आज बैठे बिठाये लतीफों की तरफ ध्यान चला गया। लतीफा,जोक,चुटकुला और न जाने
कितने और नाम होगें और इसकी परिभाषा क्या होगी यह तो कोई साहित्यकार या
अध्यापक ही बता सकता है, मगर मैं इतना जरूर बता सकता हूँ कि आज जो इसका रूप
मेरे समाज में उभर कर आया है ये मेरा किया-धरा है।
मैने लतीफों को केवल एक उद्वेश्य पूर्ति का साधन बना कर रख दिया है। सॉंप भी मर जाये लाठी भी न टूटे। अब मैं लतीफे कभी हसाँने के नहीं लिखता, गुददुदाने के लिए नहीं लिखता, मैं तो लतीफो के शक्ल में प्रहार करता हूँ हिन्दू धर्म पर, सम्मानित रिश्तों पर, भारत की सभ्यता संस्कृत पर, पति-पत्नी, गुरू- श्ािष्य के रिश्तो पर। करूँ भी तो क्यों नहीं करूँ, लोग ताली बजाते है, एक दूसरे को भेजते हैं, भले नाम मेरा नहीं आता मगर मेरे विचार तो सब तक पहुँच जाते ही है, तो मैं सफल हो जाता हूँ अपने मकसद में। किसी को बुरा भी नहीं लगता और मेरी बात भारत ही नहीं वरण पूरे विश्व में फैल गई।
हाँ लतीफे मैं मंचो से भी पढ़ता हूँ, कविता के नाम पर परोसता हूँ। परोसें भी क्यों नही? जब उद्देश्य पूर्ति के लिए लिखी गई दो कौड़ी के लतीफे जब मंच पर ताली, माला और दाम दिलातें हैं तो मैं लाखो की कविता क्यो बर्बाद करूँ? मैं पागल थोडे हूँ कि जिससे आयोजक, संयोजक, साक्षात देवता स्वरूप श्रोता खुश हो रहे हो उसे बंद कर अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारूँ।
ऐसा नहीं है कि सभी को मेरी यह करतूत अच्छी लगती है, कुछ लोग है जिनको नागवार लगती है, मगर बेचारे करे तो क्या? किसका गला पकड़े? भेजने वाले का तो पता है मगर लिखने वाले का तो पता नही? पता चल भी गया तो जब मेरे गले में फूलो का हार हैं तो वह चाह कर भी जूतो का हार मेरे गले म़े नहीं डाल सकते। थक- हार कर विरोध लिखेगें, तो लिखो न भाई विरोध किसने मना किया है। मेरे जैसे लिखने और सोचने वाले तो लाखो हैं और तुम मुट्ठी भर लोग क्या कर लोगे, कितने साथ देगे़ं तुम्हारा? अब ये मत कोई समझे कि हाथी को चीटी सूढ़ में घुस कर मार सकती है। न अब वो चीटी है न अब वो हाथी। लाज-शर्म और संस्कारो की दुहाई देकर भी तुम मुझको मना नही सकते क्योकि मैं लाज-शर्म, संस्कार सब शर्बत बना कर पी चुका हूँ। रिश्तों की अहमियत, मान-मर्यादा सब चुल्हे में भस्म कर चुका हूँ। जानते हैं क्यों?
क्योकि मेरा उद्देश्य ही है, सस्ती लोकप्रियता, हिन्दू धर्म को नीचा दिखा कर महान सेकुलर बनना। मेरा उद्देश्य है गुरु-शिष्य, पति-पत्नी के संबंधो और मर्यादा को तार-तार करना।
तो बताओ क्या होगा मेरा..कुछ नही न...तो बजाओ ताली मेरे नाम पर। महान लतीफेबाज अखंड गहमरी के नाम पर।।
जय अखंड गहमरी, जय लतीफा।
अखंड गहमरी।।
मैने लतीफों को केवल एक उद्वेश्य पूर्ति का साधन बना कर रख दिया है। सॉंप भी मर जाये लाठी भी न टूटे। अब मैं लतीफे कभी हसाँने के नहीं लिखता, गुददुदाने के लिए नहीं लिखता, मैं तो लतीफो के शक्ल में प्रहार करता हूँ हिन्दू धर्म पर, सम्मानित रिश्तों पर, भारत की सभ्यता संस्कृत पर, पति-पत्नी, गुरू- श्ािष्य के रिश्तो पर। करूँ भी तो क्यों नहीं करूँ, लोग ताली बजाते है, एक दूसरे को भेजते हैं, भले नाम मेरा नहीं आता मगर मेरे विचार तो सब तक पहुँच जाते ही है, तो मैं सफल हो जाता हूँ अपने मकसद में। किसी को बुरा भी नहीं लगता और मेरी बात भारत ही नहीं वरण पूरे विश्व में फैल गई।
हाँ लतीफे मैं मंचो से भी पढ़ता हूँ, कविता के नाम पर परोसता हूँ। परोसें भी क्यों नही? जब उद्देश्य पूर्ति के लिए लिखी गई दो कौड़ी के लतीफे जब मंच पर ताली, माला और दाम दिलातें हैं तो मैं लाखो की कविता क्यो बर्बाद करूँ? मैं पागल थोडे हूँ कि जिससे आयोजक, संयोजक, साक्षात देवता स्वरूप श्रोता खुश हो रहे हो उसे बंद कर अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारूँ।
ऐसा नहीं है कि सभी को मेरी यह करतूत अच्छी लगती है, कुछ लोग है जिनको नागवार लगती है, मगर बेचारे करे तो क्या? किसका गला पकड़े? भेजने वाले का तो पता है मगर लिखने वाले का तो पता नही? पता चल भी गया तो जब मेरे गले में फूलो का हार हैं तो वह चाह कर भी जूतो का हार मेरे गले म़े नहीं डाल सकते। थक- हार कर विरोध लिखेगें, तो लिखो न भाई विरोध किसने मना किया है। मेरे जैसे लिखने और सोचने वाले तो लाखो हैं और तुम मुट्ठी भर लोग क्या कर लोगे, कितने साथ देगे़ं तुम्हारा? अब ये मत कोई समझे कि हाथी को चीटी सूढ़ में घुस कर मार सकती है। न अब वो चीटी है न अब वो हाथी। लाज-शर्म और संस्कारो की दुहाई देकर भी तुम मुझको मना नही सकते क्योकि मैं लाज-शर्म, संस्कार सब शर्बत बना कर पी चुका हूँ। रिश्तों की अहमियत, मान-मर्यादा सब चुल्हे में भस्म कर चुका हूँ। जानते हैं क्यों?
क्योकि मेरा उद्देश्य ही है, सस्ती लोकप्रियता, हिन्दू धर्म को नीचा दिखा कर महान सेकुलर बनना। मेरा उद्देश्य है गुरु-शिष्य, पति-पत्नी के संबंधो और मर्यादा को तार-तार करना।
तो बताओ क्या होगा मेरा..कुछ नही न...तो बजाओ ताली मेरे नाम पर। महान लतीफेबाज अखंड गहमरी के नाम पर।।
जय अखंड गहमरी, जय लतीफा।
अखंड गहमरी।।