मंगलवार, 12 जून 2018

गंगा घूमेगी गजगमिनयॉं

आज तो पुदीने के पेड़ से कूद जाने का जी कर रहा था। जुल्म ढा रही थी मेरी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियाँ। कसम वाइफ होम की मैं अगर झूठ बोलू तो मेरे मुहँ में कटहल का आचार चला जाये। मैं उसे देख रहा था, वो मुझे देख रही थी। मेरे और उसके प्यार के दुबारा दीप जल रहे थे, मगर सोमरूआ का दिल जल रहा था। वो गजगमिनियाँ के सामने ही मुझे लंगूर उसे हूर कह कर जले दिल को ठंडा करने और अपने उस अपमान का बदला लेने की असफल कोशिश किया , जब अपनी वाइफ फस्ट को लेकर गंगा किनारे टहलते हुए यह भूल गया कि वह अपनी शेरनी के साथ है, मेरी गजगमिनियाँ पर फितरे कस बैठा । कसम गजगमिनियाँ की आखों की उसकी सुन्दरी ने अपने सुन्दर सुन्दर चरणपादुका का प्रयोग कर उसे मस्त कर दिया।
मेरा और उसका प्यार तो गंगा की तरह पवित्र और निर्मल है, जो कल-कारखानों की गंदगी जैसे गंदे सोमरूवा से दूषित नहीं हो सकता। और फिर जब मेरे जैसा विद्वान, सुन्दर-सुशील, गबरू नौजवान जब अपनी पूर्व प्रेमिका के साथ बैठा हो तो लोग नज़र लगा ही देते हैं, और उसका खामियाजा आपके इस सीधे साधे भोले अखंड गहमरी को भोगना पड़ता है। आज भी कुछ ऐसा ही हुआ। न जाने कहाँ से मेरी प्रेमिका के हाथ गौमुख और गंगासागर की वीडियो लग गई। अब वह उसे देख कर जिद पकड़ ली कि हम दोनो जगह जायेगें।
पहले तो वह अपनीं अदाओं से रिझा कर अपनी बात मनवाना चाहती और जब मैं नहीं माना तो वह माँ गंगे में कूदने की धमकी देने लगी। मरता क्या न करता तैयार हो गया चलने को..मेरे तैयार होते ही उसने मेरी तरफ हजारो उछाल दिये.. मैं भी धन्य हो गया।
चल पड़ा मैं सिर पर कफन बाधें। वैसे इसके पहले भी मैं अपनी एक पूर्व प्रेमिका मजगमिनियाँ के साथ आ चुका था, मगर इस बार का मंजर काफी बदला हुआ था
गौमुख से गंगोत्री का मार्ग काफी सरल था, गंगा के किनारे किसी प्रकार का प्रदूषण नहीं था। मैने महसूस किया कि जल की मात्रा भी पहले से तीन गुना अधिक है।
हम लोग एक दूसरे के हाथो में हाथ डाले न जाने कितनी दूर चले आये पता ही नहीं चला। यह तो होना ही था। एक तो गंगा का किनारा दूसरे चाँद हाथो में, दिमाग कहाँ काम करेगा।
हम दोनो रिषिकेश, हरिद्वार होते हुए कानपुर पहुँच चुके थे, जून के महीने में भी कानपुर में गंगा माता के पाट को स्वच्छ और निर्मल जल से भरा देख कर आँखे खुली की खुली रह गई, गंगा में कोई नाला, केमिकल नहीं गिरता देख मैं और गजगमिनियाँ एक दूसरे की आँखो को मलने लगे कि कहीं स्वपन तो नहीं, परन्तु यह स्वपन नहीं था।
माँ गंगे को प्रणाम कर हम आगे बढ़े और इलाहाबाद पहुँचे।
वाह क्या दृश्य था संगम तट का, चारो तरफ रौशनी, हजारो मटकी लिये नवयौवनाएं, कोई पानी भर रहा है कोई लेकर जा रहा है।
विश्वास ही नहीं हुआ कि आज आरो के युग में ''गंगा का पानी''।
हमने भी अपनी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियाँ के साथ संगम में डूबकी लगाई और चला पड़ा बनारस की तरफ।
बनारस के अस्सी घाट पर आते ही मेरे बाबा का चेहरा सामने आ गया जब वह तैराकी सिखाने के लिये हमें गंगा में फेंक दिया करते थे और हम छपर छपर करते किनारे आ जाया करते। आज यहाँ भी गंगा की निर्मलता, पानी और घाटो की सफाई का वर्णन शब्दो में बया ही नहीं कर पा रहा हूँ। हम दोनो अभी बैठे ही थे कि तेज शोर सुनाई दिया, शायद गंगा आरती शुरू हो चुकी थी, हम दोनो माँ गंगे की आरती देख कर
मोटरसाइकिल स्टार्ट कर पटना चल दिये। पटना में भी गंगा अपने पुराने स्वरूप में लौट चुकी थी, घाटो से दूर गंगा घाटो को चूम रहीं। इतनी लम्बी यात्रा में मैं यह नहीं समझ पा रहा था जब हर जगह गंगा इतनी पावन हो गई हैं तो मेरे प्रेमस्थल में गंगा इतनी मलीन क्यो? वहाँ घाटो से दूर क्यों? गन्दगी का अंम्बार क्यो?
इन सवालो का जबाब तलाशते हम दोनो सुल्तानगंज पहुँच चुके थे।मुझे क्या मालूम था सुल्तानगंज जिस अजगैबीनाथ कहा जाता है, वहाँ मेरी पिटाई होने वाली है। सुल्तानगंज पहुच कर अभी हम गंगाघाट पर नजारा देखने ही जा रहे थे कि डबल डेकर ट्रेन जैसी काया की स्वामी मेरी वास्तविक पत्नी की प्रतिरूप मेरी आधी घरवाली ''नीतू'' (वास्तविक नाम) ने अपनी बहन से बेवफाई का दाग मेरे दामन पर लगाते हुए एरियल सर्फ से मेरी सफाई शुरू कर दी.. वो डबल स्टोरी, मैं सिंगल चेचिस किसी तरह कसम वसम खा खुद और गजगमिनियाँ को बचाया।
मगर आप जानते हैं न जो सुधर जाये वो अखंड गहमरी नही..दुनिया सुधर जाये मगर हम नहीं सुधरेंगे।
हम दोनो चोट खाये प्राणी का आगे सफर जारी रख पाना शायद नहीं निश्चित तौर पर असंभव था। किसी तरह गिरते पड़ते हम लोग सुल्तानगंज के घाटो पर पहुँचे, चारो तरफ गंदगी का अंबार था, पानी भी कोसो दूर, समझ में नहीं आ रहा था कि गंगोत्री से पटना तक गंगा की हालत सच थी या पटना से आगे।
मैं सोच में पड़ा हुआ था , परेशान था, कहूँ तो किससे? मेरी इस उलझन को शायद गजगमिनियाँ जान चुकी थी। वह मेरे चेहरे को अपने हाथो में लेकर बोली '' मेरे मोहन तुम जो सोच रहे हो गलत भी है और सच भी''।
सत्तर सालो से गंगा मैली थी, प्रदूषित थी, लोग उनके नाम पर करोडों खा रहे थे। मगर अब चार साल से गंगा माँ की हितैषी पार्टी की सरकार बनी है। हमारे दौरा मंत्री जी और इन चार सालो में इतनी दूर तक गंगा को निर्मल कर दिये, जलयुक्त कर दिये। अब क्या चाहते हो मेरे जानू मेरे जानम? थोड़ा सब्र रखो गंगा पूरी तरह साफ हो जायेगीं, भागिरथ खुश हो जायेगें, उन्हें गंगा को धरती पर लाने का अफसोस नहीं होगा। दुबारा मोदी जी का करो वेट, अभी नहीं हुआ है लेट।
उसकी बातो में मुझे सच्चाई नज़र आ रही थी, मोदी जी ने चार साल में 70 प्रतिशत गंगा की दूरी पूरी तरह शुद्ध कर दिया तो आगे मौका देने पर तो पूरा हो ही जायेगी। मैं मोदी चचा की जय जय करता अपनी गजगमिनियाँ के ज्ञान पर इतराते हुए उसे लगे से लगा लिया, तभी सामने फिर अपनी डबल डेकर काया वाली साली नीतू को हाथो में दुखहरण सुखदाता लिये आते देखा। मरता क्या न करता जानता था वह तैर तो सकती नहीं, मैं गजगमिनियाँ को लिए गंगा में कूद पड़ा और तैरते हुए गुनगुनाने लगा '' मोदी तेरी गंगा साफ हो गई '।
अखंड गहमरी, गहमर गाजीपुर।