिन भर के कार्यो का लेखा जोखा जानने के लिए रोज की भाँति कान्ति माँ का मैसेज आ गया, मैं बात करते करते सो गया। सुबह 9 बजे नींद खुली तो हापुड़ के आस पास ट्रेन थी, जो मेकप कर राईट टाइम हो गई थी। 10:30 दिल्ली पहुँचती, मैं बैठ गया, सामने देखा दो बच्चे जो भाई बहन थे बैठे खेल भी रहे थे, शरारत भी कर रहे थे और बीच -बीच अपनी माँ से और बिस्कुट देने की जिद कर रहे थे। दोनो बच्चो की उम्र 3 से 5 साल के बीच रही होगी।
उसकी माँ उन्हे बार बार समझा रही थी, वह नहीं माने तो उसने अपनी लड़की को अपने से दूर ढकेलते हुए कहा " 20 दिन गाँव में छुट्टियाँ मनाने क्या रह लिया एकदम बिगड़ गई हो, आज ही घर (दिल्ली) पहुँचते सब अक्ल ठिकाने आ जायेगी"। बच्ची को रोता छोड़ दिया।
मैं भी ट्रेन में सवार हुआ, खाना बारिस के वजह से ले नहीं पाया था सो आराम से नमकीन और ठंडा पीने लगा.. तभी बर्थ नम्बर तीन पर बैठी एक भद्र महिला के 5 साल के बच्चे ने कुछ शरारत शुरू किया। महिला ने उसे समझाया और बहलाया जब वह नहीं माना तो महिला ने उसे एक झापड़ रसीद करते हुए कहा कि'' गाँव से आ रहे हो न , पूरी तरह बदमाश हो गये , दिल्ली पहँचने की देर है , पहले की तरह एक दम सीधे हो जाओगें ''। यह कह कर वह महिला फर्क से अन्य सह यात्रीयों को देखने लगी। लोगो ने उसकी हाँ में हाँ मिलाया। शायद एक मैं ही था, जिसके कानो में उस महिला कहे शब्द पिघले शीशे के सामान उतर रहे। मैं आवाक था।
तभी टीटी महोदय ने कि मेरे निवेदन पर मेरी सीट बदल दी.क्योकि उपर की सीट पर जाने में परेशानी हो रही थी।
मैं अभी लेटा ही था कि दिन भर के कार्यो का लेखा जोखा जानने के लिए रोज की भाँति कान्ति माँ का मैसेज आ गया, मैं बात करते करते सो गया। सुबह 9 बजे नींद खुली तो हापुड़ के आस पास ट्रेन थी, जो मेकप कर राईट टाइम हो गई थी। 10:30 दिल्ली पहुँचती, मैं बैठ गया, सामने देखा दो बच्चे जो भाई बहन थे बैठे खेल भी रहे थे, शरारत भी कर रहे थे और बीच -बीच अपनी माँ से और बिस्कुट देने की जिद कर रहे थे। दोनो बच्चो की उम्र 3 से 5 साल के बीच रही होगी।
उसकी माँ उन्हे बार बार समझा रही थी, वह नहीं माने तो उसने अपनी लड़की को अपने से दूर ढकेलते हुए कहा " 20 दिन गाँव में छुट्टियाँ मनाने क्या रह लिया एकदम बिगड़ गई हो, आज ही घर (दिल्ली) पहुँचते सब अक्ल ठिकाने आ जायेगी"। बच्ची को रोता छोड़ दिया।
आप यकीन करे महज 12 घंटे में 2 शहरी महिलाओं द्वार गाँव में रहने पर तंज
कसना , मुझे सोचने पर विवश कर गया, मैं सोचने लगा कि आज गाँव की माटी को
माटी के लोग ही बदनाम करने में फर्क महसूस कर रहे हैं।
अपनी कमीयों का ठीकरा गाँव पर फोड़ रहे है। दादा-दादी के स्नेह को बच्चे को बिगाड़ने का काम कह कर कोश रहे हैं। मैं यह सोचने लगा कि तब आज के शहरी माता- पिता अपने बच्चो को कैसी अच्छी परवरिश और संस्कार दे पा रहे हैं जो बच्चे 20 दिन अपनो के साथ रहने पर भी केवल गाँव जा कर भूल जा रहे हैं? अगर ऐसा है तो वह माँ- बाप किस आधार पर सोचते हैं कि बच्चा बड़ा हो कर समाज में आयेग तो वह संस्कारी बन कर रहेगा।
आज तथाकथित हाई सोसाइटी किस हक से गाँव की उस माटी को बदनाम करते हुए, अपने बच्चो में गाँवो के प्रति हीनता और नफरत का भाव भर रही है? जिसकी वह खुद पैदाईश है।
अखंड गहमरी, गहमर गाजीपुर।।
अपनी कमीयों का ठीकरा गाँव पर फोड़ रहे है। दादा-दादी के स्नेह को बच्चे को बिगाड़ने का काम कह कर कोश रहे हैं। मैं यह सोचने लगा कि तब आज के शहरी माता- पिता अपने बच्चो को कैसी अच्छी परवरिश और संस्कार दे पा रहे हैं जो बच्चे 20 दिन अपनो के साथ रहने पर भी केवल गाँव जा कर भूल जा रहे हैं? अगर ऐसा है तो वह माँ- बाप किस आधार पर सोचते हैं कि बच्चा बड़ा हो कर समाज में आयेग तो वह संस्कारी बन कर रहेगा।
आज तथाकथित हाई सोसाइटी किस हक से गाँव की उस माटी को बदनाम करते हुए, अपने बच्चो में गाँवो के प्रति हीनता और नफरत का भाव भर रही है? जिसकी वह खुद पैदाईश है।
अखंड गहमरी, गहमर गाजीपुर।।
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