शनिवार, 18 सितंबर 2021

मेरा गहमर इंटर कालेज

*गहमर इन्टर कालेज विवादाउत्सव प्रथम सोपान*

उत्तर प्रदेश के विधान सभा 2021 का अलीगढ़ से बिगुल बजते ही जमानियाँ विधान सभा  में भी तैयारीयाँ गहमर इंटर कालेज से शुरू हो चुकी है। गहमर इंटर कालेज की तथाकथित रक्षा के लिए भारतीय जनता पार्टी के स्थानीय पदाधिकारी एवं कार्यकर्ता आगे आ चुके हैं। गहमर इंटर की पठन-पाठन, बाल विकास, बाल उत्थान, सांस्कृतिक कार्यक्रम, खेल-कूद जैसे व्यवस्था से इतर विद्या प्रचारिणी सभा, जमीन, प्रबंधन को लेकर धरोहर की रक्षा के नाम पर न केवल बिगुल फूँका जा रहा है, बल्कि एक प्रबंध समिति के समकक्ष दूसरी प्रबंध समिति बनाई जा रही है। अब इस प्रकार के कार्य से बच्चों का भविष्य कितना उज्जवल होगा यह तो आप सुधिपाठक ही बतायेगें।
गहमर इंटर कालेज के विवादों में कुछ बाते बहुत मजेदार हैं, जो आपकी हसी को रोक नहीं पायेगीं जैसे
*(01)* धरने के दिन मैने लाइव वीडियो पर शिवानंद चाचा को कहते सुना कि गहमर इंटर कालेज का विवाद 1996 से चल रहा है और अब आप लोगों का साथ मिला तो यह मुकाम तक पहुँचा।  अब यह बात हज़म करने के लिए नीरू की दुकान से हाजमोला लाना होगा। वर्ष 1996 से 2013 तक स्व.रणजीत सिंह प्रवंधक थे, और उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता और प्रदेश सरकार में कबीनामंत्री ओमप्रकाश सिंह उनके विरोधी और गाँव जानता है कि  शिवांनद चाचा के स्वर्गवासी भाई श्री सच्चिदानंद स़िह उनके खास थे,उसके वाबजूद  उस समय गहमर इंटर कालेज की जो लड़ाई वह लड़ रहे थे वह 2005 तक जीत नहीं, क्यों? माननीय मंत्री जी भ्रष्टाचार को स्वीकार नहीं किये या शिवांनद चाचा और स्व. रणजीत सिंह जी से कोई गुप्त समझौता था?
(02)* इस गहमर इंटर कालेज आन्दोलन के एक प्रमुख सुत्रधार पूर्व जिला पंचायत सदस्य मनीष सिंह बीटू खुद 2015 से न सिर्फ जिला पंचायत सदस्य रहे बल्कि तत्कालीन रेल राज्यमंत्री के अति निकटतम लोगों में एक रहे। गहमर इंटर कालेज की समस्या न उनको पद पर रहते दिखाई दी और न उसके लिए उस समय वो कोई धरना आंदोलन किये, बात हाजमोला खाने पर हजम नहीं हुई, चलो मान लिये जब जागो तभी सबेरा, लेकिन चुनाव के ठीक पहले जगने का कारण कई विधान सभा प्रवेश टिकट तो नहीं? चलीये है तो ठीक है, युवा नेतृत्व होगा।
*(03)* सुना है कि नई पैरलर कमेटी में प्रबंधक अजय सिंह हैं, पुरानी गहमर की कहावत है, 
''दल गइलन, दीलिप गइलन त पहलवान भइलन रंगई।
अ कुल नेता मर गइलन त नेता भइलन अजई।''
जिस स्व. विश्वावनाथ सिंह गहमरी के पुत्र होने का गौरव उन्हें प्राप्त है, जिसके नाम पर वह इज्जत और मान पाते हैं आज तक वह उसके नाम को जीवित रखने के लिए उनके गाँव पर तो उनकी प्रतिमा लगवा पाये, न पार्क दुरूस्त करा पाये, न एक स्मारिका निकलवा पाये, न आने वाली पीढ़ी उनके नाम काम से परिचित रहे कोई काम कर पाये तो देश स्तर पर उनके लिये क्या किये होगें यह तो आप सोच सकते हैं। अजय सिंह को आज तक मैनें गहमर के किसी आंदोलन, किसी समस्या पर , किसी धरने में गाँव के साथ चलते, गाँव की आवाज बुलंद करते तो नहीं देखा, हाँ बाबा सुरसादास के गंथ्र जैसे 5848 पन्नो का गहमर की समस्याओं पर आधारित फाइलों की ग्रंथ तैयार किये हों तो मैं नहीं जानता, आप पाठक यदि जानते हो या देखे हो तो बताईयेगा मैं अपनी जानकारी संबोधित कर लूगाँ । ऐसा व्यक्ति गहमर से 400 किलोमीटर दूर बैठ कर प्रबंधन करेगा हमारे आप के बच्चों की प्रतिभा के साथ क्या न्याय करेगा मेरी समझ से तो बाहर है।
अब सुधीर सिंह को ले लें रेल आंदोलन पूरा हुआ नहीं, मगध आश्वासन के बाद भी नहीं रूकी, फरक्का गरीब रथ भविष्य के अधेरे में है, गहमर में पूर्व सैनिकों का एक सम्माजनक ऐतिहासिक कार्यक्रम होना है, दूर-दूर से लोग आयेगें उसके मद्देनजर सैनिकों के सम्मान व व्यवस्था में ट्रेनों का ठहराव विशेष जरूरत है, त्यौहारों का मौसम आ रहा है गाँव के अप्रवासी और बहू- बेटिया घर आयेगीं ट्रेनों का ठहराव महत्वपूर्ण है छोड़ कर चल दिये दूसरे आंदोलन की तरफ। भाई एक काम तो पूरा कर लो, आन्दोलन जीवी तो हो नहीं कि लप से यहाँ लप से वहाँ।  गहमर इंटर कालेज में पठन पाठन है, प्रवंधन का विवाद 1996 से चल रहा है तो 2022 तक भी चल सकता है।
------शेष अगले अंक में जारी---
*बिका हुआ डरपोक लेखक*
*अखंड गहमरी*